हरियाणा पराली जलाने में देश में तीसरे स्थान पर, सेटेलाइट से जुटाया गया आकंडा

Edited By Manisha rana, Updated: 24 Sep, 2024 08:58 AM

haryana ranks third in the country in burning stubble

पराली जलाने की समस्या से निजात पाने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर प्रयास जारी हैं। लेकिन इसमें उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पा रही है। कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रो इकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (क्रीम्स) ने पराली से जुड़ी एक...

हरियाणा (स्पेशल डैस्क): पराली जलाने की समस्या से निजात पाने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर प्रयास जारी हैं। लेकिन इसमें उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पा रही है। कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रो इकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (क्रीम्स) ने पराली से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 6 राज्यों के 255 जिलों में वर्ष 2019 से 2023 तक पिछले 5 वर्षों में 3,87,946 फसल अवशेष जलाने के मामले दर्ज किए हैं। पराली जलाने के मामले में हरियाणा (46,545) इन राज्यों में 3 स्थान पर रहा है। पहले स्थान पर पंजाब (2,91,629) है। वहीं दूसरे स्थान पर मध्य प्रदेश (46,545) है। देश भर में फसल अवशेष जलाने के कुल मामलों में 75 प्रतिशत से अधिक घटनाएं पंजाब में हुई हैं।

सेटेलाइट से जुटाया गया आंकड़ा

इनके अलावा यू.पी. में 20,114, राजस्थान में 6,149 और दिल्ली में 28 पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं। बता दें कि हर साल 15 सितंबर से 30 नवंबर तक उपग्रह डेटा का उपयोग करके क्रीम्स द्वारा फसल अवशेष जलाने के आंकड़े को जुटाया गया है। पंजाब में वर्ष 2019 में 50,738, वर्ष 2020 में 83,002, वर्ष 2021 में 71,304, वर्ष 2022 में 49,922 और वर्ष 2023 में सबसे कम 36,663 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए। इसी तरह हरियाणा में साल 2019 में 6,328, वर्ष 2020 में 4,202, वर्ष 2021 में 6,987, वर्ष 2022 में 3,661 और वर्ष 2023 में 2,303 मामले दर्ज किए गए। एम.पी. में वर्ष 2020 में 14,148, वर्ष 2021 में 8,160, वर्ष 2022 में 11,737 और वर्ष 2023 में 12,500 मामले दर्ज किए गए। ऐसे ही यू.पी. में साल 2019 में 4,218, वर्ष 2020 में 4,631, वर्ष 2021 में 4,242, साल 2022 में 3,027 और वर्ष 2023 में 3,996 मामले दर्ज किए गए। राजस्थान में साल 2020 में 1,756, साल 2021 में 1,350, वर्ष 2022 में 1,268 और वर्ष 2023 में 1,775 मामले दर्ज किए गए।

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बनती हैं जहरीली गैसे

1 टन धान की फसल के अवशेष जलाने से 3 किलोग्राम कणिका तत्व (पर्टिकुलेट मैटर), 60 किलोग्राम कार्बन मोनो आक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड, 199 किलोग्राम राख एवं दो किलोग्राम सल्फर डाई आक्साइड अवमुक्त होता है। इन गैसों से सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है। इससे आंखों में जलन एवं त्वचा रोग होते हैं। वहीं कणिका तत्वों के कारण हृदय व फेफड़ों की बीमारी होती है।

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