हरियाणा के जन्म के साथ ही शुरू हो गई थी कांग्रेस में वर्चस्व की जंग

Edited By Deepak Paul, Updated: 05 Aug, 2018 10:58 AM

congress started with the birth of haryana

प्रदेश कांग्रेस में इस समय वर्चस्व की जंग चल रही है। 2 दिग्गजों के बीच चल रही यह जंग पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है। हरियाणा राज्य बनने के बाद से ही यह जंग लगातार चल रही है। इसी जंग के चलते राव बीरेंद्र सिंह से लेकर चौ. बंसी लाल तक ने अपनी अलग...

अम्बाला (नरेन्द्र वत्स): प्रदेश कांग्रेस में इस समय वर्चस्व की जंग चल रही है। 2 दिग्गजों के बीच चल रही यह जंग पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है। हरियाणा राज्य बनने के बाद से ही यह जंग लगातार चल रही है। इसी जंग के चलते राव बीरेंद्र सिंह से लेकर चौ. बंसी लाल तक ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी। कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने वाले नेताओं को आखिरकार फिर से कांग्रेस में आना पड़ा था। 

हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद हुए आम चुनावों के पश्चात झज्जर के विधायक पं. भगवद दयाल शर्मा प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने थे। उस समय अहीरवाल के कद्दावर नेता राव बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में केंद्रीय राजनीति में काफी मजबूत स्थिति में थे। उसी समय कांग्रेस में बगावत का दौर शुरू हो गया था। शर्मा की सरकार 143 दिन बाद ही गिर गई। चौ. देवी लाल उस समय कांगे्रस में थे। कांगे्रस में शर्मा के खिलाफ बगावत हो गई और राव बीरेंद्र सिंह ने अलग विशाल हरियाणा पार्टी का गठन कर लिया। राव बीरेंद्र सिंह पटौदी से अपनी पार्टी के विधायक बने और जाट नेताओं की मदद से प्रदेश के दूसरे सी.एम. बन गए। जाट नेताओं को गैर जाट सी.एम. ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं हुआ। सिर्फ 224 दिन बाद राव बीरेंद्र सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद 2 नवंबर, 1967 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इसी बीच चौ. देवी लाल, राव बीरेंद्र सिंह और चौ. बंसी लाल के बीच वर्चस्व की जंग तेज हो गई थी। चूंकि राव बीरेंद्र सिंह की पूरे दक्षिणी हरियाणा में मजबूत पकड़ थी, इसलिए इंदिरा गांधी ने खुद रेवाड़ी आकर राव बीरेंद्र सिंह को वापस कांग्रेस में शामिल करने के लिए तैयार किया था। 

22 मई, 1968 को चौ. बंसी लाल प्रदेश के तीसरे सी.एम. बने थे। इसके बाद भी कांग्रेस की फूट लगातार जारी रही। चौ. भजन लाल उनके धुर विरोधी बन चुके थे। चौ. देवी लाल अपनी अलग राह पर चल पड़े थे। चौ. बंसी लाल 2749 दिन तक प्रदेश के सी.एम. रहने के बाद भिवानी के कांग्रेसी विधायक बी.डी. गुप्ता को पार्टी हाईकमान ने सी.एम. बना दिया था। उनकी सरकार भी जाट नेताओं के कारण ज्यादा दिन नहीं चल पाई थी। चौ. देवी लाल कांगे्रस से अलग होकर जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। देवी, भजन और बंसी के बीच लगातार वर्चस्व की जंग चलती रही। देवी लाल और भजन लाल कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में भी चले गए थे। 22 जनवरी, 1980 में चौ. भजन लाल एक बार फिर कांग्रेस से सी.एम. बने। चौ. देवी लाल बाद में जनता दल में शामिल हो गए। कांगे्रस में वर्चस्व की जंग बाद में चौ. भजन लाल और बंसी लाल के बीच तेज हो गई थी। चौ. बंसी लाल की पार्टी हाईकमान पर पकड़ ढीली होने के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर हरियाणा विकास पार्टी बना ली। शराबबंदी के नारे को लेकर उन्होंने चुनाव लड़ा और 1996 में सरकार बनाई। उनकी सरकार करीब 3 साल तक ही चल पाई। बाद में उन्होंने भी अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया था।

अध्यक्ष और सी.एम. पद की रही जंग
कांग्रेस में सबसे बड़ी जंग चौ. भजन लाल और हुड्डा के बीच रही थी। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनावों से पहले चौ. भजन लाल कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा उस समय कांग्रेस के सांसद थे। भजन लाल के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी। ऐसा माना जा रहा था कि चौ. भजन लाल ही प्रदेश के सी.एम. बनेंगे, लेकिन कांग्रेस ने ऐन मौके पर हुड्डा के सिर सी.एम. का ताज रख दिया था। हालांकि चौ. भजन लाल के बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सी.एम. बनाकर उन्हें खुश करने के प्रयास किए गए थे। इसके बाद कांग्रेस में गुटबाजी और तेज हो गई थी। कुलदीप बिश्नोई अपने पिता के साथ हुए बर्ताव के कारण अपनी ही पार्टी की सरकार पर भेदभाव जैसे आरोप लगाने लग गए। आखिरकार कुलदीप ने भी कांगे्रस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी बना ली थी। बाद में कुलदीप भी कांग्रेस में वापस आ गए। 

अब तंवर और हुड्डा में चल रही लड़ाई
कुलदीप बिश्नोई के दोबारा कांग्रेस में शामिल होने के बाद हुड्डा के प्रति तेवर नरम पड़े हुए हैं, लेकिन अब असली जंग तंवर और हुड्डा के बीच चल रही है। हुड्डा हर हाल में विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश कांग्रेस की चौधर अपने हाथ में लेना चाहते हैं। इसके लिए उनके समर्थक और खुद वह पार्टी हाईकमान से मांग कर चुके हैं। हुड्डा की नजर में तंवर का नेतृत्व कांग्रेस को प्रदेश में जीत दिलाने में सक्षम नहीं है। तंवर का दावा है कि उन्होंने पूरे प्रदेश में पार्टी को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया है। वह खुद कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में प्रदेश के सी.एम. होने की दावेदारी पेश करेंगे। इन दोनों नेताओं ने अलग-अलग यात्राएं शुरू की हुई हैं। रणदीप सुर्जेवाला, कैप्टन अजय, कुमारी शैलजा व किरण चौधरी भी अपने अलग रास्ते पर चल रहे हैं। कांग्रेस के यह दिग्गज इस समय पार्टी का कम और खुद का जनाधार अधिक बढ़ाते नजर आ रहे हैं। 

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