Edited By Isha, Updated: 27 Sep, 2024 04:43 PM
1966 में हरियाणा गठन के बाद से लेकर अब तक के 58 सालों के राजनीतिक इतिहास में अनेक रोचक और अजीब किस्से छिपे हुए हैं। हरियाणा में राजनीति के इतिहास के पन्नों को पलटने पर कई प्रचार के रोचक तथ्य सामने आते हैं। प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से कुछ ऐसी...
चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी):1966 में हरियाणा गठन के बाद से लेकर अब तक के 58 सालों के राजनीतिक इतिहास में अनेक रोचक और अजीब किस्से छिपे हुए हैं। हरियाणा में राजनीति के इतिहास के पन्नों को पलटने पर कई प्रचार के रोचक तथ्य सामने आते हैं। प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से कुछ ऐसी सीट है, जहां पर कई प्रकार के हैरान कर देने वाले रिकॉर्ड बने। ऐसे में हरियाणा के विधानसभा चुनाव में 90 सीटों पर सैकड़ों की संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले कईं नेता भी रिकॉर्ड बना चुके हैं। इनमें पुंडरी विधानसभा एक ऐसी सीट है, जहां पर 1967 से लेकर 2019 तक के 13 विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीता हासिल की। पुंडरी विधानसभा से अब तक 7 बार आजाद विधायक जीत दर्ज करवा चुके हैं। इनमें केवल दिनेश कौशिक ही अकेले ऐसे नेता है, जो बार पुंडरी से आजाद विधायक बने हैं। मौजूदा समय में भी पुंडरी से रणधीर सिंह निर्वतमान विधायक है।
अब तक 2 आजाद महिलाएं बनीं विधायक
हरियाणा में 1967 से लेकर 2019 तक हुए 13 चुनाव में आजाद उम्मीदवारों का प्रदर्शन ठीक रहा है। 1967 में 16, 1968 में 6, 1972 में 11, 1977 में 7 आजाद विधायक चुने गए हैं। इन चुनावों में कभी कोई महिला आजाद विधायक नहीं चुनी गई। 1982 में पहली बार बल्लबगढ़ सीट से आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी शारदा रानी ने जीत दर्ज की। शारदा रानी ने ब्लॉक समिति की सदस्य से अपने सियासी करियर का आगाज किया था। 1968, 1972 और 1977 में वे कांग्रेस से विधायक चुनी गई। 1982 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दी जिस पर शारदा रानी ने आजाद उम्मीदवार के रूप में ताल टोक दी और जीत हासिल की।
शारदा रानी के बाद हरियाणा के अब तक के राजनीतिक इतिहास में मेधावी कीर्ति ही दूसरी ऐसी महिला हैं, जिन्होंने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता है। मेधावी कीर्ति प्रसिद्ध राजनेता बाबू जगजीवन राम की पौत्री हैं। 1987 के चुनाव में लोकदल और भाजपा की जबरदस्त लहर थी। दिल्ली से हिंदी में एमए करने के बाद मेवाती राजनीति में आ गई। 1985 से 1986 तक वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की महासचिव रहीं। इसके बाद कांग्रेस से किनारा कर लिया और इंडिया कांग्रेस आई मेधावी नाम से खुद का सियासी दल बना लिया। 1987 के चुनाव में झज्जर सीट से चुनावी ताल ठोक दी। लोकदल की लहर के बीच ही उन्होंने लोकदल के उम्मीदवार ममंगेराम को 13 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया।
निर्दलीय विधायकों ने कईं बार बनाई सरकार
हरियाणा में हुए अलग-अलग विधानसभा चुनाव में जहां अलग-अलग विधानसभा सीट से आजाद उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। वहीं, प्रदेश की राजनीति में अनेक बार ऐसे मौके आए, जब आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीतकर विधानसभा पहुंचे नेताओं ने प्रदेश सरकार के गठन में अपना महत्वपूर्ण योगदान अदा किया। 2009 में भी कांग्रेस सरकार 7 निर्दलीय विधायकों के सहारे ही बनी थी। इससे पहले साल 1982 में भजनलाल ने भी आजाद उम्मीदवारों के बूले सरकार बनाई थी और बाद में 5 आजाद विधायकों को अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया था। इसी तरह से 2019 के विधानसभा चुनाव में भी 7 आजाद विधायक निर्वाचित हुए और इनमें से 6 ने भाजपा को समर्थन दिया।
उस समय भाजपा ने अपनी सरकार में रानियां से आजाद विधायक चुने गए चौ. रणजीत सिंह को बिजली एवं जेल मंत्री बनाया था। अतीत की बात करें ते हरियाण गठन के बाद 1967 में हुए पहले चुनाव में 269 नेताओं ने बतौर आजाद उम्मीदवार के रूप में भाग्य आजमाया और 16 को जीत मिली। आज भी प्रदेश की राजनीति में यह रिकॉर्ड कायम है।
साल 1968 में 161 आजाद प्रत्याशी चुनावी मैदान में वे जिनमे से 6 को जीत मिल पाई। 1972 में हुए चुनाव में आजाद उम्मीदवारों ने एक बार फिर से जीत के लिहाज से दहाई का आकडा पार किया। 1972 के चुनाव में 207 आजाद प्राथाशियों ने चुनाव लड़ा और 11 को जीत मिल गई। 1977 के चुनाव में 439 में से 7, 1982 में 835 में से 16, 1987 में 1045 में से 7, 1991 में 1412 में से 5 को जीत मिली। 1996 में तीसरी बार ऐसा मौका आया जब आजाद विधायक की संख्या दहाई के अक तक पहुंची। 1996 के चुनाव में 2022 आजाद प्रत्याशी मैदान में थे और 10 को जीत मिल गई। इसी प्रकार से साल 2000 में 519 में से 11, 2005 में 442 में रो 10, 2009 में 513 में से 7, 2014 में 603 में 5, 2019 में 377 में से 7 निर्दलीय विधायक निर्वाचित हुए।
भजनलाल परिवार ने दर्ज की सर्वाधिक जीत
आदमपुर विधानसभा सीट पर 1968 से लेकर अब तक चौ. भजनलाल परिवार ने सर्वाधिक 16 चुनावों में जीत प्राप्त की है, जबकि चौ. देवीलाल और उनके बड़े बेटे चौ. ओमप्रकाश चौटाला 5 अलग- अलग विधानसभा क्षेत्रों से विधायक चुने गए हैं।