हरियाणवी संस्कृति में है आनंद व उत्साह, कंवारी लड़कियों ने बनाई मिट्टी की सांझी, किया डांस

Edited By Manisha rana, Updated: 18 Oct, 2020 09:53 AM

joy and enthusiasm in haryanvi culture kanwari girls made clay did dance

ठेठ हरियाणवी अंदाज में लोकगीतों पर थिरकती महिलाएं। चहुंओर वातावरण ऐसा कि जैसे किसी पुराने गांव में हैं जहां मस्ती का माहौल है। दरअसल, महिलाओं का एक समूह युवा पीढ़ी को प्रदेश की संस्कृति से जोड़ने के...

हांसी (संदीप सैनी) : ठेठ हरियाणवी अंदाज में लोकगीतों पर थिरकती महिलाएं। चहुंओर वातावरण ऐसा कि जैसे किसी पुराने गांव में हैं जहां मस्ती का माहौल है। दरअसल, महिलाओं का एक समूह युवा पीढ़ी को प्रदेश की संस्कृति से जोड़ने के लिए मैदान में उतरा है। समूह की महिलाएं ठेठ हरियाणवी अंदाज में युवाओं के साथ मिलकर कार्यक्रम का आयोजन करती हैं। शनिवार को जगदीश कॉलोनी में एक मकान में लोक संस्कृति को संजोने के लिए सांझी का रंगारंग आयोजन किया। महिलाओं ने पूरा दिन पुरानी हरियाणी संस्कृति के परंपराओं के अनुरूप बिताया।

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बता दें कि कला जीवन समिति की महिलाएं प्रदेश की संस्कृति के प्रसार के लिए काम कर रही हैं। इनका उद्देश्य पुराने रीति-रिवाजों से वर्तमान पीढ़ी को जोड़ना है जिससे देश में अपनी अलग पहचान रखने वाली  प्रदेश की संस्कृति का महत्व बरकरार रहे। सांझी कार्यक्रम की आयोजक संगीता देवा ने कहा कि हमारे तीज-त्योहार लुप्त होते जा रहे हैं। पहले त्योहारों को लेकर उमंग व उत्साह होता था जो धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। जबकि प्रदेश के त्यौहार तो ऐसे हैं जो आपस में लोगों को जोड़ते हैं। वर्तमान पीढ़ी अपने सांस्कृतिक तीज-त्योहारों को ना भूले इसे लेकर कला जीवन समिति की महिलाएं अपने अभियान में जुटी हैं। कार्यक्रम में सांझी माता बनाई गई है व पुराने रीति-रिवाजों से उसे विसर्जित किया गया।

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जाने क्या है सांझी
पौराणिक कथाओं में ब्रह्मा के मानस पुत्र पीललम ऋषि की पत्नी 'सांझी' थी, जिसे मां दुर्गा भी कहते हैं। एक लोक मान्यता के अनुसार 'सांझी' सभी की सांझी देवी' मानी जाती है। संध्या के समय कुंआरी कन्याओं द्वारा इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि इसी कारण इस देवी का नाम 'सांझी' पड़ा है। इन दिनों चल रहे श्राद्ध पक्ष के पूरे 16 दिनों तक कुंआरी कन्याएं उमंग में बहुरंगी आकृति में 'सांझी' गढ़ती हैं तथा ज्ञान प्राप्ति हेतु देवी की आराधना करती हैं। हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियां बनाई जाती हैं। अमावस्या को सांझी देवी को विदा किया जाता है।     

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