अजब गजब कारनामा: 25 साल पहले हुई व्यक्ति मौत, अब जिंदा दिखाकर कर दी रजिस्ट्री

Edited By Manisha rana, Updated: 18 Mar, 2025 10:09 AM

person died 25 years ago now the registry has been done as him being alive

बहादुरगढ़ में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का अजब गजब मामला सामने आया है।

बहादुरगढ़ (प्रवीण धनखड़) : बहादुरगढ़ में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का अजब गजब मामला सामने आया है। जहां जिंदा व्यक्ति को उसके जायज काम के लिए दर बदर भटकाया जाता है। उसी तहसील में 25 साल पहले मरे हुए व्यक्ति ने हाजिर होकर 10 मार्च को किसी अन्य व्यक्ति के नाम रजिस्ट्री करवा दी। ये भी तब हुआ है जब उसी मरे हुए व्यक्ति की वसीयत का इंतकाल दर्ज करवाने के लिए कोर्ट आदेश के साथ उसका हकीकी ललित मोहन गुप्ता 18 फरवरी को तहसील में प्रार्थना पत्र दे चुका था। कोर्ट ने भी ललित मोहन के पक्ष में डिक्री का आदेश दे रखा था। ललित मोहन के प्रार्थना पत्र पर पटवारी ने इंतकाल दर्ज कर तहसीलदार को मंजूरी के लिए दिया था। लेकिन तहसीलदार ने उस इंतकाल को ये कहकर नामंजूर कर दिया कि डिक्री आदेश को तय फीस के तहत रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है। फिर क्या था उसी का फायदा उठाकर 20 दिन बाद मरे हुए व्यक्ति को जिंदा दिखाकर उसी प्लाट की रजिस्ट्री करवा दी जिसके इंतकाल को अपने नाम कराने के लिए सही वारिश ललित मोहन धक्के खा रहा था। पूर्व नगर पार्षद वजीर राठी ने इस पूरे मामले का खुलासा किया है।

दरअसल ये मामला फ्रैन्डस काॅलोनी गली नम्बर-5 के 190 गज के एक प्लाट का है। ये प्लाट साल 1987 में श्रीराम पुत्र देवतराम ने खरीदा था। 2 सितम्बर को उस प्लाट का इंतकाल श्रीराम के नाम दर्ज भी हो गया था। श्रीराम अविवाहित था और अपने भतीजे प्रेमचन्द के पास रहता था। श्रीराम ने  जुलाई 1999 को अपने भतीजे प्रेमचन्द के बेटे ललितमोहन के पक्ष में उस प्लाॅट की वसीयत कर दी। जिसके बाद 9 अक्टूबर 1999 को श्रीराम की मृत्यु हो गई। वसीयत चूंकि रजिस्टर्ड नहीं थी केवल नोटरी से अटेस्टेड थी इसलिए ललित मोहन ने कोर्ट में याचिका दायर की जिस पर कोर्ट ने ललित मोहन के पक्ष में दिसम्बर 2024 को डिक्री के आदेश दे दिए। कोर्ट के आदेश के आधार पर तहसीलदार को 190 गज के उसी प्लाट का इंतकाल दर्ज करने के लिए ललित मोहन ने प्रार्थना पत्र तहसीलदार को दिया जिसे तहसीलदार ने 18 फरवरी को पटवारी के नाम मार्क कर दिया था। लेकिन डिक्री को निर्धारित फीस पर रजिस्ट्रेशन करवाने की बात कहकर तहसीलदार ने इंतकाल नामंजूर कर दिया था। उसके बाद ही सारा धोखाधड़ी का खेल खेला गया।

धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के इस मामले में एक पहलू नगर परिषद से भी जुड़ा है। नगर परिषद में दर्ज 190 गज के उस प्लाट की  प्राॅपर्टी आई डी में मालिक का नाम श्रीराम ही दर्ज है लेकिन मोबाईल नम्बर किसी और व्यक्ति का दर्ज है। अब ललित मोहन ने प्राॅपर्टी आईडी में दर्ज गलत मोबाईल नम्बर को सही कराने के लिए समाधान शिविर में प्रार्थना पत्र 14 फरवरी को दिया, लेकिन परिषद ने मोबाईल नम्बर दुरूस्त करने की बजाय उस प्राॅपर्टी को विवादित बताते हुए 19 फरवरी को प्रार्थना पत्र को दफ्तर दाखिल कर दिया। जिसके बाद उसी गलत मोबाईल नम्बर का इस्तेमाल करते हुए उस प्लाट की एनओसी निकलवाई गई और उसी एनओसी व पुराने इंतकाल का जिसमें मालिक 25 साल पहले मरा हुआ श्रीराम था, का इस्तेमाल करते हुए ललित मोहन के प्लाट की रजिस्ट्री करवा दी गई। रजिस्ट्री करवाने वाला मृतक श्रीराम था और जिसके नाम करवाई गई वो हर्षपाल है जो दिल्ली का रहने वाला है। इस रजिस्ट्री में गवाह के तौर पर दिल्ली का ही रहने वाला सोनू और नम्बरदार हवासिंह है। 

धोखाधड़ी में शामिल सभी के खिलाफ होगी कार्यवाही

पूर्व पार्षद वजीर सिंह का कहना है कि इस धोखाधड़ी में शामिल सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। वहीं इस पूरे मामले का खुलासा होने पर एसडीएम ने तहसील अधिकारियों को दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का निर्देश दिया है। उन्होंने बताया कि उस रजिस्ट्री को भी रद्द कर दिया गया है।

ललित मोहन के प्लाट का फ्राॅड रूक सकता था। अगर समय रहते मृतक के नाम से इंतकाल हटाकर ललितमोहन के नाम हो जाता। अगर नगर परिषद समय पर प्राॅपर्टी आई डी में मोबादल नम्बर दुरूस्त कर देती तो उस प्लाट की एनओसी कोई और ले ही नहीं पाता। जबकि पीड़ित ने तो सही समय पर हर विभाग में प्रार्थना पत्र दे दिया था। ऐसे में ये सवाल उठना भी जायज ही नजर आता है कि सरकारी विभागों की लापरवाही से एक ठग ने बड़े फ्राॅड को अंजाम दे दिया।

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