चौटालाओं के गढ़ में कांग्रेस के 2 पूर्व प्रदेश अध्यक्षों में कांटे की टक्कर, दोनों संभाल चुके हरियाणा कांग्रेस की बागडोर

Edited By Isha, Updated: 22 May, 2024 06:50 PM

close contest between 2 former state presidents of congress

हरियाणा के पश्चिमी क्षेत्र में पंजाब और राजस्थान की सीमा पर सटा सिरसा लोकसभा क्षेत्र एक समय इनेलो प्रमुख एवं पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके ओमप्रकाश चौटाला का गढ़ माना जाता था। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल भी

चंडीगढ़(चंद्र शेखर धरणी): हरियाणा के पश्चिमी क्षेत्र में पंजाब और राजस्थान की सीमा पर सटा सिरसा लोकसभा क्षेत्र एक समय इनेलो प्रमुख एवं पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके ओमप्रकाश चौटाला का गढ़ माना जाता था। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल भी सिरसा स्थित चौटाला गांव की देन हैं। सिरसा में राजनीतिक रूप से ताऊ देवीलाल का परिवार अभी भी मौजूद है और उसकी सारी राजनीति यहीं से चलती है, मगर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भाजपा ने सुनीता दुग्गल के रूप में इस सीट पर भगवा झंडा फहरा कर न केवल चौटालाओं का राजनीतिक तिलिस्म कम कर दिया, बल्कि उनके परिवार में पड़ी फूट का जबरदस्त तरीके से फायदा उटाया। सिरसा से इनेलो के साथ-साथ कांग्रेस भी चुनाव जीतती रही है। इस बार भाजपा ने सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर यहां से हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके डा. अशोक तंवर को चुनाव मैदान में उतारा है।

 कांग्रेस की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी दलबीर सिंह की बेटी कुमारी सैलजा चुनावी रण में ताल टोंक रही हैं। कुमारी सैलजा सिरसा से दो बार सांसद रह चुकी हैं, जबकि उनके पिता दलबीर सिंह भी लोकसभा में सिरसा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। भाजपा ने जिन डा. अशोक तंवर को मोदी के दूत के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है, वे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से अपनी नाराजगी के चलते कांग्रेस छोड़कर पहले तृणमूल कांग्रेस में गए। फिर स्वयं का राजनीतिक संगठन बनाया। उसके बाद कुछ समय तक आम आमी पार्टी की राजनीति की। अब वे भाजपा का झंडा लेकर पूरे सिरसा संसदीय क्षेत्र में मोदी और मनोहर लाल की आवाज बने हुए हैं।

 सिरसा सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र है। भाजपा के डा. अशोक तंवर और कांग्रेस की कुमारी सैलजा के बीच एक चीज कामन है और वह ये कि दोनों अलग-अलग समय हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके है। दोनों की दलित वोटों में जबरदस्त पकड़ है। इनेलो ने सिरसा से संदीप लोट और जेजेपी ने पूर्व विदायक रमेश खटक को चुनाव मैदान में उतारा है। इस संसदीय क्षेत्र में रमेश खटक और संदीप लोट दोनों का कोई जनाधार नहीं है। चौटाला परिवार में आपसी फूट और उनके अलग-अलग रास्तों ने इस संसदीय क्षेत्र में उनके राजनीतिक अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ताऊ देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत सिंह चौटाला को भाजपा ने इस मंशा से हिसार लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है, ताकि हिसार के साथ-साथ सिरसा में भी भाजपा को राजनीतिक फायदा मिल सके।

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 खत्म करने के फायदे तो भाजपा को मिल ही रहे हैं, साथ ही पूर्व मु्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार द्वारा वंचित वर्ग के कल्याण के लिए लागू की गई सराकरी योजनाओं का लाभ भी भाजपा खासकर डा. अशोक तंवर की मजबूत ताकत बना हुआ है। उनके लिए सिरसा में कभी भाजपा-जजपा गबंधन की सरकार के सूत्रधार रहे कप्तान मीनू बैनीवाल को विशेष रूप से जिम्मेदारी सौंपी गई है। कुमारी सैलजा की ताकत उनका स्वयं का जनाधार है। सैलजा के लिए पूर्व मुक्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा खेमा बिल्कुल मेहनत नहीं कर रहा है, लेकिन एसआरकें गुट यानी सैलजा के साथ रणदीप सुरजेवाला, िरण चौधरी, भिवानी से टिकट कटने का दंश झेल रही पूर्व सांसद श्रुति चौधरी और पूर्व केंद्रीय मत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह उनके लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।

 इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला अब काफी बुजुर्ग हो चुके हैं। उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला है, जो स्वयं कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से भाजपा के नवीन जिंदल के सामने चुनाव लड़ रहे हैं। अभय सिंह का चौटाला का पूरा फोकस अपनी लोकसभा सीट पर बना हुआ है। उनका सिरसा की तरफ कोई ध्यान नहीं है। कभी-कभी अभय सिंह हिसार में अपने चाचा रणजीत सिंह चौटाला के सामने चुनाव लड़ रही भाभी सुनैना चौटाला के लिए प्रचार करने जाते हैं। पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की भी सिरसा में खास सक्रियता नहीं है। उनकी मां हिसार में जजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। इसलिए सिरसा में चौटाला परिवार की राजनीतिक गतिविधियां खास नहीं रह गई हैं, जिसका फायदा भाजपा व कांग्रेस दोनों उठानी की फिराक में हैं। सिरसा में डेरा सच्चा सौदा और डेरा भूमण शाह दो ऐसी ताकतेें हैं, जिनका आशीर्वाद जिसे मिल जाए, वह राजनीतिक रूप से तर जाता है, मगर अभी तक इन दोनों डेरों ने अपने बपत्ते नहीं खोले हैं।

 

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