RTI खुलासा: सूचना आयोग में बढ़ा लंबित केसों का दायरा

Edited By vinod kumar, Updated: 28 Jan, 2020 10:37 AM

rti disclosed information commission increased the scope of pending cases

आरटीआई से खुलासा हुआ है कि मुख्य सूचना आयुक्त यशपाल सिंघल राज्य सूचना आयोग में केसों का निपटारा करने में नम्बर वन पर हैं। जबकि अधिकांश सूचना आयुक्त केसों का फैलसा करने में फिसड्डी साबित हुए हैं। नतीजन राज्य सूचना आयोग मेें एक वर्ष में लम्बित केसों...

चंडीगढ़(धरणी): आरटीआई से खुलासा हुआ है कि मुख्य सूचना आयुक्त यशपाल सिंघल राज्य सूचना आयोग में केसों का निपटारा करने में नम्बर वन पर हैं। जबकि अधिकांश सूचना आयुक्त केसों का फैलसा करने में फिसड्डी साबित हुए हैं। नतीजन राज्य सूचना आयोग मेें एक वर्ष में लम्बित केसों की संख्या 6080 पहुंच गई है। पिछले वर्षों में सूचना आयोग का वार्षिक बजट 25 लाख से 35 गुणा बढकऱ 8.75 करोड़ पहुंच गया है। इन 14 वर्षों में कुल 52.41 करोड़ रूपये की बजट राशि खर्च की गई।

जबकि पिछले 9 वर्षों में आरटीआई के प्रचार प्रसार पर सूचना आयोग व राज्य सरकार ने फूटी कौड़ी तक खर्च नहीं की है। वर्ष 2018 में पूरे प्रदेश में कुल 68,393 आरटीआई आवेदनों में से 61 प्रतिशत यानि 41,888 आवेदन पुलिस विभाग में लगे। सूचना अधिकार प्रहरी पीपी कपूर ने बताया कि राज्य सूचना आयोग में अपीलकर्ताओं को सुनवाई की लम्बी-लम्बी तारीखें दी जाती हैं। नतीजन प्रदेश में आरटीआई एक्ट मजाक बन कर रह गया है।
इसी बारे में उन्होंने राज्य सूचना आयोग हरियाणा में आरटीआई लगाई थी। इस पर राज्य सूचना आयोग के अवर सचिव यज्ञदत्त चुघ ने 23 जनवरी को चौंकाने वाली सूचनाएं दी हैं। जनवरी माह में आयोग में लम्बित केसों की कुल संख्या 2019 में 3731 से 63 प्रतिशत की बेहतहाशा वृद्धि होने से दिसम्बर 2019 तक ये संख्या 6080 हो गई। कपूर ने बताया कि वर्ष 2018 में पूरे प्रदेश के विभिन्न कार्यालयों में सूचना लेने के लिए कुल 68,393 आवेदन लोगों ने लगाए। सबसे ज्हयादा आरटीआई आवेदन 41888 पुलिस विभाग में लगाए गए। जबकि एमडीयू रोहतक में 3995, खाद्य आपूर्ति विभाग में 2832, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में 2057 आरटीआई आवेदन लगाए गए।

पीपी कपूर ने लम्बित 6080 अपील केसों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए विशेष अभियान चलाकर इन सभी लम्बित केसों का निपटारा करने की मांग राज्य सूचना आयोग से की है। वहीं हरियाणा सरकार से सूचना आयुक्तों के रिक्त पड़े तीन पद भी तत्काल भरे जाने की मांग की है। 

सूचना आयुक्तों का रिपोर्ट कार्ड
वर्ष 2019 की प्रगति रिपोर्ट के अनुसार सूचना आयुक्तों द्वारा अपील केसों का निपटारा करने की संख्या में भारी अंतर है। जहां मुख्य सूचना आयुक्त यशपाल सिंघल ने गत वर्ष औसतन 154 केस प्रति माह निपटाए। वहीं सूचना आयुक्त कमलदीप भंडारी ने मात्र 40 केस प्रति माह व लै0 जनरल कमलजीत सिंह ने मात्र 65 केस ही निपटाए। इसी प्रकार सूचना आयुक्त कु0 रेखा ने 89 केस, शिवरमन गौड़ ने 65 केस, भूपेन्द्र धर्माणी ने 87 केस, सुखबीर गुलिया ने 154 केस, नरेन्द्र यादव 111 ने केस, चन्द्र प्रकाश ने 100 केस, अरूण सांगवान ने 112 केस, जय सिंह बिश्नोई ने प्रति माह औसतन 93 केस की दर से कुल 10,533 केसों का निपटारा किया।

कपूर ने कहा कि अधिकांश सूचना आयुक्तों द्वारा धीमी गति से केसों को निपटाने का खामियाजा अपीलकर्ताओं को अदालतों से भी ज्यादा लम्बी-लम्बी तारीखों से भुगतना पड़ रहा है। जब मुख्य सूचना आयुक्त हर माह औसतन 154 केसों को निपटा सकते हैं तो अन्य सूचना आयुक्त क्यों नहीं? गौरतलब है कि प्रत्येक सूचना आयुक्त को प्रति माह लाखों रूपये के वेतन भत्ते मिलते हैं।

आरटीआई के प्रचार पर शून्य खर्च
जहां सूचना आयुक्तों व स्टाफ के वेतन भत्तों, ऑफिस खर्च के कुल बजट पर पिछले 14 वर्षों में 52.41 करोड़ रूपये खर्च किए गए। वहीं आरटीआई के प्रचार-प्रसार पर इन 14 वर्षों में इस कुल बजट का मात्र 0.03 प्रतिशत यानि कुल रूपये 1,59,778 खर्च किए गए। जनवरी 2009 में कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी , 13 जुलाई 2009 को हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी व माह जनवरी, फरवरी 2011 में तीन कार्यशालाएं एचएसआईडीसी पंचकूला में राज्य सूचना आयोग द्वारा लगाई गई।

इनमें कुल 896 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। वर्ष 2011 के पश्चात जनता को जागरूक करने का कोई कार्यक्रम नहीं किया गया। सरकारें जहां बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छता अभियान, नमामि गंगे, योग दिवस, सूर्य नमस्कार, गीता जयंति जैसे कार्यक्रमों के प्रचार पर करोड़ों रूपये खर्च कर रही है। वहीं पारदर्शिता व जवाबदेही के कानून की घोर उपेक्षा की जा रही है। 

वार्षिक निगरानी रिपोर्ट ना देने के डिफाल्टर
आरटीआई एक्ट 2005 के सैक्शन 25(3) के तहत राज्य सूचना आयेाग को दी जाने वाली वार्षिक निगरानी रिपोर्ट ना देने वालोंं में गृह विभाग, विधानसभा, लोकायुक्त, राजनीति विभाग, कार्मिक विभाग जैसे प्रमुख 32 प्रशासकीय सचिव शामिल हैं। इसके अलावा 32 विभाग प्रमुखों व 44 बोर्डों, निगमों ने भी अपनी वार्षिक रिर्पोट सूचना आयोग को नहीं दी। इनमें हरियाणा लोकसेवा आयोग, एचएसवीपी, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, कृषि विपणन बोर्ड, समाज कल्याण बोर्ड जैसे संस्थान शामिल हैं।

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