मानवता की मिसाल : बीमारी से पल-पल मर रहा था गरीब, ग्रामीणों ने 70 लाख का चंदा इकट्ठा कर बदलवा दिया फेफड़ा और दिल

Edited By Mohammad Kumail, Updated: 19 Sep, 2023 02:36 PM

villagers collected donations of rs 70 lakh and got lungs and heart replaced

अपने परिवार के लिए तो लोग बहुत कुछ करते हैं, लेकिन किसी गैर के लिए कुछ  करना बहुत बड़ी बात है। वह भी तब जब खर्चा 70 लाख का हो। यमुनानगर के नया गांव के निवासी जितेंद्र कंबोज जिनके दोनों फेफड़ों एवं हृदय का ट्रांसप्लांट किया गया...

यमुनानगर (सुरेंद्र मेहता) : अपने परिवार के लिए तो लोग बहुत कुछ करते हैं, लेकिन किसी गैर के लिए कुछ  करना बहुत बड़ी बात है। वह भी तब जब खर्चा 70 लाख का हो। यमुनानगर के नया गांव के निवासी जितेंद्र कंबोज  जिनके दोनों फेफड़ों एवं हृदय का ट्रांसप्लांट किया गया। इसके लिए सामाजिक लोगों एवं संस्थाओं ने भरपूर योगदान दिया। जिसकी बदौलत आज जितेंद्र सामान्य जीवन जीने लगा है। 

यमुनानगर के नया गांव के निवासी जितेंद्र कंबोज अब लगभग 8 महीने बीतने के बाद एक बार फिर वह अपना सामान्य जीवन जीते हुए अपने रोजमर्रा के कार्य कर रहे हैं। एक लोअर फैमिली से संबंध रखने वाले जितेंद्र को देखने उनके गांव में रविवार को स्वस्थ्य विभाग की टीम पहुंची। स्वास्थ्य विभाग की टीम में मुख्य रूप से सेक्टर-17 डिस्पेंसरी के इंचार्ज डॉक्टर प्रतीक एवं उनके अन्य सहयोगी शामिल थे। इस ट्रांसप्लांट में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अतिरिक्त पूरा गांव वहां जमा हो गया और सभी ने अपने-अपने अनुभव जो इस दौरान उनके सामने आए सांझा किए। 

लगभग आठ माह पहले यह ट्रांसप्लांट चेन्नई के एक अस्पताल में हुआ था और उसके बाद से लगातार जितेंद्र का फॉलोअप किया जा रहा है। दो बार खुद भी जितेंद्र को चेन्नई स्थित अस्पताल जाना पड़ा। अब वह बिल्कुल स्वस्थ है तथा डॉक्टर द्वारा बताई गई गाइडलाइन के अनुसार अपना जीवन जी रहे हैं। 

बचपन से ही उनके दिल में छेद था लेकिन आर्थिक स्थिति एवं अज्ञानता के कारण उस समय किसी बड़े अस्पताल में वह इलाज नहीं करवा सके और किसी तरह जीवन की गाड़ी चलती रही। अब जब पानी सर के ऊपर से चला गया तब क्षेत्र के लोग ही देवता बन कर उनके सामने आए।

एम्स एवं पीजीआई के डॉक्टरों ने खड़े कर दिए थे हाथ

यदि जितेंद्र कंबोज के परिवार की बात की जाए तो उनके पिता धूम सिंह एक छोटे से किसान है और उनके पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह अपने बेटे का इलाज करवा सकते। जिस व्यक्ति की जेब में कुछ भी न हो और उसे बता दिया जाए कि उसके बेटे के इलाज पर 70 लाख रुपए लगेंगे तो ऐसे में स्वाभाविक है कि उसके पांव ताले की जमीन तो खिसकेगी ही, साथ ही साथ उसे सदमा भी लगेगा। उन्होंने अपने बेटे को ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट आफ साइंस दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ के अतिरिक्त न जाने कितने अन्य अस्पतालों में दिखाया लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर दिये।  यमुनानगर के सेक्टर-17 डिस्पेंसरी के इंचार्ज डॉ प्रतीक ने उन्हें चेन्नई स्थित उस अस्पताल में जाने की सलाह दी, जहां वह कभी पहले अपने पिताजी को भी इलाज के लिए लेकर गए थे। क्योंकि उन्हें भी कुछ इसी प्रकार की समस्या थी। अस्पताल में पहुंचने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें 70 लाख रुपए का खर्च बताया, जिसे सुनकर उन्हें सदमा लगा। क्योंकि उन्होंने तो कभी 70 लाख रुपए देख भी नहीं थे। उनका कहना था कि उनके पास समय अभी केवल 2 से 3 महीने का था क्योंकि सभी डॉक्टरों ने कहा हुआ था कि केवल इतनी ही जिंदगी अब उनकी बची है। ऐसे में वह हताश और निराश होकर अपने घर वापस लौटे। एक लोअर  क्लास परिवार के लोग 70 लाख रुपए इलाज पर नहीं खर्च कर सकते और ना ही किसी प्रकार से भी इतने पैसे का उनके पास इंतजाम हो सकता।

