दवा खाने के बाद भी हाई बीपी कंट्रोल नहीं हो रहा? रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन दिल और किडनी के लिए बन सकता है बड़ा खतरा

Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 19 Aug, 2025 07:36 PM

high bp is not getting controlled even after taking medicine

इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव के अनुसार, भारत में करीब 20 करोड़ वयस्क उच्‍च रक्तचाप अथवा हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। इनमें से केवल लगभग 2 करोड़ लोगों का ही बीपी नियंत्रण में है। यह स्थिति देश के लिए एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है।

गुड़गांव ब्यूरो : इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव के अनुसार, भारत में करीब 20 करोड़ वयस्क उच्‍च रक्तचाप अथवा हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। इनमें से केवल लगभग 2 करोड़ लोगों का ही बीपी नियंत्रण में है। यह स्थिति देश के लिए एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है। इस मुद्दे पर प्रकाश डालने के लिए मेदांता हॉस्पिटल ने एक मीडिया वर्कशॉप का आयोजन किया, जहां विशेषज्ञों ने रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन और उसके समाधान के तौर पर रेनल डिनर्वेशन (RDN) थैरेपी पर चर्चा की।

 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, कई राज्यों में हाइपरटेंशन की दर 16% से लेकर 25% से अधिक तक है। शहरी इलाकों में बड़ी संख्या में ऐसे मरीज हैं जिनका बीपी इलाज के बावजूद नियंत्रित नहीं हो पाता।  रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन वह स्थिति है जब जीवनशैली में सुधार और तीन या अधिक दवाइयों के इस्तेमाल के बावजूद बीपी 150 mmHg से ऊपर बना रहता है। यह एक ऐसी समस्या है जिस पर अक्सर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन यह मरीजों की लंबे समय की सेहत और जीवन-गुणवत्ता को प्रभावित करती है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे – 5 के अनुसार, दिल्ली में हाइपरटेंशन की दर लगभग 28% है। क्लिनिकल प्रैक्टिस के आधार पर अनुमान है कि भारत में हाइपरटेंशन से पीड़ित लगभग 5–10% मरीज रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन से जूझ रहे हैं।

 

रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन के लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं, जिनमें बार-बार सिरदर्द होना, चक्कर आना, सांस फूलना या कभी-कभी सीने में असहजता महसूस होना शामिल है। समय के साथ लगातार बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर दिल और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों पर दबाव डालता है। क्लिनिक में इलाज किए गये मरीजों में औसतन बीपी में कमी और दिल से जुड़ी बीमारियों के जोखिम प्रोफ़ाइल में सुधार देखा गया है। क्लिनिकल स्टडीज़ से पता चला है कि सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर को सिर्फ 10 mmHg कम करने से हार्ट डिज़ीज़ के जोखिम को 20% तक और स्ट्रोक के खतरे को 27% तक घटाया जा सकता है।

 

वर्कशॉप के दौरान डॉ. प्रवीण चंद्रा, चेयरमैन, कार्डियोलॉजी, मेदांता, द मेडिसिटी ने कहा,“ज़्यादातर मरीजों में एंटीहाइपरटेंसिव दवाइयाँ असरदार होती हैं, लेकिन कई लोगों के लिए नियंत्रण मुश्किल बना रहता है। जब मरीज अपनी बीमारी और इलाज के विकल्पों को समझते हैं, तो वे बेहतर निर्णय ले पाते हैं और बेहतर परिणाम के लिये डॉक्‍टरों के साथ मिलकर काम कर पाते हैं। रेनल डिनर्वेशन (RDN) एक एडवांस्ड थेरेपी है, जिसमें कैथेटर के ज़रिए की जाने वाली मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया शामिल है। यह हाई ब्लड प्रेशर के एक बड़े कारण — दिमाग और किडनी के बीच की ओवरएक्टिव नर्व सिग्नल्स — को नियंत्रित करती है। इन सिग्नल्स को रोककर RDN समय के साथ ब्लड प्रेशर को कम और स्थिर रखने में मदद करता है। मेरे अनुभव में अब तक इस थेरेपी से मरीजों में औसतन 25% ब्लड प्रेशर की कमी देखी गई है और दवाइयों पर निर्भरता भी काफ़ी घट गई है।‘’

