लोकसभा चुनाव: महिलाएं राजनीतिक पार्टियों की उपेक्षा का शिकार

Edited By Shivam, Updated: 14 Mar, 2019 12:37 PM

lok sabha elections political parties ignore women prejudice

संसदीय चुनाव जीतने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या में मामूली सुधार है। 2009 में संसदीय चुनाव में चुनाव जीतने वाले 59 उम्मीदवार थे। मौजूदा चुनावों में लोकसभा में 61 महिलाओं ने सीटें हासिल की हैं। यह अब तक की महिलाओं द्वारा जीती गई सीटों की सबसे...

अम्बाला (मीनू): संसदीय चुनाव जीतने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या में मामूली सुधार है। 2009 में संसदीय चुनाव में चुनाव जीतने वाले 59 उम्मीदवार थे। मौजूदा चुनावों में लोकसभा में 61 महिलाओं ने सीटें हासिल की हैं। यह अब तक की महिलाओं द्वारा जीती गई सीटों की सबसे अधिक संख्या है और इसमें कुल 543 सीटों में से 11.23 प्रतिशत शामिल हैं। अब तक का सबसे कम 1977 में हुआ था जब केवल 19 महिला प्रतिनिधियों ने चुनाव जीता था। 2009 के चुनाव में हरियाणा में दो और मेघालय में एक महिला उम्मीदवार जीती थीं। 

मौजूदा चुनावों में 8,136 महिलाओं में से 636 महिलाएं थीं। 2009 के चुनावों में कुल 8,070 में से 556 महिला प्रतियोगी थीं। गत चुनावों में महिला उम्मीदवारों की पुरुष उम्मीदवारों की तुलना में बेहतर स्ट्राइक रेट थी। दस प्रतिशत महिला उम्मीदवारों ने पुरुष उम्मीदवारों के लिए 6 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट से चुनाव जीता। शिक्षा की बात आते ही महिला उम्मीदवारों की भी पुरुष उम्मीदवारों पर बढ़त है। बत्तीस प्रतिशत महिला सांसदों के पास स्नातकोत्तर या डॉक्टरेट की डिग्री है, 30 प्रतिशत पुरुष सांसदों के पास समान शैक्षिक योग्यता है। 

पी.आर.एस. सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि वर्तमान चुनावों में चुनी गई महिला सांसद पुरुष सांसदों की तुलना में कम हैं। महिला सांसदों की औसत आयु 47 वर्ष है लेकिन पुरुष सांसदों की औसत आयु 54 वर्ष है। साथ ही, ऐसी कोई महिला सांसद नहीं हैं जो 70 वर्ष से अधिक आयु की हैं। सात प्रतिशत पुरुष सांसद 70 वर्ष से अधिक के हैं। 

मतदाता ने नहीं जताया भरोसा महिला उम्मीदवारों पर
2014 के लोकसभा चुनावों में  आजाद प्रत्याशियों के तौर पर कई महिलाओं ने नामांकन भरा था और चुनाव भी लड़ा था परन्तु प्रदेश की जनता ने किसी भी महिला प्रत्याशी पर भरोसा नहीं जताया। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी नहीं है। विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या सम्मानजनक है। परन्तु फिर भी किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अभी तक महिला प्रत्याशियों की संख्या को 33 प्रतिशत आरक्षण की सीमा तक नहीं पहुंचाया है। विभिन्न राजनीतिक पाॢटयों की कद्दावर नेत्रियां अपने क्षेत्र में पूरी सक्रियता से काम कर रही हैं। फिर भी अभी इन पर उतने दाव नहीं लगाए गए हैं जितने कि एक पुरुष उम्मीदवार को हारने के बाद भी मौके दिए जाते हैं।

इनैलो ने 2 एवं कांगे्रस ने केवल 1 महिला को दी थी टिकट
अम्बाला में मात्र एक महिला उम्मीदवार को इनैलो ने टिकट दी थी। कुरुक्षेत्र में 2 महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ी थी जिसमें से एक ‘आप’  की प्रत्याशी थी और दूसरी इंडियन बहुजन संदेश पार्टी की ओर से। हिसार से एकमात्र महिला उम्मीदवार राष्ट्रवादी परिवर्तन पार्टी की ओर से चुनाव लड़ी थी। करनाल सीट से मात्र 2 महिलाएं आजाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरी थीं। सिरसा में कोई महिला प्रत्याशी नहीं थी। सोनीपत में भी कोई महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ी थी। भिवानी महेंद्रगढ़ से भी एकमात्र महिला को इनैलो पार्टी ने ही टिकट दी थी जबकि श्रुति चौधरी को कांग्रेस ने मैदान में उतारा था। रोहतक सीट पर कोई भी महिला प्रत्याशी नहीं थी। गुडग़ांव में एकमात्र महिला निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ी थी। फरीदाबाद में केवल एक महिला ने जनता दल यूनाइटिड पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा था।
 

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