जान जोखिम में डाल स्कूल जाने को मजबूर बच्चे

Edited By kamal, Updated: 27 Apr, 2019 10:30 AM

children forced to go to school at risk

जिले में शासन-प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। जिम्मेदारों की लापरवाही...

यमुनानगर(नेहा): जिले में शासन-प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। जिम्मेदारों की लापरवाही की वजह से हजारों बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर स्कूलों में पहुंचना पड़ रहा है। इसके लिए शासन-प्रशासन ही नहीं बच्चों के अभिभावक भी पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। शहर के निजी स्कूलों में पढऩे वाले अधिकतर बच्चों को ढोने के लिए खस्ताहाल वाहनों का प्रयोग किया जा रहा हैं।

शहर की सड़कों पर सुबह स्कूलों में आने व दोपहर को जाने के समय पर सैंकड़ों खस्ताहाल ऑटो, क्वालिस व बस बच्चों से भरे नजर आती हैं। अधिकतर ऑटो में बच्चे बुरी तरह से भरे होते हैं। इतना ही नहीं बच्चों के बैग ऑटो व दूसरे वाहनों की छतों पर रखे होते हैं। इन गाडिय़ों में बच्चों के बैग्स गाड़ी की छतों से उतारकर देने वाला कोई नहीं होता। बच्चे खुद ही अपने बैग गाडिय़ों की छतों से उतारते देखे जा रहे हैं लेकिन सब कुछ जानते व देखते हुए प्रबंधन चुप हैं।

लापरवाही से चलाते हैं वाहन
स्कूली बच्चों को ढो कर ले जाए जा रहे निजी वाहनों के वाहन चालक अक्सर लापरवाही से वाहन चलाते देखे गए हैं। अक्सर ये वाहन ज्यादा व तेज गति से सड़कों पर दौड़ते नजर आते हैं। इस बारे में न तो बच्चों के अभिभावक वाहन चालकों को सचेत कर रहे हैं और न ही स्कूल प्रशासन।
 
अधिकारियों को बच्चों की नहीं चुनावों की चिंता
जब इस बारे में आर.टी.ए. सुरेन्द्र कुमार से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों में बच्चों को ढो रहे निजी वाहनों के हालात खराब हैं। अभी चुनावों में व्यस्त होने के कारण इनके खिलाफ कार्रवाई करने का समय नहीं है। चुनाव खत्म होते ही कार्रवाई की जाएगी।

यातायात विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई
इन सब वाहनों पर यातायात विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही हैं। नियम के मुताबिक 1 ऑटो में केवल 3 सवारियां ही अलाऊड होती हैं, लेकिन सरेआम 1-1 ऑटो में 14-15 बच्चों को बिठाया जाता है। विभाग की ओर से इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

शिक्षा विभाग व जिला प्रशासन ही जिम्मेदार 
इस बारे में जब बच्चों के अभिभावकों से बात की गई तो उनका कहना है कि निजी स्कूलों की ओर से शिक्षा के नाम पर मोटी फीसें ली जा रही हैं। स्कूल वाले बच्चों की बस सॢवस की भी मोटी फीस लेते हैं। जो वाहन मिलते हैं वे उसी में ही अपने बच्चों को स्कूल से लाने ले जाने की व्यवस्था कर देते हैं। उनका कहना है कि इन सबके लिए शिक्षा विभाग व जिला प्रशासन ही जिम्मेदार है, जो सब कुछ जानते हुए भी अंजान बना हुआ है।

ठूंस-ठूंस कर भरे जाते हैं बच्चे
खस्ता हाल वाहनों में बच्चे ठूंस ठूंस कर भरे जाते हैं। गाडिय़ों में इतनी जगह भी नहीं होती कि बच्चे अपने बैग अपने साथ रख सकें। बच्चों के बैग गाडिय़ों की छतों पर रखे होते हैं। यहां तक कि बच्चे अपने बैग छतों से खुद ही उतारते हैं क्योंकि इन गाडिय़ों में कोई चालक का सहायक नहीं होता।

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