बड़ों की बजाय छोटे बेटों पर रहा प्रदेश के सियासी दिग्गजों का भरोसा

Edited By Shivam, Updated: 06 Oct, 2019 05:36 PM

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हरियाणा का सियासी इतिहास कई मामलों में बेहद दिलचस्प है और प्रदेश की सियासत में कई बार अलग-अलग मोड़ में राजनीतिक तस्वीर बना व बिगाड़ चुके इसी हरियाणा का यह भी एक खास पहलू है कि इस प्रदेश के दिग्गज ‘लालों’ ने परिवार में यदि अपनी राजनीतिक विरासत को आगे...

हरियाणा का सियासी इतिहास कई मामलों में बेहद दिलचस्प है और प्रदेश की सियासत में कई बार अलग-अलग मोड़ में राजनीतिक तस्वीर बना व बिगाड़ चुके इसी हरियाणा का यह भी एक खास पहलू है कि इस प्रदेश के दिग्गज ‘लालों’ ने परिवार में यदि अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का अवसर दिया है तो उनका भरोसा अपने सियासी उत्तराधिकारी के रूप में बड़े की बजाय छोटे बेटों पर ही रहा है।

ये बात दीगर है कि चौ. देवीलाल ने अपने बड़े बेटे को ही तरजीह दी जबकि 2 अन्य लालों चौ. भजन लाल व चौ. बंसीलाल सहित ओमप्रकाश चौटाला ने अपने छोटे बेटों को ही महत्व देते हुए अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। बेशक इन सियासी दिग्गजों ने अपने छोटे बेटों के सिर ही सियासी विरासत की पगड़ी रखी मगर इनमें से महज चौ. ओमप्रकाश चौटाला ही ऐसे राजनेता के रूप में उभरे जो चौ. देवीलाल के बड़े बेटे होने के साथ-साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे जबकि बंसीलाल, भजन लाल व ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे राजनीतिक विरासत को आगे तो बढ़ा रहे हैं मगर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए हैं। उन्हें अब तक मंत्री, सांसद एवं विधायक बनने का अवसर जरूर मिला है। 

देवीलाल ने बड़े बेटे को सौंपी थी सियासी विरासत
गौरतलब है कि हरियाणा के सबसे बड़े सियासी घराने चौ. देवीलाल के परिवार में देवीलाल ने 1989 में उपप्रधानमंत्री का पद हासिल करने के बाद तमाम कयासों के विपरीत उस समय अपने बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को अपना सियासी उत्तराधिकारी घोषित करते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। हालांकि उस समय देवीलाल के दोनों बेटों ओमप्रकाश चौटाला व रणजीत सिंह में उत्तराधिकार की लड़ाई चरम पर थी और सियासी गलियारों में रणजीत सिंह को उत्तराधिकारी बनाए जाने की चर्चाएं भी थी, मगर चौ. देवीलाल का विश्वास अपने बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला पर ही टिका और उन्हें ही अपना सियासी वारिस बना दिया। चौटाला 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री बनने के साथ साथ कई बार सांसद व विधायक भी रहे। वर्तमान में वे इनैलो सुप्रीमो हैं।

बंसीलाल, भजन लाल व चौटाला का छोटों पर रहा विश्वास
बेशक चौ. देवीलाल ने अपने बड़े बेटे को ही राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया मगर चौ. देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला के साथ-साथ प्रदेश के 2 अन्य सियासी लालों बंसी लाल व भजन लाल ने सियासत में बड़ों की बजाय अपने छोटे बेटों को ही अधिक योग्य समझते हुए उन्हें अपनी सियासत को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक वारिस घोषित किया। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के 2 बेटे अजय सिंह चौटाला व अभय सिंह चौटाला लंबे समय से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं और दोनों ही विभिन्न सदनों के सदस्य रहे हैं। मगर अंतत: चौटाला का विश्वास जीतने में उनके छोटे बेटे अभय सिंह ही कामयाब हुए और चौटाला ने अभय को ही अपना सियासी वारिस बनाते हुए उन्हीं के हाथ पार्टी की कमान सौंप दी। चौटाला के जे.बी.टी. भर्ती मामले में जेल जाने के बाद अभय सिंह ही पिछले करीब 6 वर्षांे से पार्टी की गतिविधियां चलाए हुए हैं और वे पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। 

इसी प्रकार बंसीलाल ने भी अपने बड़े बेटे रणबीर महेंद्रा की बजाय छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह पर ही सियासी तौर पर भरोसा रखा और उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी बनाया। सुरेंद्र सिंह सियासत में काफी सक्रिय रहे और वे सांसद व विधायक बनने के साथ साथ प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे। 2005 में सुरेंद्र सिंह का एक विमान हादसे में निधन होने के बाद बंसीलाल सियासी रूप से टूट गए और फिर इस परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सुरेंद्र सिंह की पत्नी किरण चौधरी आगे आईं और वे तब से लेकर अब तक सक्रिय रूप से राजनीति कर रही हैं। 

वे मंत्री के साथ साथ कांग्रेस विधायक दल की नेता भी रही हैं। प्रदेश के तीसरे राजनीतिक लाल भजन लाल ने भी चौ. बंसीलाल की माङ्क्षनद अपने बड़े बेटे चंद्रमोहन की बजाय अपने छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई को सियासी विरासत की बागडोर सौंप दी। 2005 में मुख्यमंत्री बनने से वंचित रह गए भजन लाल ने दिसम्बर 2007 में अपने छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ हजकां के रूप में नई पार्टी का गठन करते हुए कुलदीप को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया था। कुलदीप सांसद व विधायक रहे हैं।

जबकि उनके बड़े भाई चंद्रमोहन भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में उपमुख्यमंत्री के पद पर रहे हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर देवीलाल को छोड़ कर हरियाणा के अन्य सियासी दिग्गजों ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपने छोटे बेटों पर ही भरोसा रखा।

(प्रस्तुति: संजय अरोड़ा)

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