गत वर्ष फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं में 68% की कमी आई, इस बार और अच्छा करेंगे: संजीव

Edited By vinod kumar, Updated: 15 Sep, 2020 05:01 PM

good work was done in haryana towards crop residue management last year

कृषि और किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल ने कहा कि हरसैक के उपग्रही चित्रों व रिपोर्ट के अनुसार पूर्व के वर्षों के मुकाबले गत वर्ष फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं में 68 प्रतिशत की कमी आई थी। उन्होंने कहा कि इस बार हमें इससे...

चंडीगढ़ (धरणी): कृषि और किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल ने कहा कि हरसैक के उपग्रही चित्रों व रिपोर्ट के अनुसार पूर्व के वर्षों के मुकाबले गत वर्ष फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं में 68 प्रतिशत की कमी आई थी। उन्होंने कहा कि इस बार हमें इससे भी आगे बढ़कर जीरो बर्निंग के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना है।

संजीव कौशल ने बताया की राज्य सरकार ने पर्याप्त मशीनें और परिचालन लागत के रूप में 1,000 रुपये प्रति एकड़ प्रदान करके, गैर-बासमती तथा बासमती की मुच्छल किस्म उगाने वाले छोटे और सीमांत किसानों की मदद की है। कौशल ने कहा कि आने वाले धान की कटाई के मौसम के मद्देनजर पराली जलाने के जीरो बर्निंग के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना है। 

फसल अवशेष प्रबंधन की दिशा में पिछले वर्ष अच्छा कार्य हुआ
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अनुपालन में फसल अवशेषों को जलाने से रोकने के लिए दिशा निर्देश दिए हैं। फसल अवशेष प्रबंधन की दिशा में पिछले वर्ष हरियाणा में अच्छा कार्य हुआ था। हरसैक के उपग्रही चित्रों व रिपोर्ट के अनुसार पूर्व के वर्षों के मुकाबले गत वर्ष फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं में 68 प्रतिशत की कमी आई थी। उन्होंने कहा कि इस बार हमें इससे भी आगे बढ़कर जीरो बर्निंग के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना है, जिसके लिए व्यापक स्तर पर योजना तैयार की जा रह है। उन्होंने निर्देश दिए कि लाल तथा पीले जोन में आने वाले जिन गांवों में कस्टमर हायरिंग सेंटर नहीं हैं व जिन से अभी तक कोई आवेदन प्राप्त नहीं हुए हैं वहां से जल्द से जल्द आवेदन करवाए जाएं।  

बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए गए
कौशल के अनुसार आईईसी (सूचना, शिक्षा और संचार) गतिविधियों जैसे गांव और खंड स्तरीय शिविरों और समारोहों, सोशल मीडिया जागरूकता और प्रदर्शन वैन की तैनाती करके बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए गए हैं। किसानों को इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के संचालन और रखरखाव के लिए प्रशिक्षित किया गया है और उनके खेतों में इन-सीटू प्रबंधन तकनीक का प्रदर्शन किया गया। कृषि विभाग द्वारा इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रमुख स्थानों पर होर्डिंग्स और बैनर भी लगाए गए हैं।

8 लाख मीट्रिक टन फसल अवशेष प्रबंधन प्रतिवर्ष किया जा रहा
प्रदेश में अवशेष प्रबंधन के लिए एक्ससीटू माध्यम से लगभग 8 लाख मीट्रिक टन फसल अवशेष प्रबंधन प्रतिवर्ष किया जा रहा है। प्रदेश में बायोमास फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 4 बायोमास पॉवर परियोजनाओं को अनुमति प्रदान की गई है। प्रदेश में अब तक संपीडि़त जैव गैस (कम्प्रेस्ड बायोगैस) के 66 आशय पत्र ऑयल कंपनियों को जारी किए गए हैं। इन प्लांटों के लगाए जाने से प्रतिवर्ष 22 लाख मीट्रिक टन की फसल अवशेष प्रबंधन हो सकेगा।