 

डॉ. श्याम बंसल, वाइस चेयरमैन, इंस्टीट्यूट ऑफ नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, मेदांता, द मेडिसिटी ने कहा, “अनियंत्रित हाइपरटेंशन का सीधा संबंध क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (CKD) से है। CKD वाले ज्यादातर मरीज हाइपरटेंशन से पीड़ित रहते हैं और यही रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन का सबसे बड़ा कारण है। अनियंत्रित हाई ब्लड प्रेशर किडनी की बीमारी को तेज़ी से बढ़ाकर किडनी फेलियर तक पहुँचा सकता है। ऐसे मामलों में RDN जैसी एडवांस्ड थैरेपी इलाज की दिशा बदल सकती है। क्लिनिकल स्टडीज़ से साबित हुआ है कि RDN से ब्लड प्रेशर में 3 साल से भी ज़्यादा समय तक लगातार कमी देखी गई है। यह थेरेपी क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़, डायबिटीज़ और अन्य गंभीर बीमारियों वाले मरीज़ों में भी असरदार रही है। साथ ही, यह दवाइयों पर निर्भरता घटाने और मरीज़ की जीवन-गुणवत्ता बेहतर करने की क्षमता रखती है।‘’ 

 

हाल के क्लिनिकल अनुभव बताते हैं कि रेनल डिनर्वेशन (RDN) से मरीज़ों में बेहद सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। इस थेरेपी से ब्लड प्रेशर में बड़ी कमी दर्ज की गई—सिस्टोलिक प्रेशर में करीब 40–45 mmHg और डायस्टोलिक प्रेशर में 15–20 mmHg तक। ज़्यादातर मरीज़ ऐसे थे जिन्हें पहले स्ट्रोक हो चुका था या फिर वे क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ से जूझ रहे थे, जहाँ हाई ब्लड प्रेशर उनकी किडनी की हालत बिगाड़ने वाला मुख्य कारण था। अच्छी बात यह रही कि RDN कराने के बाद उनके किडनी फंक्शन (eGFR लेवल) 9–12 महीने की फॉलो-अप अवधि में स्थिर बने रहे।

 

सिर्फ 10 mmHg सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कम करने से ही लंबे समय में बड़ा फर्क पड़ सकता है-स्ट्रोक का खतरा 27% तक घटता है, हार्ट फेलियर का 28% और कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ का लगभग 17%। रेनल डिनर्वेशन (RDN) थेरेपी का एक और अहम फायदा यह रहा कि इससे मरीज़ों को पहले की तुलना में कम दवाइयाँ लेनी पड़ीं। औसतन 5 एंटीहाइपरटेंसिव दवाओं से घटकर यह संख्या 3 से थोड़ी ज़्यादा रह गई। इसका मतलब है कम साइड इफेक्ट और मरीज़ों के लिए इलाज को लंबे समय तक जारी रखना आसान हो गया। प्रक्रिया से पहले मरीज़ों का औसत ऑफिस ब्लड प्रेशर 186/99 mmHg था। डिस्चार्ज के समय सिस्टोलिक BP में लगभग 50 mmHg तक की गिरावट दर्ज की गई। यह सुधार सिर्फ शुरुआती नहीं था-1 महीने और 6 महीने की फॉलो-अप विज़िट्स पर भी ब्लड प्रेशर के स्तर लगातार बेहतर बने रहे।

 

अनकंट्रोल्ड और रेज़िस्टेंट हाइपरटेंशन केवल दिल का दौरा, स्ट्रोक और किडनी डिज़ीज़ का खतरा ही नहीं बढ़ाता, बल्कि इलाज का खर्च भी बढ़ाता है, हॉस्पिटल में बार-बार भर्ती कराता है और कामकाजी ज़िंदगी को भी प्रभावित करता है। ब्लड प्रेशर को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने वाली थेरेपीज़, जैसे RDN, इन सब बोझों को कम करने की क्षमता रखती हैं। मरीज़ों के लिए इसका मतलब है – कम दवाइयाँ, अस्पताल के कम चक्कर, और ज़िंदगी को अपने हाथों में लेकर ज़्यादा एक्टिव और संतुलित ढंग से जीने का मौका।

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