रिश्तों में आई गिरावट को फिर से नया लुक दे रहा ‘लॉकडाऊन’

Edited By Manisha rana, Updated: 09 Apr, 2020 03:19 PM

lockdown  is giving new look to the decline in relationships

आधुनिकता की चकाचौंध के बीच लोग दुनियावी रिश्तों की अहमियत को भूलने लगे थे लेकिन प्रकृति खुद को संतुलित करने के लिए.....

सिरसा (हरभजन) : आधुनिकता की चकाचौंध के बीच लोग दुनियावी रिश्तों की अहमियत को भूलने लगे थे लेकिन प्रकृति खुद को संतुलित करने के लिए जब विचित्र खेल खेलती है तो उसके एक कदम से कई मनोरथ स्वत: ही पूर्ण होते चले जाते हैं। कोरोना की वैश्विक महामारी से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाऊन का ऐलान कर बेशक लोगों को सुरक्षित करने का सबसे आसान रास्ता निकाला, लेकिन यह लॉकडाऊन टूटते सामाजिक ताने-बाने की बुनियाद को फिर से जोडऩे में भी कारगर साबित हो रहा है।

लॉकडाऊन के चलते लोग बेशक अपने-अपने घर में सिमटे हुए हैं लेकिन इससे भी सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। करीब 2 सप्ताह पूर्व तक जो घर सिर्फ कंक्रीट की दीवारों तक सिमटे हुए थे, उनमें अब रिश्तों की भाव पटुता साफ दिखाई दे रही है। पूरा परिवार एक-दूसरे से इस कदर जुड़ाव में आ रहा है, मानों कोई सदियों बाद मिला हो। परिवार में रिश्तों की एकजुटता की परिकल्पना पुरातन समय में बुजुर्ग लोग किया करते थे।

खासकर संयुक्त परिवारों में आपसी रिश्तों की नई बुनियाद लिखी जा रही है। नौकरीपेशा लोग अक्सर कार्य व्यस्तत्ता के चलते परिवार को पूरा समय नहीं दे पाते थे। समय के अभाव में पारिवारिक रिश्ते बिखराव की ओर थे। यह लॉकडाऊन पारिवारिक रिश्तों की नई परिभाषा लिख रहा है। 

आंगन से कोसों दूर थे घर के चिराग
85 वर्षीय सुखदेव कौर का कहना है कि 3 बेटे होने के बावजूद घर का आंगन सूना रहता था। तीनों बेटे नौकरी के चलते बड़े-बड़े शहरों में रहने लगे थे। रिश्तों में आया यह सूनापन अकसर दिल को कचौटता रहता था। लॉकडाऊन ने बिखरे परिवार को फिर से एकत्रित कर दिया। सभी पारिवारिक सदस्यों को साथ देखकर बहुत खुशी हो रही है। 

साल में एक महीना लॉकडाऊन का भी हो
डाक्टरी पेशे से जुड़े 55 वर्षीय दुलारा राम का कहना है कि लॉकडाऊन ने रिश्तों में आई गिरावट को एक बार थाम-सा दिया है। परिवार में बड़े बुजुर्ग से लेकर हर उम्र के लोग घर पर एक-दूसरे के दुख-सुख के सांझीदार बन रहे हैं। भारत की पुरातन संस्कृति में भी ऐसे ही आपसी रिश्तों का जिक्र होता रहा है, जिसमें हर वर्ग को एक-दूसरे का साथ मिलता है। दुलारा राम का कहना है काश आपाधापी के इस दौर में वर्ष का एक महीना लॉकडाऊन का भी आए, जिसमें रिश्ते-नातों को फिर से संगठित व पुनजीॢवत होने का अवसर मिल सके। 

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