धर्मनगरी में शिल्पकारों का जमावड़ा, गुजरात से खास पेंटिंग आई तो यूपी से लकड़ी की नक्काशी

Edited By Shivam, Updated: 29 Nov, 2019 04:41 PM

कुरुक्षेत्र धर्मनगरी में गीता जयंती महोत्सव के चलते शिल्पकारों का जमावड़ा लगा हुआ है। खासतौर से प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के अवार्डी अपने शिल्प कला का प्रदर्शन धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर तट पर कर रहे हैं और अपनी प्रतिभा के जौहर दिखा रहे हैं।...

कुरुक्षेत्र (रणदीप रोड़): कुरुक्षेत्र धर्मनगरी में गीता जयंती महोत्सव के चलते शिल्पकारों का जमावड़ा लगा हुआ है। खासतौर से प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के अवार्डी अपने शिल्प कला का प्रदर्शन धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर तट पर कर रहे हैं और अपनी प्रतिभा के जौहर दिखा रहे हैं। मेले में गुजरात से आए कलाकारों ने खास प्रकार की पेंटिंग की प्रदर्शनी में लगाई हैं। वहीं उत्तर प्रदेश से लकड़ी पर नक्काशी की गई कला कृतियां मेले की रौनक बढ़ा रही है।


गुजरात के जामनगर से शिल्पकार भगवती शिल्प मेले में अपनी खास तरह की पेंटिंग लेकर पहुंची हैं। भगवती की पेंटिंग वाश ऐबल और स्क्रैच प्रूफ हैं। इसके अलावा भगवती का महिला मंडल पिछले 6 साल से करीब 60 विधवा महिलाओं को काम दे चुकी हैं। भगवती ने प्रण लिया था कि वह अपने महिला मंडल में सिर्फ और सिर्फ विधवा महिलाओं को काम देगी।


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उनका कहना है कि जरूरतमंद विधवा महिलाएं जो दर-दर रोजगार के लिए घूमती हैं, उनको रोजगार देना और पेंटिंग के अपनी शिल्प कला को निखारने उनका उद्देश्य है। इसके लिए भगवती को कई बार अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है।


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उत्तर प्रदेश से राज्य अवार्डी शिल्पकार पैगाम रसूल अपनी लकड़ी की कलाकारी को लेकर कुरुक्षेत्र धर्मनगरी अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में पहुंचे हैं। पिछले 4 साल से वह अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में लकड़ी की नक्काशी तराशी हुई कला कृतियों का प्रदर्शन करने पहुंचते हैं। सहारनपुर के रहने वाले पैगाम रसूल पिछले चार दशकों से लकड़ी के टुकड़ों में ऐसी जान डालते हैं कि देखने वाले हैरान रह जाता है।

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पैगाम रसूल चंडीगढ़, गोवा, इलाहाबाद, लखनऊ, हरिद्वार कई स्थानों पर शिल्प मेलों में अपनी कलाकारी का प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि एक एक लकड़ी की कलाकृति को बनाने में काफी समय लगता है। बारीकी से लकड़ी को तराशा जाता है उस पर नक्काशी की जाती है। तब लकड़ी में शिल्प कला झलकती है। पैगाम रसूल ने कहा कि और यही उनकी रोजी-रोटी है। ब्रह्मसरोवर के तट पर लोगों के सामने प्रदर्शित कर वह अपने आपको धन्य मानते हैं।

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