Haryana Elections : नूंह की पहली महिला उम्मीदवार राबिया किदवई के सामने कम नहीं हैं चुनौतियां

Edited By Rahul Singh, Updated: 25 Sep, 2024 01:40 PM

haryana elections rabia kidwai is the first woman candidate from nuh

देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार किए जाने वाले हरियाणा के मुस्लिम बहुल नूंह में राबिया किदवई सामाजिक वर्जनाओं को पीछे छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली पहली महिला उम्मीदवार बनी हैं। नूंह एक ऐसा इलाका है, जहां आपको बिना पर्दे के शायद ही कोई महिला...

नूंह (हरियाणा) : देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार किए जाने वाले हरियाणा के मुस्लिम बहुल नूंह में राबिया किदवई सामाजिक वर्जनाओं को पीछे छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली पहली महिला उम्मीदवार बनी हैं। नूंह एक ऐसा इलाका है, जहां आपको बिना पर्दे के शायद ही कोई महिला दिखाई दे। ऐसे में किसी राबिया का आगे आना और चुनाव लड़ना बहुत बड़ी बात है। गुरुग्राम की 34 वर्षीय व्यवसायी महिला को अपने सामने आने वाली चुनौतियों का एहसास है, लेकिन वह यह भी जानती हैं कि वह बदलाव का प्रतीक बनकर उभरी हैं और यही कारण है कि उन्हें लगता है कि हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनावों में लोग उनके लिए वोट करेंगे। राबिया पूर्व राज्यपाल अखलाक-उर-रहमान किदवई की पोती हैं और उन्हें आम आदमी पार्टी (आप) ने उम्मीदवार बनाया है। उनके खिलाफ कांग्रेस के दिग्गज विधायक आफताब अहमद और इंडियन नेशनल लोकदल के ताहिर हुसैन हैं, जिनका स्थानीय लोगों पर अच्छा खासा प्रभाव है। 

वोट मांगने में व्यस्त हैं राबिया

दिग्गज उम्मीदवारों से मुकाबला होने के अलावा, उन्हें अन्य चुनौतियों जैसे गहरी जड़ें जमाए हुए लैंगिक पूर्वाग्रह, नूंह में उनके लिए बाहरी व्यक्ति होने का ठप्पा और मतदाताओं में जागरूकता व शिक्षा के अभाव से भी पार पाना है। किदवई कहती हैं कि वह अपने परिवार की राजनीतिक विरासत और खुद के महिला होने के नाते चुनावी लड़ाई के लिए तैयार हैं। मतदान का दिन नजदीक आने के साथ ही वह अपने और पार्टी के लिए वोट मांगने में व्यस्त हैं। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा' को दिए साक्षात्कार में कहा, "यहां की महिलाएं मुझे बताती हैं कि वे अपनी समस्याओं को लेकर शायद ही कभी किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यालय गई हैं। हालांकि लैंगिक भेदभाव की स्थिति अब वैसी नहीं रही जैसी दशकों पहले हुआ करती थी, लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि अब भी किसी महिला का चुनाव लड़ना या किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यालय में अपनी समस्याएं या अनुरोध लेकर जाना बहुत आम बात नहीं है।" 

PunjabKesariमतदाता विकल्प तलाश रहे हैं

उन्हें अपने अभियान के दौरान पता चला कि "जितना मैंने सोचा था, पूर्वाग्रह उससे कहीं ज़्यादा गहरी जड़ें जमा चुका है।" साल 2005 में तत्कालीन गुड़गांव और फरीदाबाद के कुछ हिस्सों को मिलाकर नूंह जिला बनाया गया था। इसमें तीन विधानसभा क्षेत्र हैं: नूंह, फिरोजपुर झिरका और पुन्हाना। राबिया ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ''हां, मैं नूंह में एक बाहरी व्यक्ति हूं और यहां कभी नहीं रही। लेकिन मैं मुसलमान हूं और नूंह को गुड़गांव जैसा बनाने के लिए मेरे पास क्षमता है, खासकर शिक्षा के मामले में।'' उनका दावा है कि बदलाव की इच्छा से प्रेरित होकर पुरुष और महिलाएं दोनों उनका समर्थन कर रहे हैं, खासकर 2023 के नूंह दंगों के बाद, जिसकी वजह से कई लोगों ने खुद को राजनीतिक रूप से परित्यक्त महसूस किया था। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि सांप्रदायिक हिंसा किसी का प्रचार स्टंट था। जिन लोगों ने सांप्रदायिक हिंसा भड़काई...वे निर्दयी लोग थे और यही कारण है कि मतदाता विकल्प तलाश रहे हैं।" उन्होंने कहा कि उनके दादा को क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों के लिए जाना जाता है, जिसमें शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज की स्थापना भी शामिल है। हालांकि, उनका कहना है कि कुल मिलाकर इस क्षेत्र में विकास की कमी है और यह अत्यंत पिछड़ा हुआ है जबकि यह दिल्ली से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर है। राबिया ने कहा, "सोहना और गुड़गांव में जिस तरह का विकास हुआ है, यह क्षेत्र उससे कोसों दूर है। अगर आप यहां के गांवों में जाएंगे तो आपको वहां विकास और सुविधाओं की कमी देखकर आश्चर्य होगा।" 

वैसे तो नूंह से अभी तक किसी महिला ने चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन शमशाद 1977 में फिरोजपुर झिरका से चुनाव लड़ने वाली पहली महिला उम्मीदवार थीं। उन्हें जनता पार्टी ने मैदान में उतारा था। 1987 में ललिता देवी ने फिरोजपुर झिरका से चुनाव लड़ा और 1999 में ममता ने। दोनों ने ही निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा। पुन्हाना से नौक्षम चौधरी ने 2019 में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह चुनाव हार गईं। 2023 में वह राजस्थान के कामन से चुनी गईं। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए इनेलो ने पुन्हाना से दयावती भड़ाना को मैदान में उतारा है। नूंह के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से कोई भी महिला निर्वाचित नहीं हुई है। 1966 में पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा राज्य में लिंगानुपात के मामले में सबसे खराब स्थिति है। यहां से अब तक सिर्फ 87 महिलाएं ही विधानसभा पहुंची हैं। हरियाणा में कभी भी कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं रही। हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव पांच अक्टूबर को होंगे और मतगणना आठ अक्टूबर को होगी। 

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