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Haryana politics: हरियाणा सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले अब तक बदले जा चुके हैं तीन ‘लाल’!
Edited By Isha, Updated: 18 Aug, 2024 09:13 PM
हरियाणा में 1 अक्तूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर 5 सितंबर को अधिसूचना जारी होगी और 12 सितंबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी। 1 अक्तूबर को मतदान होगा तो 4 अक्तूबर को नतीजे आ जाएंगे।
चंडीगढ़( संजय अरोड़ा): हरियाणा में 1 अक्तूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर 5 सितंबर को अधिसूचना जारी होगी और 12 सितंबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी। 1 अक्तूबर को मतदान होगा तो 4 अक्तूबर को नतीजे आ जाएंगे। ऐसे में आने वाले 40 दिनों में हरियाणा में सियासी गतिविधियां जोर पकड़ते हुए नजर आएंगी। खास पहलू यह है कि विधानसभा चुनावों से करीब 6 माह पहले ही इस साल 12 मार्च को भारतीय जनता पार्टी ने नया प्रयोग करते हुए मनोहर लाल के स्थान पर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। हरियाणा के सियासी इतिहास में यह पहला अवसर नहीं है जब किसी सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही मुख्यमंत्री का चेहरा बदला गया हो। इससे पहले भी दो बार सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे बदले गए थे। 1972 में हरियाणा के 5वें मुख्यमंत्री बने बंसीलाल को कांग्रेस हाईकमान द्वारा 1975 में मुख्यमंत्री पद से हटाकर केंद्र में रक्षा मंत्री बनाया गया तो उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसी तरह से साल 1986 में भजनलाल को केंद्र में मंत्री बनाया गया और उनके स्थान पर बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। हरियाणा के एक सियासी इतिहास में एक मौका ऐसा भी आया जब दिसंबर 1989 में चौ. देवीलाल के देश का उपप्रधानमंत्री बनने के बाद तो एक साल के भीतर ही तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला। गौरतलब है कि 1968 में हरियाणा में कांग्रेस को बहुमत मिला और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पहली पसंद के रूप में चौ. बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत मिली और बंसीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। विशेष बात यह है कि आपात्तकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने विश्वासपात्र बंसीलाल को 1 दिसंबर 1975 को केंद्रीय रक्षा मंत्री बना दिया और इस तरह से बनारसी दास गुप्ता 1 दिसम्बर 1975 को हरियाणा के छठे मुख्यमंत्री बने और वे इस पद पर 29 अप्रैल 1977 तक रहे। भजनलाल की जगह बंसीलाल को बनाया गया मुख्यमंत्री उल्लेखनीय है कि 1982 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 37, लोकदल को 33, भाजपा को 6, जगजीवनराम की कांग्रेस को 2 सीटों पर जीत मिलीं जबकि 11 आजाद विधायक चुने गए। अब चूंकि किसी को भी बहुमत हासिल नहीं था। ऐसे में राज्यपाल के समक्ष भी सरकार बनाने को लेकर बड़ी चुनौती थी। लोकदल को 33 सीटों पर जीत मिली थी और उनकी सहयोगी भाजपा को 6 सीटों पर ऐसे में कांग्रेस के 37 विधायकों से लोकदल और भाजपा के विधायकों की संख्या अधिक थी, मगर इसके बावजूद राज्यपाल द्वारा भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी गई तथा बाद में भजनलाल ने बहुमत साबित कर दिया था। 1986 में देवीलाल ने प्रदेश में न्याय युद्ध शुरू किया और उनके नेतृत्व में गठित हरियाणा संघर्ष समिति को जबरदस्त जनसमर्थन मिला। चौ. देवीलाल की लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री बदलने का फैसला किया और देवीलाल के मुकाबले जाट चेहरे के रूप में चौ. बंसीलाल को 5 जून 1986 को भजनलाल की जगह हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि सरकार के कार्यकाल में करीब एक वर्ष का समय शेष था, मगर जब चुनाव हुए और कांग्रेस हाईकमान का यह फार्मूला काम नहीं आया और 1987 में हुए चुनाव में चौ. देवीलाल के मोर्चे ने 90 में से 85 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रचा। मुख्यमंत्री पद से हटाए गए तीनों ही नेताओं को बनाया गया केंद्र में मंत्री विशेष बात यह है कि प्रदेश के सियासी सफर में कार्यकाल पूरा होने से पहले तीन बार बदले गए मुख्यमंत्री के चेहरों को केंद्र में मंत्री बनाया गया। साल 1975 में जब बंसीलाल के स्थान पर बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को केंद्र में रक्षा मंत्री बनाया। इंदिरा गांधी का मकसद बंसीलाल के सहयोग से देश में आपात्तकाल लागू करना था। इसी तरह से साल 1986 में चौ. देवीलाल के न्याय युद्ध को मिल रहे अपार समर्थन के बाद कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने चौ. भजनलाल के स्थान पर चौ. बंसीलाल को मुख्यमंत्री बना दिया। उस समय कांग्रेस हाईकमान ने चौ. भजनलाल को केंद्र में कृषि मंत्री बनाया। अब इस साल 12 मार्च को मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया और जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनी तो मनोहर लाल को न केवल केंद्रीय मंत्री बनाया गया, बल्कि उन्हें भी ऊर्जा एवं शहरी विकास जैसे बड़े विभाग दिए गए। भाजपा नेतृत्व ने इसलिए किया बड़ा फैसला उल्लेखनीय है कि इसी साल 12 मार्च को जब नायब सिंह सैनी को चुनाव से करीब 6 माह पहले मुख्यमंत्री बनाया गया तो सियासी पर्यवेक्षकों का यह मत था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने विश्वासपात्र मनोहर लाल को अब केंद्र में अपने साथ रखना चाहते हैं तो वहीं पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया है। खास बात यह है कि प्रदेश में निर्णायक संख्या में आने वाले पिछड़ा वर्ग को साधने के मकसद से ही पार्टी नेतृत्व ने एक बार फिर से विधानसभा चुनाव में नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित कर दिया तो वहीं मुख्यमंत्री के तौर पर साढ़े 9 वर्षों के कार्यकाल के दौरान मनोहर लाल द्वारा लागू की गई नीतियों व कार्यों को भी चुनाव में आधार बनाया जा रहा है। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा नेतृत्व को यह विश्वास था कि मनोहर लाल संसदीय चुनाव में करनाल सीट से विजयी होगे। ऐसा हुआ भी और करनाल से सांसद चुने जाने के बाद मनोहर लाल को केंद्र में ऊर्जा एवं शहरी विकास मंत्री बनाया गया। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा नेतृत्व ने एक खास रणनीति के तहत जहां मनोहर लाल को केंद्र की राजनीति में प्रवेश करवाया तो वहीं नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर ओ.बी.सी. कार्ड खेला। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग मतदाताओं की संख्या 30 प्रतिशत है और यह एक निर्णायक संख्या है। खैर भाजपा की इस रणनीति का चुनावी परिणाम पर क्या असर रहता है, यह आने वाला वक्त ही बताएगा?
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