हताश और निराश पिता धूम सिंह क्षेत्र के ही समाज सेवक रोशन लाल कंबोज एवं गांव के ही धर्मवीर तथा अन्य के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचे और उन्हें बेटे से संबंधित सारे मामले की जानकारी दी। पूरे गांव को भी इस बारे में पता चल गया कि जितेंद्र के इलाज पर 70 लाख रुपए लगेंगे। इसके साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता एवं उद्योगपति रोशन कंबोज, डॉक्टर प्रतीक, धरम वीर, अनुज एवं अन्य गांव वासियों ने मिलकर इस बारे व्यवस्था बनाने का प्रण लिया। इसने कार्य को करने के लिए रोशन लाल कंबोज ने अपने परिचित एवं मित्रों के बीच एक मुहिम छेड़ दी और पैसा इकट्ठा करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कुछ ही समय में उन्होंने लगभग 45 लख रुपए एकत्रित कर लिए, जिससे उनका हौसला बढ़ गया और उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए परिजनों को कहा कि वह ऑपरेशन की तैयारी करवाएं। पैसे की तमाम व्यवस्था का जिम्मा उनका है। रविवार को स्वस्थ विभाग की टीम के साथ रोशन लाल कंबोज एवं अन्य समाज सेवक भी पहुंचे और उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्होंने यह सारी व्यवस्था गांव वासियों और अपने दोस्तों के सहयोग से की है। उन्होंने बताया कि लोगों ने ₹10 से लेकर 10 हजार एवं लाखों रुपए तक की मदद की। फेफड़े एवं दिल के ट्रांसप्लांट के बाद जब अस्पताल से जितेंद्र की छुट्टी की गई तब ₹5 लाख की कमी रह गई। अस्पताल प्रशासन ने किसी तरह 70 लाख रुपए के बिल में से ₹1 लाख केवल कम किए और शेष का इंतजाम फिर रोशन ने खुद से किया। इस प्रकार मानवता के इस कार्य को संपन्न किया गया जिसके चलते अब जितेंद्र अपना सामान्य जीवन जी रहा है।

ऑपरेशन सफल हो जाने के बाद भी लगभग ₹2 लाख प्रति माह की दवा उन्हें लेनी पड़ रही थी। पर अब दवा कुछ कम हुई और लगभग ₹1 लाख प्रति माह की दवा अब भी उन्हें लेनी पड़ रही है। जिसका सारा इंतजाम रोशन लाल कंबोज एवं उनके साथी समाज सेवकों की टीम द्वारा लगातार किया जा रहा है। मौके पर पहुंचे स्वास्थ्य विभाग की टीम ने बताया कि कुछ समय बाद धीरे-धीरे यह दवा कम होती रहेगी और लगभग ₹20 हजार प्रति माह की दवा तो इन्हें पूरी जिंदगी तक खानी पड़ेगी।

चौथे अटेम्प्ट में मिली सफलता

डॉ. प्रतीक ने बताया कि इस ऑपरेशन के दौरान उन्हें पहले तीन अटेम्प्ट में निराशा ही हाथ लगी। लेकिन चौथे अटेम्प्ट में उन्हें एक ब्रेन डेड व्यक्ति का फेफड़े और दिल मिला। अब उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था और ऑपरेशन हो जाने के बाद भी 2 दिनों तक बेहोश रहने के बाद जब जितेंद्र को होश आया तब सभी के चेहरे खिल उठे। इतना बड़ा ऑपरेशन जिसमें दोनों फेफड़ों एवं दिल ट्रांसप्लांट किया गया हो अपने आप में मानवता का एक पुनीत कार्य है जो कि अब पूरे प्रदेश में एक मिसाल बन चुका है।

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