उत्तर भारत का अनूठा मंदिर, जहां लोहे की कील तक का इस्तेमाल नहीं हुआ

Edited By vinod kumar, Updated: 02 Jan, 2020 03:48 PM

unique temple of north india where even an iron nail was not used

अम्बाला के गीता नगरी में जैन मुनि विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर की स्मृति में अनूठा गोलाकार जैन मंदिर बन रहा है। इसकी खासियत ये है कि इसमें संगमरमर का ही इस्तेमाल हो रहा है, लोहे की इसमें कील तक इस्तेमाल नहीं हुई। लेंटर की जगह पुरानी भारतीय निर्माण शैली...

अम्बाला(अमन कपूर): अम्बाला के गीता नगरी में जैन मुनि विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर की स्मृति में अनूठा गोलाकार जैन मंदिर बन रहा है। इसकी खासियत ये है कि इसमें संगमरमर का ही इस्तेमाल हो रहा है, लोहे की इसमें कील तक इस्तेमाल नहीं हुई। लेंटर की जगह पुरानी भारतीय निर्माण शैली डाट का इस्तेमाल किया गया है। यहां 36 गुम्बदों वाली छत इसी पर टिकी है।

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मंदिर का काम 2011 में शुरू हुआ था
मंदिर का निर्माण मुनि सुरिश्वर के शिष्य मुनि विजय रत्नाकर सूरीश्वर ने 2011 में शुरू कराया था। मंदिर का नक्शा किसी आर्किटेक्ट ने नहीं, बल्कि खुद जैन मुनि विजय रत्नाकर सूरीश्वर ने कागज पर परात रख कर तैयार कर दिया था। आर्किटेक्ट ने मंदिर में 36 गुम्बद नहीं बनने की बात कही थी लेकिन जब एक-एक कर बनाना शुरू किया तो फिर गुम्बद पूरे हो गए। जैन स्थापत्य कला के इस मंदिर में इस्तेमाल हो रहे मार्बल पर नक्काशी राजस्थान के मकराना में हो रही है और अम्बाला में इसके ढांचों को एक-दूसरे से जोड़ा जा रहा है।

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धर्मशाला का भी हो रहा निर्माण
मंदिर ट्रस्ट के मुताबिक करीब ढाई एकड़ के परिसर में 500 वर्गगज में इस गोलाकार मंदिर का निर्माण चल रहा है। निर्माण कब पूरा होगा और कितना बजट होगा, इसका कोई अंदाजा नहीं है, क्योंकि सबकुछ चंदे पर चल रहा है। यह मंदिर पर्यटन की दृष्टि से न केवल अम्बाला के लिए, बल्कि पूरे उत्तर भारत का अपनी शिल्प शैली का अनूठा मंदिर होगा। मंदिर के निर्माण के साथ भविष्य में यहां आने वाले पर्यटकों के दृष्टिकोण से धर्मशाला, भोजनालय साधु उपाश्रय भी बनाया जा रहा है।

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