Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 04 Aug, 2025 07:20 PM

कार्यक्रम के अंतर्गत ध्यान साधना, शांति प्रार्थना, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ तथा ‘धम्म और धर्म का समन्वय’ विषय पर संवाद सत्र आयोजित किया गया। दोनों परंपराओं के आध्यात्मिक प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट किया कि भारत की धरती ने सदैव समावेश को महत्व दिया है
गुड़गांव ब्यूरो: बोधगया स्थित वट थाई मगध बुद्धिस्ट विपासना केंद्र में शनिवार को यूनिटी ऑफ लाइट के बैनर तले जगद्गुरु साईं मां लक्ष्मी देवी का जन्मोत्सव आध्यात्मिक समन्वय के रूप में मनाया गया। इस विशेष अवसर पर भारत, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया सहित विभिन्न 14 देशों से सनातन और बौद्ध धर्मगुरु उपस्थित थे। 2 अगस्त शनिवार के दिन जगतगुरू श्री लक्ष्मीदेवी का जन्मोत्सव सनातन-बौद्ध परंपरा के आध्यात्मिक समन्वय के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। इस विशेष आयोजन में भारत, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया सहित विभिन्न 14 देशों से आए सनातन एवं बौद्ध के धर्मगुरुओं ने शिरकत की। ध्यान और प्रार्थना सत्र में देश-विदेश से आए बौद्ध भिक्षुओं, साधकों, सनातन धर्म से जुड़े लोगों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्देश्य बोधगया की पवित्र भूमि को सनातन-बौद्ध परंपरा के समन्वय से और समृद्ध बनाना है।जिससे करुणा, मैत्री, अध्यात्म और विश्वशांति का संदेश पूरे विश्व में प्रसारित हो। कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार एवं बुद्ध वंदना के सामूहिक पाठ से हुई, जिससे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। कार्यक्रम के अंतर्गत ध्यान साधना, शांति प्रार्थना, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ तथा ‘धम्म और धर्म का समन्वय’ विषय पर संवाद सत्र आयोजित किया गया। दोनों परंपराओं के आध्यात्मिक प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट किया कि भारत की धरती ने सदैव समावेश को महत्व दिया है, और आज का यह आयोजन उसी परंपरा की सजीव मिसाल है।
कार्यक्रम के अंतर्गत ध्यान साधना, शांति प्रार्थना, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ तथा ‘धम्म और धर्म का समन्वय’ विषय पर संवाद सत्र आयोजित किया गया। दोनों परंपराओं के आध्यात्मिक प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट किया कि भारत की धरती ने सदैव समावेश को महत्व दिया है, और आज का यह आयोजन उसी परंपरा की सजीव मिसाल है। अमेरिका से प्रसारित अपने वीडियो संदेश के माध्यम से उपस्थित जनसमूह एवं बौद्ध भिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा कि "भगवन बुद्ध कहते हैं “अतः दीपो भव” अर्थात अपना दीपक खुद बनो किसी पर भी निर्भर न रहो, बुद्ध से जो सीखा जाना चाहिये, वह यह है कि जीवन का सार संतुलन में है, उसे किसी भी अतिवाद के रास्ते पर ले जाना गलत है।''
''यह आयोजन धर्मों के बीच समरसता और संवाद की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। यह संयुक्त प्रयास दोनों परंपराओं के मूल तत्व अहिंसा, करुणा और मोक्ष की भावना को आगे बढ़ाने का माध्यम है।“सनातन और बौद्ध दोनों परंपराएं करुणा, अहिंसा और आत्मबोध पर आधारित हैं। यह आयोजन इन दोनों धाराओं को जोड़ने वाला एक जीवंत सेतु है, जो हमें विभाजन नहीं, बल्कि समन्वय सिखाता है।
इस अवसर पर नारीसशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए औरंगाबाद (बिहार)के सांसद द्वारा सैकडों निशक्त महिलाओं को साड़ी वितरण किया गया। सांसद महोदय ने अपने उद्बोधन में कहा कि "बौद्ध और हिंदू धर्म की एकता के लिए आयोजित इस कार्यक्रम के माध्यम से दुनिया में एकता का संदेश जाएगा।" समस्त कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन अंतरराष्ट्रीय योग गुरु स्वामी संतोषानंद महाराज ने किया। कार्यक्रम के बाद एक बड़ा भंडारा आयोजित किया गया जिसमें हजारों बौद्ध और हिंदू अनुयायियों ने प्रसाद ग्रहण किया।
इस अवसर पर, साईं मां द्वारा दीक्षित महामंडलेश्वरों में महामंडलेश्वर अनंत दास, महामंडलेश्वर जीवन दास, महामंडलेश्वर परमेश्वर दास, महामंडलेश्वर त्रिवेणी दास समेत विभिन्न देशों से आए साईं मां के दर्जनों अनुयायियों के अलावा भिक्षु फ्रा विथेस थुन, सामाजिक कार्यकर्ता नंदकिशोर प्रसाद उर्फ बबलू सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।