बरोदा विधानसभा उपचुनाव : घटते दिनों के बीच बढ़ रही नेताओं के दिलों की 'धड़कन'

Edited By Manisha rana, Updated: 26 Oct, 2020 08:43 AM

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बरोदा उप-चुनाव को लेकर 3 नवम्बर को होने वाले मतदान को महज 1 हफ्ते का समय शेष रह गया है और काउंटडाऊन यानी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। जैसे-जैसे 3 नवम्बर का दिन नजदीक आते दिखाई दे रहा है...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : बरोदा उप-चुनाव को लेकर 3 नवम्बर को होने वाले मतदान को महज 1 हफ्ते का समय शेष रह गया है और काउंटडाऊन यानी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। जैसे-जैसे 3 नवम्बर का दिन नजदीक आते दिखाई दे रहा है उसी लिहाज से इन घटते दिनों ने सभी सियासतदानों की दिलों की धड़कनों को भी बढ़ा दिया है। आमजन से लेकर राजनीतिक पर्यवेक्षकों की निगाहें इस चुनाव पर जम गई हैं और हर कोई इसी आतुर भाव से गुणा भाव करता दिख रहा है कि आखिर बरोदा उप-चुनाव में बिछी चुनावी बिसात में कौन किसे शह और मात देता है?

भले ही इस चुनावी जंग का परिणाम कुछ भी हो मगर चुनावी तिथि नजदीक आते देख इस सियासी महाभारत की लड़ाई में कूदे महारथियों ने एक दूसरे पर व्यक्तिगत प्रहार रूपी ब्रह्मास्त्र चलाने तेज कर दिए हैं। सत्तादल से जुड़े नेता विकास के मामले में पूर्व की सरकारों को घेरते हुए विरोधियों से सवाल पूछ रहे हैं तो विपक्षी दल भी जवाबी हमला बोलते हुए सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। मसलन दोनों ओर से तंज और वाकबाण छोड़े जा रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार चुनावी घड़ी के नजदीक आते ही बरोदा के ग्रामीण भी हार जीत को लेकर अपनी राय साफ करते नजर आने लगे हैं मगर एक बड़ा तबका अब भी ऐसा है जिसने मन भले ही बना रखा हो लेकिन वह मुखर नहीं हो रहा है और इस तबके की चुप्पी से ही सभी सियासतदानों की धड़कनें भी बढ़ती नजर आ रही हैं। पर्यवेक्षकों के अनुसार बेशक बरोदा की हार जीत से सरकार के समीकरण बनने-बिगडऩे जैसी कोई स्थिति नहीं है लेकिन चाहे सरकार हो अथवा विपक्ष हारना कोई नहीं चाहता क्योंकि दोनों ओर से ही इस चुनाव में प्रतिष्ठा दांव पर है। सत्तारूढ़ दल जहां इस सीट के जीतने से लोगों को विकास से जुडऩे जैसी बात समझा रहा है तो वहीं विपक्षीदल बरोदा सीट के आसरे भविष्य की सियासी तस्वीर को देख रहा है लेकिन यह 3 नवम्बर को बरोदा के मतदाता ही तय करेंगे कि वे इस चुनाव में किसे अपना ‘नुमाइंदा’ चुनते हैं?

इसलिए बढ़ने लगी है बेचैनी
गौरतलब है कि 3 नवम्बर को बरोदा विधानसभा का उप-चुनाव होना है। करीब पौने 2 लाख मतदाताताओं एवं जाट बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में इस वक्त हर तरफ चुनावी कसीदे ही पढ़े एवं गढ़े जा रहे हैं। सत्ता पक्ष पूरे दमखम के साथ चुनावी प्रचार में जुटा है तो विपक्षीदल भी हर स्थिति को भुनाते हुए चुनावी माहौल को बनाने की कोशिश में है। शायद ही ऐसी कोई गली अथवा नुक्कड़ एवं चौपाल हो जहां इस वक्त ‘चुनावी पंडित’ की माङ्क्षनद कोई अपनी राय जाहिर न कर रहा हो? लेकिन राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी बेचैनी वो वोटर हैं जो अभी तक मुखर नहीं हुए हैं और न ही अपने मन की बात को सार्वजनिक कर रहे हैं। ऐसे वोटरों की संख्या बहुत बड़ी है। इन लोगों की चुप्पी ने ही राजनीतिक पर्यवेक्षकों से लेकर सियासतदानों के गुणा-भाग की प्रक्रिया को प्रभावित किया हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बनती-बिगड़ती स्थिति को लेकर सभी पूर्वानुमान जरूर लगा रहे हैं और अपने-अपने स्तर पर हार-जीत के अंतर को भांप रहे हैं।

ऐसे चल रहे हैं वाकबाण
चुनाव है तो ऐसे में व्यक्गित हमला, तंज, कसीदे सबको ये जायज ही मानते हैं क्योंकि चुनाव हर कोई जीतने के लिए ही लड़ रहा है। सत्तारूढ़ दल की ओर से चुनावी संबोधन के जरिए जहां लोगों के समक्ष पूर्व की कांग्रेस व इनैलो सरकारों से बरोदा के साथ-साथ समूचे प्रदेश में हुए विकास का ब्यौरा मांगा जा रहा है तो इसके जवाब में कांग्रेस और इनैलो नेता भी तीखा हमला बोलते हुए सरकार को विकास के मामले में कटघरे में खड़ा करते दिखाई दे रहे हैं। विपक्षी दलों की ओर से मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर व्यक्गित हमला बोलते हुए सवाल किए जाते हैं कि आखिर सरकार उन विकास रूपी आंकड़ों को प्रस्तुत करे जो इन 6 सालों में बरोदा के लिए किए हों?

चौपालों पर चर्चा
बरोदा विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण परिवेश से संबंधित है,ऐसे में यहां चौपाल ही सबसे अहम हैं। इस वक्त हुक्कों की गुडग़ुड़ाहट के बीच ग्रामीण इन चौपालों पर सियासत को अपने-अपने लिहाज से समझते हुए चर्चाओं को बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं। विशेष बात यह है कि इस समय फसली सीजन है,किसान खेत में व्यस्त हैं लेकिन शाम को खेत से फारिग होने के बाद इनमें से ज्यादातर चौपाल पर दस्तक देते हैं और चुनावी कयासों के बीच हर कोई अपने राजनीतिक गणित के लिहाज से भावी तस्वीर को उकेर रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन चर्चाओं से माहौल दिनों दिन गर्माता जरूर जा रहा है।

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