हरियाणा की चौधर : क्या जीत के रुझान को बरकरार रख पाएगी भाजपा?

Edited By Shivam, Updated: 10 Oct, 2019 04:24 PM

chaudhar of haryana will bjp be able to maintain the winning trend

साल के शुरू में हुए आम चुनावों में मोदी के नाम पर भाजपा ने हरियाणा की सभी 10 संसदीय सीटें जीती थीं। इसी को देखते हुए पार्टी की यही इच्छा है कि राज्य विधानसभा चुनावों में भी पार्टी भारी बहुमत से जीते और सरकार बनाए। पिछले एक दशक से हरियाणा की राजनीति...

नई दिल्ली (विशेष): साल के शुरू में हुए आम चुनावों में मोदी के नाम पर भाजपा ने हरियाणा की सभी 10 संसदीय सीटें जीती थीं। इसी को देखते हुए पार्टी की यही इच्छा है कि राज्य विधानसभा चुनावों में भी पार्टी भारी बहुमत से जीते और सरकार बनाए। पिछले एक दशक से हरियाणा की राजनीति में बहुत परिवर्तन हुए हैं। भाजपा इसका मुख्य केन्द्र बिंदु बन गई है।

10 वर्ष पहले यहां भाजपा छोटे खिलाड़ी के रूप में काम कर रही थी, आज वह सशक्त पार्टी बनी हुई है। भाजपा के सामाजिक सत्र पर अपना विस्तार करने और विपक्ष के बिखरे होने से लोकसभा चुनावों में पार्टी को काफी फायदा हुआ था। इस वर्ष उसने लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप किया था। अब 21 अक्तूबर को होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी भाजपा प्रमुख भूमिका निभा सकती है। सैंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सी.एस.डी.एस.) द्वारा किए गए चुनाव परिणामों और चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा राज्य में मजबूत स्थिति में है। अब देखना यह है कि क्या भाजपा जीत के इस रुझान को बरकरार रख पाएगी?

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कई सालों तक भाजपा ने इंडियन नैशनल लोकदल (इनैलो) और इससे पहले हरियाणा विकास पार्टी के लिए राज्य में एक जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाई थी। अपने दम पर चुनाव लड़ते हुए भाजपा ने राज्य में 2009 के विधानसभा चुनावों में केवल 4 सीटें जीती थीं लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के चलते भाजपा ने 2014 के विधानसभा चुनावों में अपने दम पर बहुमत हासिल किया। 2009 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा का वोट  शेयर 9.1 प्रतिशत था जो 2014 में 33.2 प्रतिशत हो गया था। 

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इनैलो के बंटवारे का भाजपा ने उठाया लाभ
2014 से राज्य की राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव इनैलो का पतन था। 2014 में इनैलो कुल मिलाकर दूसरे स्थान पर रही और उसे लगभग एक-चौथाई वोट मिले। 2019 के लोकसभा चुनावों के कुछ महीने पहले दुष्यंत चौटाला को चाचा अभय चौटाला के साथ तीखी नोक-झोंक के बाद इनैलो से निष्कासित कर दिया गया था। युवा नेता ने जननायक जनता पार्टी (जे.जे.पी.) का गठन किया जो अपने पहले ही चुनाव में 4.9 प्रतिशत वोट पाने में सफल रही। इनैलो ने खराब प्रदर्शन किया और केवल 1.9 प्रतिशत वोट ही जुटा सकी। इनैलो के बंटवारे का सबसे बड़ा फायदा भाजपा को हुआ। 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के वोट शेयर में पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में 24 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई और उसे 58 प्रतिशत वोट मिले।

30 प्रतिशत अंतर का आंकड़ा
10 लोकसभा सीटों में से 9 में भाजपा को आधे से अधिक वोट मिले। कुलदीप बिश्नोई के हरियाणा जनहित कांग्रेस में विलय के बावजूद कांग्रेस का लाभ मामूली था क्योंकि 2014 से 2019 के लोकसभा चुनावों के बीच उसका वोट शेयर केवल 5.5 प्रतिशत बढ़ा और 28.4 प्रतिशत हो गया। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के भीतर भारी अंतर को चिन्हित किया गया है और पार्टी नेतृत्व ने वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी छोडऩे के खिलाफ मनाने के लिए संघर्ष किया। हुड्डा को पद से हटाने के उसके प्रयासों ने हालांकि राज्य की पूर्व इकाई के प्रमुख को नाराज कर दिया है, जिन्होंने पिछले सप्ताह पार्टी के फैसले पर इस्तीफा लिखा था। ऐसे में 30 प्रतिशत अंकों के अंतर पर काबू पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल काम होगा। 

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