Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 07 Sep, 2024 08:46 PM
इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन मुंबई के सदस्य एवम पर्यावरणविद् राजीव आचार्य के अनुसार जल संकट एक वैश्विक समस्या है जो दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
गुड़गांव, (ब्यूरो): इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन मुंबई के सदस्य एवम पर्यावरणविद् राजीव आचार्य के अनुसार जल संकट एक वैश्विक समस्या है जो दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। राजीव आचार्य कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया की लगभग 2.1 बिलियन आबादी को सुरक्षित और स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। डब्लू एच ओ के अनुसार, हर साल लगभग 3.4 मिलियन लोग पानी से संबंधित बीमारियों के कारण मर जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2050 तक, वैश्विक जल की मांग में 20-30% की वृद्धि होने की संभावना है, जिससे यह संकट और भी विकराल रूप ले सकता है। जल संकट कितना खतरनाक हो सकता है इसका उदाहरण साउथ अफ्रीका की राजधानी केप्टाउन है ।
*भारत भी पानी की कमी से अछूता नही*
राजीव आचार्य कहते हैं कि भारत की आबादी दुनियाभर की कुल आबादी का 16% है, जबकि उसके पास केवल 4% जल संसाधन हैं। वो कहते हैं कि वर्ष 1950 में देश में प्रति व्यक्ति लगभग 5100 किलोलीटर प्रति वर्ष पानी उपलब्ध था जो आज घटकर 1450 किलोलीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष रह गया है । वर्ष 2011 से हम जल की कमी वाले देश में गिनती करा चुके है ।ऐसे में देश में भी जल संरक्षण के प्रयासों में तेजी लाई जा रही है । विशेषज्ञों का मानना है कि जल संरक्षण न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह मानव जीवन की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
*पानी की कमी पर हो रहे लगातार शोध*
राजीव आचार्य के अनुसार विगत दिनों में जल संरक्षण पर कई महत्वपूर्ण शोध दुनियाभर में प्रकाशित हुए हैं। उसी कड़ी में अमेरिका के स्प्रींगर नेचर की वाटर कंजर्वेशन साइंस एंड इंजीनियरिंग पत्रिका में तमिलनाडु के वल्लीयर क्षेत्र में भूजल क्षमता का मानदंड विश्लेषण विषय पर एक शोध प्रकाशित हुआ । इस शोध में तमिलनाडु के वल्लीयर क्षेत्र में भूजल क्षमता का आंकलन किया गया है। यह शोध रिमोट सेंसिंग और जियोग्राफिक इंफोर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) तकनीक का उपयोग कर भूजल संसाधनों के प्रबंधन को सुधारने के लिए किया गया है। इस शोध में बताया गया है कि भूजल एक महत्वपूर्ण संसाधन है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां सतही जल की उपलब्धता सीमित है, जैसे कि कठोर चट्टान वाले क्षेत्र। इस बहुमूल्य संसाधन का ठीक तरह से प्रबंधन कर उसका उपयोग लंबे समय तक किया जा सकता है। इसके लिए भूजल संभावित क्षेत्रों की मैपिंग कर उन्हें चिन्हित करना जरूरी है। इस रिसर्च को करने के लिए भूजल संभावित क्षेत्रों को पांच वर्गों में विभाजित किया गया था। इसमें बहुत कम (0.61%), कम (2.46%), मध्यम (52.46%), उच्च (41.05%), और बहुत उच्च (3.42%) शामिल हैं।
इसी पत्रिका में एक अन्य शोध भी प्रकाशित हुआ है। यह शोध स्वर्णा वाटरशेड, कर्नाटक में बाढ़ की संभावना के आंकलन के लिए हाइड्रो-मॉर्फोमेट्रिक विश्लेषण, तटीय जल संरक्षण और सुरक्षा पर प्रभाव विषय पर किया गया है। इस शोध में बताया गया है कि पहाड़ी क्षेत्रों में जल विज्ञान प्रक्रियाओं की गहन समझ और तटीय क्षेत्रों का सावधानीपूर्वक आंकलन बाढ़ का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने के लिए आवश्यक है। भूजल पुनर्भरण और सतही जल को सहेजने की तकनीकों को बाढ़ प्रबंधन योजनाओं में सही तरीके से शामिल करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन तकनीकों में चेक डैम बनाकर बारिश के पानी को सहेजना शामिल हैं । राजीव आचार्य के अनुसार ये सभी शोध इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि जल संरक्षण कितना आवश्यक है । यदि हम समय रहते नहीं चेते तो भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
*हम क्या करें*
राजीव आचार्य के अनुसार जल संरक्षण के लिए माइक्रो इरिगेशन का प्रयोग एक अच्छा कदम हो सकता है। " *पर ड्रॉप मोर क्रॉप* " टेक्नोलॉजी से लगभग 50 फ़ीसदी तक पानी की बचत की जा सकती है ।इसके अलावा सिंचाई में ड्रोन का प्रयोग और अच्छे रिजल्ट दे सकता है । ड्रोन, विशेष सेंसर और नोजल से लैस होते हैं। जिससे खेत में पानी की कमी को जानकर सिंचाई की जाती है। जिससे पानी का दुरुपयोग में कमी आती है।
* सिंचाई में फर्टिगेशन मैथेड का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पानी के साथ खाद का भी बचत हो । लिक्विड फर्टिलाइजर जैसे नैनो फर्टिलाइजर का प्रयोग और बेहतर प्रयास है ।
हर घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य करना चाहिए, जिससे ग्राउंड वाटर को ज्यादा से ज्यादा रिचार्ज किया जा सके।
*इन बातों पर विशेष ध्यान दें*
समय समय पर जांच करें कि घर में पानी का रिसाव न हो ।
-नहाने के लिए अधिक पानी को व्यर्थ न करें ।
-ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें जिसमें पानी की खपत कम हो ।
-पानी को नाली में न बहाएं बल्कि इसे पौधों अथवा बगीचे को सींचने अथवा सफाई इत्यादि में लाए ।
-सब्जियों तथा फलों को धोने में उपयोग किए गए पानी को पौधों और गमलों को सींचने में करें।
-पानी के हौज को खुला न छोड़ें।
-तालाबों, नदियों अथवा समुद्र में कूड़ा विशेषकर पॉलिथिन न बहाए।
राजीव आचार्य के अनुसार ये छोटे छोटे प्रयास जलसंरक्षण: की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है । इस विषय पर सोच विकसित किया जाना अत्यंत आवश्यक है ।