Edited By Manisha rana, Updated: 26 May, 2024 12:52 PM
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हरियाणा के बादशाह विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का शनिवार को हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया। उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी सहित राज्य के कई नेताओं ने शोक भी जताया है। वहीं दौलताबाद के निधन से भाजपा को बड़ा झटका भी लगा है।
चंडीगढ़ : हरियाणा के बादशाह विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का शनिवार को हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया। उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी सहित राज्य के कई नेताओं ने शोक भी जताया है। वहीं दौलताबाद के निधन से भाजपा को बड़ा झटका भी लगा है। उनकी मौत के बाद पहले से अल्पमत में चल रही नायब सिंह सैनी सरकार के सामने बहुमत का आंकड़ा हासिल करना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
बता दें कि हरियाणा विधानसभा में मौजूदा समय में कुल बहुमत का आंकड़ा 44 का है, लेकिन भाजपा सरकार के पास अब 42 ही विधायकों का समर्थन बचा है। ऐसे में विपक्षी फिर सरकार को फ्लोर टेस्ट करवाने के लिए घेर सकते हैं। कांग्रेस और JJP पहले ही गवर्नर को लेटर लिखकर नायब सैनी सरकार के बहुमत साबित करने की मांग कर चुके है।
विधानसभा में कुल 90 सीटें
हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं। करनाल से मनोहर लाल खट्टर और रानियां से निर्दलीय रणजीत चौटाला के इस्तीफे के बाद 88 विधायक बचे थे। इसके बाद बादशाहपुर से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का निधन हो गया। ऐसे में अब कुल विधायक 87 रह गए हैं और बहुमत का आंकड़ा 44 का हो गया है।
अल्पमत की चर्चा कैसे शुरू हुई?
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी से हटाकर लोकसभा टिकट दे दी। उनकी जगह नायब सैनी सीएम बनाए गए। उन्हें भाजपा के 41, हलोपा के 1 और 6 निर्दलीय समेत 48 विधायकों का समर्थन मिला था। हालांकि पहले खट्टर और फिर सरकार के समर्थन वाले रणजीत चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद लोकसभा चुनाव के बीच 3 निर्दलीय विधायकों धर्मपाल गोंदर, रणधीर गोलन और सोमबीर सांगवान ने समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद सरकार के पास 43 विधायकों का समर्थन बचा।
अब सरकार के साथ कितने विधायक बचे?
खट्टर के इस्तीफे के बाद भाजपा के पास अपने 40 विधायक हैं। इसके अलावा उन्हें हलोपा के गोपाल कांडा और निर्दलीय नैनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है। इसमें एक और दिलचस्प स्थिति 4 जून को बनेगी। सीएम नायब सैनी खट्टर की जगह करनाल से विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं। अगर वह सीट जीत जाते हैं तो फिर सत्ता पक्ष के पास 43 विधायक हो जाएंगे। अगर जजपा के 2 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है तो फिर पक्ष और विपक्ष, दोनों बराबर हो जाएंगे।
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