पिहोवा के कार्तिक मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश की है मनाही

Edited By Updated: 27 Jan, 2016 07:52 PM

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पिहोवा के तीर्थ पर स्थित कार्तिक महाराज के मन्दिर में भी महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। सदियों से यह

कुरुक्षेत्र (रणदीप रोड) :  पिहोवा के तीर्थ पर स्थित कार्तिक महाराज के मन्दिर में भी महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। सदियों से यह भ्रान्ति फैलाई गई है कि अगर कोई महिला कार्तिक महाराज की पिंडी के दर्शन करेगी तो  विधवा हो जाएगी। इस जगह बाकायदा मन्दिर के प्रवेश द्वार पर यह लिखा गया है कि मन्दिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध है।

मंदिर में महिलाओं का प्रवेश न हो सके इसके लिए बकायदा बोर्ड लगाए हुए हैं। मन्दिर के पुरोहित के अनुसार करीब 40 साल पहले एक महिला ने कार्तिक महाराज के मन्दिर में प्रवेश किया था। थोड़े ही दिनों में ही वह विधवा हो गयी थी। आज भी महिलाओं को मन्दिर के बाहर से ही माथा टेक कार्तिक महाराज का आशीर्वाद लेना पड़ता है। पुरोहित का कहना है कि इस मन्दिर में शिव पुत्र कार्तिक पिंडी रूप में विराजित हैं। जब कार्तिक ने मां पार्वती से क्रोधित हो अपने शरीर का मांस और रक्त अग्नि को समर्पित कर दिया तब भगवान शिव ने कार्तिक को पृथुदक तीर्थ पर जाने का आदेश दिया। तब कार्तिक के गर्म शरीर को शीतलता देने के लिए ऋषि मुनियों ने सरसों का तेल उन पर चढ़ाया और कार्तिक देव इसी जगह पिंडी रूप में विराजित हो गये। तब से आज तक कार्तिक महाराज की पिंडी पर सरसों का तेल चढ़ाने की भी परम्परा चली आ रही है।

बताया जाता है कि इसका पुराणों और उपनिषदों में भी वर्णन है,लेकिन किसी भी ग्रन्थ में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध का वर्णन नहीं है। सदियों से महिलाओं को इस मन्दिर में प्रवेश क्यों नहीं होने दिता जाता यह आज भी समझ से परे है।

महिलाओं ने कार्तिक मन्दिर में उनके प्रवेश पर लगे प्रतिबन्ध को महिलाओं का अपमान कहा। उनका कहना है कि वैसे तो सरकार बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना का ढोल पीट रही है,लेकिन मन्दिर में इस तरह महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध समझ से परे  है। जो महिला मन्दिर में प्रवेश करती है उसे मन्दिर के गेट पर ही समझा दिया जाता है कि उसे आगे नहीं जाना है। इसे कुछ लोगों द्वारा फैलाई गयी दहशत या अन्धविश्वास का असर कहा जा सकता है। शिक्षित महिलाएं भी सदियों पुराणी परम्परा को यों ही चलने देने की बात कहती हैं,लेकिन कुछ महिलाएं इस अन्धविश्वास और झूठ के विरोध में आवाज उठा रही हैं। उनका कहना है की सरकार अन्धविश्वास फैलाने वाली ऐसी परम्पराओं को बदले,ताकि महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर सम्मान मिल सके।

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