Edited By Deepak Paul, Updated: 31 Jan, 2019 10:21 AM

4 रोज पहले जिला के गांव च_ा में घर के बाहर खेल रही 2 वर्षीय मासूम बच्ची को आवारा कुत्ते ने नोच डाला। जख्मी हुई बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई। इससे कुछ साल पहले भी रानियां क्षेत्र के गांव बाहिया में आवारा कुत्तों ने 10 वर्षीय बच्ची को अपना शिकार...
सिरसा: 4 रोज पहले जिला के गांव च_ा में घर के बाहर खेल रही 2 वर्षीय मासूम बच्ची को आवारा कुत्ते ने नोच डाला। जख्मी हुई बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई। इससे कुछ साल पहले भी रानियां क्षेत्र के गांव बाहिया में आवारा कुत्तों ने 10 वर्षीय बच्ची को अपना शिकार बनाया था। इसके अलावा आवारा कुत्ते 50 से अधिक हिरणों को अपना शिकार बना चुके हैं, जबकि हर साल 40 से अधिक लोग कुत्तों की हैवानियत से जख्मी होते हैं।
सबसे ङ्क्षचताजनक पहलू यह है कि सिरसा में पूरे प्रदेश में सबसे अधिक आवारा कुत्ते हैं और ये कुत्ते अक्सर ङ्क्षहसक हो जाते हैं। इन कुत्तों ने लोगों को खौफजदा किया हुआ है। गांवों की फिरनियों में आने वाली हड्डारोड़ी में मरे हुए पशुओं का मांस खाने के बाद यह कुत्ते ङ्क्षहसक हो जाते हैं।दरअसल सूबे में प्रत्येक गांव में आवारा कुत्ते अब दिन-प्रतिदिन संकट बनते जा रहे हैं। प्रदेश में इस वक्त करीब 1.78 लाख आवारा कुत्ते हैं। कुत्तों के चलते आदमपुर एवं सिरसा सरीखे इलाके जहां हिरणों की संख्या बहुतायत है, हिरण कुत्तों का शिकार हो रहे हैं। सिरसा जिले के गांव जंडवाला में पिछले कुछ अर्से में ही एक दर्जन हिरणों को कुत्तों ने नोचकर मार डाला। ऐसा ही आलम आदमपुर में है। कुछ दशक पहले गांवों में कुत्तों को मारने की मुहिम चली थी पर कुछ अर्सा पहले जानवरों के मारने पर प्रतिबंध के बाद कुत्ते जैसे जानवरों की तादाद में बेज बढ़ौतरी हुई है। 6500 के करीब गांवों वाले सूबे में करीब 1.78 लाख से अधिक कुत्ते हैं। इस लिहाज से प्रत्येक गांव में औसतन 28 कुत्ते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कुत्तों के आदमी को काट लेने से व्यक्ति को रैबीज हो जाता है जिससे उसकी मौत भी हो जाती है। पशुपालन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कुत्तों को पकडऩे का भी अभी तक कोई प्रोविजन नहीं है। वहीं वन्य प्राणी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वन विभाग के पास कुत्तों को पकडऩे का प्रोविजन नहीं है।
लगभग प्रत्येक गांव में गांव की फिरनी के पास या फिर गांव की बगल में ही बनी हैं हड्डारोडिय़ां ङ्क्षचताप्रद बात यह है कि लगभग प्रत्येक गांव में गांव की फिरनी के पास या फिर गांव के बगल में ही हड्डारोडिय़ां बनी हुई हैं। यह वह स्थान होता है जहां पर गांव के लोग अक्सर अपने गाय-भैंस, बैल को मरने के बाद फैंक जाते हैं। आवारा कुत्तों का झुंड यहां पर मरे हुए जानवरों का मांस खाता है और ऐसे में ये कुत्ते बेहद ङ्क्षहसक हो जाते हैं। यही वजह है ये कुत्ते आदमखोर हो जाते हैं और जानवरों और यहां तक कि बच्चों पर टूट पड़ते हैं पर अब इन कुत्तों को मारने पर लगे प्रतिबंध के बाद सरकार एवं नौकरशाह भी असमंजस में हैं कि आखिर इनका क्या किया जाए। वैसे यहां बता दें कि कुछ अर्सा पहले काले हिरणों पर कहर बनकर बरप रहे आवारा ङ्क्षहसक कुत्तों से मुक्ति के लिए गांव जंडवाला की पंचायत ने प्रस्ताव पारित कर प्रशासन एवं वन्य प्राणी महकमे को गुहार लगाई थी पर वन विभाग के पास कुत्तों को पकडऩे का कोई प्रोविजन न होने के चलते समस्या का समाधान नहीं हो सका। '