Edited By Vivek Rai, Updated: 03 Jul, 2022 08:10 PM
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि आपराधिक और विभागीय कार्यवाही पूरी तरह से अलग हैं और दोनों अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते है। दोनों का अलग-अलग उद्देश्य हैं।
चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि आपराधिक और विभागीय कार्यवाही पूरी तरह से अलग हैं और दोनों अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते है। दोनों का अलग-अलग उद्देश्य हैं। हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने एक एएसआई को पद पर बहाल के एकल बेंच के आदेश को चुनौती देने वाली हरियाणा सरकार की अपील स्वीकार करते हुए यह आदेश जारी किया। इसी के साथ खंडपीठ ने एकल बेंच के आदेश को भी रद कर दिया है।
रोहतक के एएसआई के मामले में कोर्ट ने सुनाया फैसला
रोहतक सीआईए स्टाफ में तैनात एक एएसआई को 2014 में सतर्कता ब्यूरो द्वारा रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद रोहतक के एसपी ने विभागीय जांच के बाद 2015 में एएसआई को सेवा बर्खास्त कर दिया था। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए एएसआई को आरोप से मुक्त कर दिया था। इसके बाद एएसआई ने सेवा बहाली के लिए पुलिस विभाग को आवेदन किया। लेकिन उसकी मांग को खारिज कर दिया गया। इसके बाद एएसआई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सेवा बहाल करने की मांग की। एकल बेंच ने उसकी याचिका स्वीकार करते हुए अक्टूबर 2019 में सरकार को आदेश दिया कि वे एएसआई को बहाल करें व उसे दो महीने के भीतर सभी लाभ जारी करें।
हाईकोर्ट ने एकल बेंच के आदेश को रद्द कर सुनाया फैसला
इसके खिलाफ हरियाणा सरकार ने हाईकोर्ट की डिविजन बेंच में एकल बेंच के आदेश को रद्द करने की गुहार लगाई । सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि भले ही ट्रायल कोर्ट ने एएसआई को दोषमुक्त कर दिया लेकिन उस पर लगे गंभीर आरोप के चलते विभागीय जांच की गई व अनुशासनात्मक कार्रवाई के चलते उसे नौकरी पर नहीं रखा जा सकता। सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि एकल बेंच ने तथ्यों को अनदेखा कर यह आदेश जारी किया है।सरकार का पक्ष सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही में ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी करने के बाद विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई से आरोपी बरी नहीं माना जा सकता। खंडपीठ ने कहा कि साक्ष्य के नियम जो आपराधिक मुकदमे पर लागू होते हैं, कई बार साक्ष्य के अभाव में आरोपित बरी हो जाते हैं, लेकिन विभागीय अनुशासनिक जांच के नियम अलग होते है। कोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक मामले में आरोपी का बरी होना नियोक्ता को अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के अधिकार के प्रयोग करने से नहीं रोकता। इसी के साथ हाई कोर्ट ने सरकार की अपील स्वीकार करते हुए एकल बेंच का आदेश रद्द कर दिया व आरोपी की नौकरी बहाली की मांग खारिज कर दी।
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