हरियाणा : मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने से भी सत्ता विरोधी लहर कम नहीं कर पाई भाजपा

Edited By Manisha rana, Updated: 05 Jun, 2024 01:09 PM

haryana bjp could not reduce anti incumbency wave even changing chief minister

हरियाणा में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल को हटाकर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना भी भाजपा को खास फायदा नहीं पहुंचा सका। हालांकि भाजपा हाईकमान ने ऐसा करके सत्ता विरोधी लहर को कुछ कम करने का प्रयास जरूर किया लेकिन प्रदेश के ज्वलंत...

चंडीगढ़ : हरियाणा में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल को हटाकर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना भी भाजपा को खास फायदा नहीं पहुंचा सका। हालांकि भाजपा हाईकमान ने ऐसा करके सत्ता विरोधी लहर को कुछ कम करने का प्रयास जरूर किया लेकिन प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों ने भाजपा को महज 5 सीटों पर ही समेट दिया। कांग्रेस ने महंगाई, किसान आंदोलन, भ्रष्टाचार, संविधान बचाने और पोर्टल की समस्याओं से संबंधित मुद्दे उठाकर जनता को भरोसे में लाने का प्रयास किया तो वहीं कार्रचारियों और युवाओं की नाराजगी भी भाजपा पर भारी पड़ गई। इन मुद्दों से हटकर पहली बार अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा भी भितरघात की शिकार हुई। कई सीटों पर भाजपा के नेताओं ने ही अपने प्रत्याशियों का अंदरूनी विरोध करते हुए कांग्रेस के प्रत्याशियों की मदद की। चुनाव के बाद ही भाजपा में भितरघात का शोर सुनाई देने लगा था। वहीं कई स्थानों पर बोगस वोटिंग की शिकायत पर मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री ने अफसरों को भी निशाने पर लिया।

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चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों से ज्यादा स्थानीय मुद्दे ही हावी रहे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा अपनी सभाओं में लगातार महंगाई, बेरोजगारी, नौकरियों में भ्रष्टाचार, किसानों के साथ अन्याय, पोर्टल की सरकार और संविधान बचाने सहित मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे हैं। वहीं भाजपा की ओर से कांग्रेस के समय हुए भ्रष्टाचार को उठाते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और धारा 370 जैसे कानूनों की दुहाई देकर मतदाताओं को साधने का प्रयास किया गया लेकिन मतदाताओं ने राष्ट्रीय मुद्दों को ज्यादा अहमियत नहीं दी।

हार के मुख्य कारण 

हरियाणा में भाजपा की 5 सीटों पर हार के 5 मुख्य कारण रहे हैं। इस चुनाव में भाजपा की हार में जाट और दलितों ने अहम भूमिका निभाई। इन दोनों वर्ग के वोटरों ने भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ वोट किया। यही वजह रही कि शहरों के मुकाबले इन 5 सीटों पर गांवों में ज्यादा वोट पड़े। इसके अलावा किसानों के विरोध ने भी भाजपा प्रत्याशियों का समीकरण बिगाड़ दिया। कुछ ऐसी सीटें भी रहीं जहां भाजपा में भितरघात के कारण पार्टी उम्मीदवारों को नुक्सान उठाना पड़ा। सियासी जानकारों का कहना है कि हरियाणा में 10 साल से भाजपा सत्ता में है, इस कारण एंटी इनक बैंसी भी इन सीटों पर हार का कारण बना। राज्य की अधिकाश सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों का किसानों ने विरोध किया। इनमें सिरसा, हिसार, अम्बाला, रोहतक और सोनीपत में हाल ज्यादा खराब रहा। हरियाणा में 65 फीसदी के करीब आबादी खेती-किसानी से जुड़ी हुई है।

भाजपा की हार की तीसरी बड़ी वजह पार्टी में भितरघात रहा। चुनाव में गुपचुप तरीके से पार्टी के सांसद, विधायकों और पदाधिकारियों ने पार्टी विरोधी प्रचार किया। इसकी पुष्टि भाजपा की रिव्यू मीटिंग में प्रत्याशियों द्वारा की गई शिकायत में हो चुकी है। वोटिंग के बाद पार्टी प्रत्याशियों ने खुलकर ऐसे भितरघातियों पर हमला बोला। भाजपा की हार के पीछे प्रदेश में 10 साल की इनकवैंसी को भी बताया है। उनका कहना है कि हरियाणा में 2014 से भाजपा सरकार चला रही है। इसको लेकर लोगों में सरकार के प्रति विरोध रहा । इसके साथ ही पार्टी के द्वारा सरकार में बदलाव को भी लोगों ने पसंद नहीं किया। चुनाव प्रचार दौरान भाजपा के कुछ बड़े चेहरों ने हरियाणा के बड़े चेहरों पर जमकर हमला बोला। पूर्व सी. एम. मनोहर लाल ने पूर्व सी. एम. भजन लाल के खिलाफ 2 बार ऐसे बयान दिए, जिसका बिश्नोई समाज पर बुरा प्रभाव पड़ा। वहीं सी. एम. नायब सैनी ने भी भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस के पूर्व सी. एम. भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर जमकर हमला बोला।

 

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