अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के सरस के दौरान भारी भीड़ के चलते ट्रैफिक व्यवस्था चरमराई

Edited By Isha, Updated: 10 Dec, 2019 12:34 PM

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अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के सरस और शिल्प मेले के दौरान सोमवार को भारी भीड़ के चलते ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई। ड्यूटी पर तैनात हुए कर्मचारी आज कई स्थानों पर नदारद रहे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों......

कुरुक्षेत्र (धमीजा) : अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के सरस और शिल्प मेले के दौरान सोमवार को भारी भीड़ के चलते ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई। ड्यूटी पर तैनात हुए कर्मचारी आज कई स्थानों पर नदारद रहे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के पंडाल के पास गंदगी के ढेर जमा रहे, जहां महामारी फैलने का भय बना है। छठी पातशाही गुरुद्वारा चौक से बिरला मंदिर चौक तक वाहनों की लम्बी कतारें लगी रहीं।

कई स्कूली बच्चों को अव्यवस्था के चलते काफी मानसिक परेशानी झेलनी पड़ी। सुबह से लेकर सायं तक पर्यटकों व श्रद्धालुओं के आने का तांता लगा रहा। इतना ही नहीं, इस महोत्सव में लाखों पर्यटकों ने ब्रह्मसरोवर पर पहुंचकर जहां खरीददारी की, वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी खूब लुत्फ उठाया। इतना ही नहीं पर्यटकों ने राजस्थानी व्यंजनों, अमृतसरी कुल्छे और गुड़ के हलवे के साथ ताऊ बलजीत की जलेबी का भी स्वाद चखा। 

टैराकोटा के स्टाल को चुना उत्कृष्ट स्टाल के रूप में
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में सोमवार के उत्कृष्टï स्टाल के रूप में आशा महिला स्वयं सहायता समूह के टैराकोटा के स्टाल को सर्वश्रेष्ठï स्टाल चुना गया। इस स्टाल की संचालिका माया देवी है। इस स्टाल पर मिट्टी से गणेश चौकी, शिवजी फव्वारे व घर के सजावटी समान आदि तैयार किए जाते हैं। इस स्टाल को अतिरिक्त उपायुक्त पार्थ गुप्ता के मार्गदर्शन में सरस मेला प्रबंधन टीम के सदस्यों ने उत्कृष्ट स्टाल के रूप में चुना है। आशा महिला स्वयं सहायता समूह की संचालिका माया देवी ने बताया कि वह पिछले 5 सालों से इस महोत्सव में आ रही है। उनके बनाए उत्पादों को पर्यटकों द्वारा खूब पसंद किए जा रहे हैं। 

चिट्ठी पर बनी पेंटिंग की कीमत रखी 2500 रुपए
उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक कला केन्द्र पटियाला द्वार आबंटित स्टाल नम्बर 14 पर राजस्थान के किशनगढ़ से आए शिल्पकार पुष्पेन्द्र सिंह ने विशेष बातचीत करते हुए कहा कि उनका जन्म शिल्पकला के बीच में ही हुआ है। हालांकि उनके पिता शिल्पकार हंसराज को राजस्थान सरकार की तरफ से जिलास्तरीय अवार्ड देकर भी सम्मानित किया जा चुका है। अपने परिवार की शिल्पकला से कुछ हटकर करने की तमन्ना दिल में लिए पुष्पेन्द्र सिंह ने न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को सहेजा, अपितु इस विरासत को और सुंदर और मनमोहक बनाने का काम किया।

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