हरियाणा में अगली बार पंजाबी मतदाता हो सकते हैं निर्णायक

Edited By Rakhi Yadav, Updated: 10 Jul, 2018 07:50 AM

punjabi voters may be the next time in haryana

हरियाणा में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार प्रदेश के पंजाबी मतदाता भी एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। प्रदेश में पंजाबी वर्ग व इस भाषा से संबंध रखने वालों को पंजाबी मतदाता की श्रेणी में रखा.....

सिरसा(संजय अरोड़ा): हरियाणा में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार प्रदेश के पंजाबी मतदाता भी एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। प्रदेश में पंजाबी वर्ग व इस भाषा से संबंध रखने वालों को पंजाबी मतदाता की श्रेणी में रखा गया है और एक अनुमान के अनुसार राज्य में ऐसे पंजाबी मतदाताओं की संख्या करीब 23 फीसदी है। 

कोई समय था जब प्रदेश की सियासत में पंजाबी वर्ग के नेताओं का अच्छा प्रभाव व बोलबाला था। पंजाबी मतदाता भी हर चुनाव में पूरी तरह सक्रिय नजर आते थे। मगर बदले वक्त के साथ न तो पंजाबी नेताओं में वे तेवर दिखे और न मतदाताओं की सक्रियता। राजनीतिक पर्यवेक्षक ये मानते हैं कि इस बार होने वाले चुनाव में चूंकि जाट व गैरजाट का मुद्दा प्रभावी रह सकता है तो ऐसे में पंजाबी मतदाता भी अगले चुनाव में निर्णायक भूमिका में नजर आ सकते हैं। यही वजह है कि इस बार जाट व गैरजाट दोनों ही वर्ग से संबंध रखने वाले लगभग सभी बड़े नेता पंजाबी वर्ग को रिझाने की दिशा में रणनीति भी बना रहे हैं। 

भाजपा में 24 वर्षों बाद हुई पंजाबी नेतृत्व की भरपाई
गौरतलब है कि हरियाणा में एक समय ऐसा था जब सभी प्रमुख दलों में पंजाबी नेता प्रभावी भूमिका में थे। मगर धीरे-धीरे पंजाबी नेताओं का प्रदेश में प्रभाव कम होता गया और पंजाबी वर्ग से संबंधित मतदाता भी निराश व हताश नजर आने लगे। वर्तमान में सत्तारुढ़ भाजपा के पास किसी जमाने में डा. मंगल सेन जैसे दिग्गज पंजाबी नेता थे जिन पर पूरा पंजाबी वर्ग गर्व करता था। वो चौ. देवीलाल के मुख्यमंत्री काल दौरान भाजपा कोटे से उप-मुख्यमंत्री भी रहे। 

1990 में मंगल सेन के निधन के बाद भाजपा में पंजाबी नेतृत्व का एक खालीपन सा महसूस होने लगा। हालांकि भाजपा हाईकमान ने इसकी भरपाई करने के लिए आत्मप्रकाश मनचंदा जैसे नेता को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान भी सौंपी। मगर वो भी इस रिक्तता को भर नहीं पाए। भाजपा हाईकमान ने अंतत: हरियाणा की सियासी पृष्ठभूमि को देखते हुए और पंजाबी वर्ग के मतदाताओं को साथ जोडऩे की कवायद के तहत प्रदेश में पिछले दफा अकेले दम पर भाजपा की सरकार बनने के बाद लगभग 24 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद मनोहर लाल खट्टर के जरिए में पंजाबी नेतृत्व के खालीपन को पूरा करने का प्रयास किया। यही नहीं, हरियाणा की सियासी जमीन को पूरी तरह समझने के बाद भाजपा हाईकमान ने 2019 में आसन्न विधानसभा चुनाव के लिए भी मनोहर लाल खट्टर को ही दूसरी पारी का कप्तान घोषित कर दिया है।

पंजाबियों का साथ पाने के लिए अशोक अरोड़ा को कमान
प्रदेश के मुख्य विपक्षीदल इनैलो द्वारा स्व. चौ. देवीलाल के समय से ही पंजाबी वर्ग को साथ जोड़े रखने व उन्हें सम्मान देने का प्रयास किया जाता रहा है। 1977 में चौ. देवीलाल के मुख्यमंत्रित्व में बनी जनता पार्टी की सरकार में डा. मंगल सेन उप-मुख्यमंत्री थे। डा. कमला वर्मा सहित 2 पंजाबी मंत्री उनकी सरकार में शामिल थे। इसी प्रकार 1987 में फिर से मुख्यमंत्री बने चौ. देवीलाल की सरकार में भी पंजाबी वर्ग को पूरा प्रतिनिधित्व दिया गया। 
 

वर्ष 2000 में जब प्रदेश में इनैलो की सरकार बनी और ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने भी अपनी कैबिनेट में 5 कैबिनेट मंत्रियों में से 2 कैबिनेट मंत्री पंजाबी वर्ग से अशोक अरोड़ा व जसविंद्र सिंह संधू के रूप में शामिल किए। इसके अलावा उनकी सरकार में अनेक राजनीतिक पदों पर पंजाबी वर्ग के नेताओं को समयोजित किया गया था। चौटाला की सरकार में अशोक अरोड़ा नंबर 2 पर सबसे पॉवरफुल मंत्री थे।

इसी सरकार में हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे। आज भी पंजाबी वर्ग को साथ जोड़े रखने के लिए इनैलो ने अशोक अरोड़ा को ही 2004 से लगातार पार्टी की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया हुआ है और अरोड़ा लगातार 14 वर्ष से पंजाबी वर्ग को पार्टी से जोड़े रखने की कवायद कर रहे हैं।


 

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