20 दिन में छिन चुका है 8 परिवारों का सहारा

Edited By Updated: 18 Apr, 2017 01:00 PM

8 families have been missing in 20 days

सरकार की संवेदनहीनता मजदूरों की जान पर भारी पड़ रही है।

सोनीपत (दीक्षित):सरकार की संवेदनहीनता मजदूरों की जान पर भारी पड़ रही है। बिना सुरक्षा उपकरणों के ही मजदूर मौत के कुओं में उतर जाते हैं और मौत का शिकार हो जाते हैं। ताज्जुब की बात यह है कि बीते 20 दिन में प्रदेश में 8 लोग इस तरह की घटनाओं में जान गवां चुके है, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। सोनीपत में हाईवे पर अलग-अलग बिल्डरों की बसाई कालोनियों में बीते 6 माह में यह तीसरी घटना है। करीब 6 माह पहले हाईवे पर एक बिल्डर के यहां गटर में ही 4 मजदूरों को जान से हाथ धोना पड़ा था। यही नहीं, 20 दिन में 8 लोगों की मौत के बावजूद प्रदेश सरकार सो रही है। इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही। राज्य में इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही है। 

इससे भी ज्यादा अचरज की बात यह है कि इस तरह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का जमकर उल्लंघन किया जा रहा है। सीवरेज की सफाई के मैनहोल में उतरने वाले कर्मचारियों भी बगैर किसी सुरक्षा उपकरण के ही गटरों में उतार दिया जाता है। करीब 20 दिन पहले सीवरेज की सफाई करते समय फरीदाबाद में तीन और कैथल में दो लोगों की मौत के बाद सोमवार को सोनीपत जिले में भी तीन व्यक्तियों की मौत हो गई। इससे पहले जींद, कैथल, रोहतक जिलों में भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। सोनीपत में करीब 6 माह पहले हुई ऐसी ही घटना में 4 लोगों की मौत हुई थी।

हाल के वर्षों में अब तक सीवरेज के मैनहोल में उतरने से करीब 120 लोगों की मौत हो चुकी हैं। इधर, प्रदेश की पूर्व तथा मौजूदा सरकारों के कार्यकाल में सीवरेज में दम घुटने की घटनाएं होती रही हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने इस मामले में अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई। पूरे मामले में सबसे अधिक लापरवाही जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा बरती जा रही है। राज्य के फरीदाबाद और गुरुग्राम नगर निगम को छोड़कर सभी शहरों में सीवरेज व्यवस्था जनस्वास्थ्य एवं जलापूर्ति विभाग के पास है। इन दोनों निगमों में यह काम शहरी स्थानीय निकाय विभाग के जिम्मे है। 

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार नहीं मिलता मुआवजा 
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के अपने फैसले में स्पष्ट किया था अगर सीवरेज की सफाई के दौरान कर्मचारी की मौत होती है तो उसके परिजनों को 10 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी। कर्मचारी अगर आऊटसोर्सिंग नीति के तहत लगा है तो मुआवजा राशि ठेकेदार द्वारा दी जाएगी। नियमित या कांट्रैक्ट पर कार्यरत कर्मचारियों की मौत पर यह पैसा सरकार द्वारा दिया जाएगा लेकिन इन आदेशों के अनुसार मुआवजा नहीं दिया जाता।

गटर में उतरते समय जे.ई. व एस.डी.एम. का रहना जरूरी
मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि सीवरेज लाइनों की सफाई के लिए कर्मचारियों को अंदर नहीं उतारा जाएगा। किसी विकट स्थिति में अगर कर्मचारियों को अंदर प्रवेश करना भी पड़े तो उस दौरान मौके पर विभाग के जे.ई. और एस.डी.ओ. का मौजूद रहना जरूरी है। यहां हालात यह हैं कि अधिकतर शहरों में सफाई का जिम्मा प्राइवेट ठेकेदारों के हाथों में है। आऊटसोर्सिंग नीति के तहत लगे ठेके के कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवरेज के मैनहोल में उतार दिया जाता है। इस संवेदनशील मामले में सरकार द्वारा नियम तो बनाए है लेकिन उन्हें लागू करवाने की दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है। 
 

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