Edited By Manisha rana, Updated: 05 Dec, 2025 03:25 PM

यमुनानगर जिले में थैलेसीमिया से जूझ रहे 121 मरीजों की हालत लगातार परेशान करने वाली बनती जा रही है। महंगी दवाओं की कमी, बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता और आयरन ओवरलोड को कंट्रोल करने वाली दवाओं की अनुपलब्धता ने हालात को और गंभीर बना दिया है।
यमुनानगर (सुरेंद्र मेहता) : यमुनानगर जिले में थैलेसीमिया से जूझ रहे 121 मरीजों की हालत लगातार परेशान करने वाली बनती जा रही है। महंगी दवाओं की कमी, बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता और आयरन ओवरलोड को कंट्रोल करने वाली दवाओं की अनुपलब्धता ने हालात को और गंभीर बना दिया है। पिछले तीन महीनों में जिले में तीन थैलेसीमिया मरीजों की मौत हो चुकी है, जिसने प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
मरीजों के परिजनों और स्वयं थैलेसीमिया पीड़ितों ने बातचीत में बताया कि शरीर में आयरन की बढ़ती मात्रा को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक फैक्टर-8 इंजेक्शन, हीमोफीलिया इंजेक्शन और डेजीरॉक्स (Kelphar) टेबलेट उपलब्ध नहीं हैं। जो दवाएं मिल भी रही हैं, वे ज्यादातर बजाज कंपनी की हैं, जिन्हें लेना बेहद दर्दनाक बताया जा रहा है। मरीज वर्षों से सिप्ला कंपनी की दवाओं पर निर्भर थे, जो comparatively कम दर्द देती हैं, लेकिन अब उपलब्ध नहीं हो पा रही।
पीड़ितों में थैलेसीमिया से ज्यादातर बच्चे
पीड़ितों में थैलेसीमिया से ज्यादातर बच्चे हैं। हर 15–20 दिन में रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया इन बच्चों के लिए किसी मानसिक और शारीरिक यातना से कम नहीं। अस्पताल की गलियों में हाथों में खून के पैकेट लिए यह मासूम बच्चे ऐसी पीड़ा झेल रहे हैं, जिसकी कल्पना आम व्यक्ति भी नहीं कर सकता।सिविल अस्पताल प्रबंधन भी नियमित रूप से मरीजों की सहायता करने का प्रयास करता है, लेकिन दवाओं की उपलब्धता सरकारी सप्लाई पर निर्भर होने के कारण राहत सीमित रह जाती है।
जिले में लगभग 120–121 थैलेसीमिया पेशेंट रजिस्टर्ड हैं
जिले में वर्तमान में लगभग 120–121 थैलेसीमिया पेशेंट रजिस्टर्ड हैं, जिनमें अधिकतर बच्चे शामिल हैं और उनका उपचार यहीं चल रहा है। इन बच्चों को महीने में तीन बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है। बार-बार ब्लड चढ़ने से शरीर में आयरन बढ़ जाता है, जिससे कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस आयरन को नियंत्रित करने के लिए विशेष दवा की जरूरत होती है। पिछले तीन महीनों में जिले में तीन थैलेसीमिया मरीजों की मौत भी हुई है। हालांकि यह मौतें दवा या इंजेक्शन की कमी की वजह से नहीं, बल्कि बीमारी की प्राकृतिक गंभीरता के कारण हुई हैं। फिर भी स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि इलाज का निरंतर उपलब्ध रहना बेहद जरूरी है।
अस्पताल में डेजीरॉक्स टैबलेट्स उपलब्ध हैं और इन्हें बच्चों को समय पर दिया जाता रहा है। इंजेक्शन और टैबलेट, दोनों की कमी की स्थिति लगभग समान है। हमारा जिला वेयरहाउस भी कैथल, हिसार और भिवानी जैसे अन्य वेयरहाउसों के साथ समन्वय कर रहा है ताकि दवाओं की आपूर्ति जारी रह सके। फिलहाल जिले में टैबलेट्स की थोड़ी कमी है। कैथल हेडक्वार्टर से बात की गई है, जहां भी सीमित स्टॉक है, इसलिए हम अन्य वेयरहाउस से दवाइयां मंगवाने की प्रक्रिया में हैं। उम्मीद है कि 10-12 दिनों के भीतर आवश्यक टैबलेट्स जिले में उपलब्ध हो जाएंगी।
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