कारगिल विजय दिवस: देश और दोस्ती के लिए शहीद हो गए हरियाणा के तीन जवान

Edited By Shivam, Updated: 26 Jul, 2019 01:35 PM

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आज भारत द्वारा कारगिल युद्ध विजय करने को बीस बरस बीत चुके हैं, इस दिन को याद करते हुए युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को देश के हर कोने में श्रद्धांजलि दी जाती है। वैसे तो कारगिल युद्ध में शहीद हुए हर सैनिकों की गाथा जितनी भी सुनाई जाए, वह कतई कम ही...

डेस्क: आज भारत द्वारा कारगिल युद्ध विजय करने को बीस बरस बीत चुके हैं, इस दिन को याद करते हुए युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को देश के हर कोने में श्रद्धांजलि दी जाती है। वैसे तो कारगिल युद्ध में शहीद हुए हर सैनिकों की गाथा जितनी भी सुनाई जाए, वह कतई कम ही होगी। इन्हीं सैनिकों में तीन सैनिकों की गाथा आपके जेहन में देशभक्ति व दोस्ती का भरपूर समावेश कर सकती है। ये तीन शहीद सैनिक हरियाणा के जिले रोहतक के हैं, जो आपस में दोस्त थे और इन्होंने वतन और दोस्तों के लिए अपनी कुर्बानी दे दी।


इन तीन शहीदों में एक 17वीं जाट रेजिमेंट के लांस नायक विजय सिंह के पिता जीत राम जो अस्सी बरस के हो चुके हैं और आज भी बजाज पल्सर से घूमते हैं। जीतराम उस दिन को याद करते हुए आज भी भावुक हो जाते हैं, जब उन्हें उनके बेटे की शहीद होने की खबर मिली। जीत राम रक्षा मंत्रालय के सैनिक बोर्ड के एक सेवानिवृत्त जवान हैं। 6 जुलाई 1999 को विजय सिंह की शहादत की खबर मिलने के बाद जीत राम अपने घर पर पहुंचे और उनका हाल-चाल पूछा। उसके बाद परिवार वालों के साथ में बैठकर चाय पी और इसी बीच उन्होंने घरवालों को बताया कि उनका सपूत विजय सिंह ने परम बलिदान दे दिया है।

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जीतराम ने बताया कि सन 1999 की तारीख 3 जुलाई को लांस नायक विजय सिंह और पांच अन्य सैनिक कारगिल के टाइगर हिल पर एक पोस्ट की ओर बढ़ रहे थे। उनका लक्ष्य पाकिस्तानियों द्वारा भारी गोलाबारी के बीच लांस नायक कृष्ण पाल और लांस हवलदार बलवान सिंह के शवों को ढूढ़ कर वापस लाना था। इसी बीच दुश्मनों की तोपों से दागे गए बारूद के गोले बरसने शुरू हो जाते हैं, जिनमें से एक विजय सिंह पर लगभग सीधे गिरता है और वह मारे जाते हैं। रोहतक जिले के गांव सुंदरपुर से विजय सिंह, टिटोली गांव से कृष्ण पाल, और जिंदरान कलां के बलवान सिंह ये तीनों एक-दूसरे घनिष्ठ दोस्त थे, जो सेना में भर्ती हुए और उसी रेजिमेंट में शहीद हुए और एक ही समय में उनके वीर देशभक्त शरीर भी तिरंगे में लिपटे हुए ताबूत उनके गांवों में पहुंचे।


स्कूल के सेवानिवृत्त शिक्षक जीतराम चाहते थे कि उनका बेटा दसवीं कक्षा के बाद स्कूल में पढ़े और कम से कम ग्यारहवीं कक्षा पास हो, लेकिन विजय सिंह सेना में भर्ती होने पर अड़े थे। उन्होंने बताया, "मेरे दो पोते, जोगेन्दर सिंह और सतेंद्र सिंह सेना में शामिल हो गए हैं और वे सीमा पर राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं।"


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विजय सिंह और कृष्ण पाल का परिवार एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानता था, कृष्णपाल ने ही विजय सिंह को सेना में भर्ती होने का मार्गदर्शन करने में भूमिका निभाई थी। कृष्ण पाल कारगिल में अपनी आखिरी पोस्टिंग दे रहे थे, जो अगले महीने सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन कारगिल में मारे गए। उनकी पत्नी राजपति कहती हैं कि वह उनके रिटायर होने और घर लौटने का इंतजार कर रही थीं, इसके बजाय वे ताबूत में लौटे।


राजपति कहती हैं, "मुझे गर्व है कि मेरे पति ने राष्ट्र के लिए अपनी जान दे दी, मैंने अपने पति और अपने बच्चों के पिता को खो दिया। लेकिन सरकार ने परिवार की आर्थिक मदद की, सरकार ने हमें पेट्रोल पंप दिया। जिसमें उनके एक बेटे को गार्ड की नौकरी मिली।" राजपति की एकमात्र इच्छा है कि सरकार पाकिस्तान को सबक सिखाए। कृष्णपाल और विजय सिंह के परिवारों को एक ही दिन उनकी मौत की खबर मिली थी।

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वहीं तीसरे जवान बलवान सिंह के परिवार को एक दिन पहले उनके बारे में पता चला। बलवान सिंह के बड़े भाई सूरजमल सिंह ने बताया कि बलवान सिंह कक्षा 8 पास करने के बाद भारतीय सेना की 17वीं जाट रेजिमेंट में शामिल हो गए थे। सूरजमल सिंह ने कहा, "उन्हें सेना की वर्दी पहनने की इच्छा थी।" सूरजमल ने बताया कि 5 जुलाई, 1999 को उनके गांव के एक निवासी ने बलवान सिंह को बताया कि पंचायत कार्यालय में उनके लिए एक फोन आया था, जो सेना से था और यह खबर अच्छी नहीं थी। "अगले दिन, उनके दोस्त विजय सिंह और कृष्ण पाल शहीद हो गए और हमारे तीनों आस-पास के गांवों में एक निराशा की लहर दौड़ गई।"

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