हुड्डा ने किया 3 कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसान आंदोलन के समर्थन का ऐलान

Edited By vinod kumar, Updated: 09 Sep, 2020 07:39 PM

hooda announces support for farmer protest against 3 agricultural ordinances

पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 3 नए कृषि अध्यादेश के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के समर्थन का ऐलान किया है। इससे पहले भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा अलग-अलग मंचों से इन तीन अध्यादेशों के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे हैं। हुड्डा का...

चंडीगढ़ (धरणी): पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 3 नए कृषि अध्यादेश के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के समर्थन का ऐलान किया है। इससे पहले भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा अलग-अलग मंचों से इन तीन अध्यादेशों के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे हैं। हुड्डा का स्पष्ट कहना है कि ये आंदोलन सिर्फ किसान का ही नहीं, इसमें मजदूर, आढ़ती और छोटे व्यापारी भी शामिल हैं। सभी का मानना है कि बिना एमएसपी के ये अध्यादेश किसानहित में नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार इन्हें लागू करना चाहती है तो सबसे पहले इसमें एमएसपी पर ख़रीद का प्रावधान शामिल करना चाहिए। या उसके लिए अलग से चौथा बिल लाना चाहिए। बिल में स्पष्ट प्रावधान हो कि अगर कोई एजेंसी एमएसपी से नीचे किसान की फसल ख़रीदती है तो उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई होगी।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि बीजेपी को अपना वादा पूरा करते हुए किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के सी2 फार्मूला के तहत एमएसपी देनी चाहिए। जब तक किसान की पूरी लागत को ध्यान में रखते हुए एमएसपी तय नहीं होती, तब तक किसानों की आय नहीं बढ़ सकती। कांग्रेस सरकार के दौरान अलग-अलग फसलों के एमएसपी में रिकॉर्ड 2 से 3 गुना की बढ़ोतरी हुई थी। 

गन्ना, गेहूं, धान आदि के रेट में रिकॉर्ड बढ़ोतरी करते हुए किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए क़दम उठाए गए थे। लेकिन इस सरकार ने एमएसपी देने की बजाए किसान के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। 3 कृषि अध्यादेशों को लेकर किसानों का सीधा आरोप है कि बिना एमएसपी और किसी तरह के सरकारी नियंत्रण वाले इन अध्यादेश के जरिए मंडी और एमएसपी व्यवस्था को ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है। 

बार-बार विरोध करने के बावजूद सरकार इन अध्यादेशों को तानाशाही तरीके से थोपना चाहती है। इसीलिए किसान को मजबूर होकर सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। लेकिन सरकार कोरोना का डर दिखाकर उसकी आवाज को दबाना चाहती है। हुड्डा ने सवाल उठाया कि अगर सरकार को कोरोना या किसान की इतनी ही चिंता है तो इन 3 अध्यादेशों को लागू करने के लिए कोरोना काल को ही क्यों चुना गया? क्यों नहीं स्थिति के सामान्य होने का इंतज़ार किया गया? क्यों नहीं इन बिलों को लागू करने से पहले संसद और विधानसभा में चर्चा करवाई गई?

उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार शुरुआत से ही एमएसपी विरोधी रही है। क्योंकि इन बिलों से पहले भी मौजूदा सरकार किसानों को एमएसपी दने में नाकाम थी। किसान को उसकी फसल का भाव देने के बजाय सरकार धान, चावल, सरसों और बाजरा ख़रीद जैसे घोटालों को अंजाम देने में लगी थी। आज भी मंडियों में 1509 और परमल धान पिट रही है। 

हमारी सरकार के दौरान 1509 धान 4000 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती थी, लेकिन आज उसकी बिकवाली सिर्फ 1800 से 2100 रुपये के बीच हो रही है। परमल के लिए तो किसान को एमएसपी भी नहीं मिल पा रही है और मजबूरी में उसे अपना पीला सोना 1100 से 1200 रुपये में बेचना पड़ रहा है। धान ही नहीं बाजरा किसानों के साथ भी ऐसा ही अन्याय हो रहा है। 2150 रुपये एमएसपी वाला बाजरा 1200 से 1300 रुपये में बिक रहा है। 

हुड्डा ने कहा कि आज ना किसान को एमएसपी मिल रहा है, ना वक्त पर पेमेंट और ना ही फसल बीमा योजना का मुआवज़ा। पहले से बदहाल किसान को सरकार 3 अध्यादेशों के जरिए पूरी तरह पूंजी पतियों के हवाले करना चाहती है। लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं होने देगी। कांग्रेस कंधे से कंधा मिलाकर किसानों के साथ खड़ी है। सड़क से लेकर सदन तक, विधानसभा से लेकर संसद तक किसान की आवाज को उठाया जाएगा।

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