किसी भी काम को लीक से हटकर करने की हिम्मत जुटाई जाए तो नि:संदेह उसके परिणाम काफी सुखद और प्रेरक हो सकते हैं। यह बात कृषि पर बखूबी लागू होती है। देखने में आया है कि परम्परागत तरीके से खेती करने पर एक तरफ जहां उसकी लागत बढ़ जाती है, वहीं दूसरी तरफ किसान को उतनी पैदावार भी नहीं मिल पाती। जितनी मिलनी चाहिए। हरियाणा सरकार ने किसानों को परम्परागत खेती की बजाय आधुनिक तौर-तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करने के मकसद से कई तरह की पहल की हैं। ताकि किसान इन्हें अपनाकर कम खर्चे में अच्छी पैदावार ले सकें।   

धान की खेती महंगी
कौशल ने कहा कि अगर धान की खेती की बात की जाए तो यह न केवल किसान के लिए बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी काफी महंगी पड़ती है। धान की खेती में होने वाली पानी की खपत को अगर कुछ देर के लिए भूल भी जाएं तो भी पनीरी बनाने से लेकर खेत की तैयारी, पौध लगाने में लगने वाली मजदूरी, इसे बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर किया जाने वाला कीटनाशकों का छिडक़ाव और फिर इसकी कटाई-झड़ाई में फिर से लगने वाली मजदूरी, फिर इसे मंडी में ले जाने के खर्चे को मिलाकर देखा जाए तो हो सकता है कि यह किसान के लिए भी घाटे का सौदा साबित हो।

सीधी बिजाई अधिक फायदेमंद
देखा जाए तो प्रदेश के कई इलाकों में गिरता भूजल स्तर न केवल किसान के लिए बल्कि सरकार के लिए भी चिन्ता का सबब बना हुआ है। इससे निपटने और किसानों को दूसरी फसलें बोने के लिए प्रेरित करने के मकसद से सरकार द्वारा मेरा पानी-मेरी विरासत योजना चलाई जा रही है। इसके अलावा, किसानों को धान की सीधी बिजाई के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कद्दू करके पौध रोपने और सीधी बिजाई वाले खेतों के तुलनात्मक अध्ययन से पता लगा है कि सीधी बिजाई कहीं अधिक फायदेमंद हो सकती है।

धान की सीधी बिजाई से न केवल धान की पौध तैयार करने से रोपाई तक की लागत, जोकि करीबन 5000 से 7000 रुपये प्रति एकड़ है, बच जाती है बल्कि पैदावार पर भी कोई असर नहीं पड़ता। इसके अलावा, सीधी बिजाई वाले खेतों में 20 से 30 प्रतिशत तक पानी की भी बचत होती है। जिन किसानों ने पहले सीधी बिजाई की थी और किसी आशंका के चलते दोबारा से खेत तैयार कर कद्दू विधि द्वारा रोपाई की थी, अब वे अगले साल धान की सीधी बिजाई करने के पक्ष में हैं।

उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि जिला में पराली जलाने वाले रैड जोन को विशेष रूप से फोकस किया जाए और योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाए। पराली जलाने की घटनाएं न हों, इसके लिए निगरानी टीमों का गठन कर नोडल अधिकारी बनाये जाएं। उन्होंने कहा कि गांव स्तर पर पंचायतों व किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरुक करें। कौशल ने कहा कि जो किसान कस्टमर हायरिंग केंद्रों के माध्यम से उपकरण ले रहें, उनका ऑनलाइन सिस्टम तैयार करें। जिससे यह जानकारी प्राप्त की जा सके कि किसान उपकरणों का प्रयोग कर रहे हैं या नहीं।

कोरोना फैलाव के मद्देनजर पराली जलाने की घटनाओं पर पूर्ण अंकुश जरूरी
उन्होंने कहा कि कोरोना फैलाव के मद्देनजर पराली जलाने की घटनाओं पर पूर्ण अंकुश जरूरी है। क्योंकि वातावरण दूषित होने से अनेक तरह की श्वास संबंधी बीमारियों के फैलने की संभावना रहती है, साथ ही इससे कोरोना संक्रमण फैलने का भी अंदेशा बढ़ सकता है। हम सभी का दायित्व बनता है कि वायु प्रदूषण न हो इसके लिए ग्रामीणों को जागरूक करें और पर्यावरण प्रदूषण रोकने में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाएं। इसमें कृषि विभाग के साथ-साथ सभी विभाग किसानों को जागरूक करने में सहयोग करें।

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