हरियाणा की सियासत के 58 साल, निर्दलीय विधायकों ने किया है कमाल!

Edited By Manisha rana, Updated: 01 Sep, 2024 10:58 AM

58 years of haryana politics independent mlas have done wonders

दूध-दही के खाने के मामले में तो हरित प्रदेश हरियाणा की पहचान है ही वहीं सियासत के लिहाज से भी इस प्रदेश का अपना ही एक खास इतिहास है। चुटीले चुटकलों व तंज रूपी कहावतों के जरिए बेबाकी से हरियाणवीं अंदाज में अपनी बात रखने वाले प्रदेश के लोगों के उदाहरण...

चंडीगढ़ : दूध-दही के खाने के मामले में तो हरित प्रदेश हरियाणा की पहचान है ही वहीं सियासत के लिहाज से भी इस प्रदेश का अपना ही एक खास इतिहास है। चुटीले चुटकलों व तंज रूपी कहावतों के जरिए बेबाकी से हरियाणवीं अंदाज में अपनी बात रखने वाले प्रदेश के लोगों के उदाहरण जिस प्रकार बातचीत को रोचक बनाते हैं, कमोबेश राजनीति के गलियारों के भी ऐसे ही किस्से-कहानी हैं। हरियाणा के गठन से लेकर अब तक के 58 सालों के सियासी इतिहास में अनेक रोचक एवं अनूठे तथ्य प्रदेश की सियासत से जुड़े हुए हैं। इस इतिहास के पन्नों को जैसे जैसे पलटते जाएंगे तो हर पन्ने पर एक दिलचस्प तथ्य उभर कर सामने आएगा। बैंकि प्रदेश की इन 90 विधानसभा सीटों में से कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां पर बड़े ही दिलचस्प रिकॉर्ड बने।

उदाहरण के रूप में आदमपुर विधानसभा सीट पर 1968 से लेकर अब तक चौ. भजनलाल परिवार ने सर्वाधिक 16 चुनावों में जीत प्राप्त की है तो चौ. देवीलाल और उनके बड़े बेटे चौ. ओमप्रकाश चौटाला 5 अलग- अलग विधानसभा क्षेत्रों से विधायक चुने गए हैं। दिलचस्प तथ्यों को समेटे हुए एक ऐसी ही विधानसभा सीट है पुंडरी। पुंडरी में 1967 से लेकर 2019 तक हुए 13 सामान्य विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक 7 बार आजाद विधायक निर्वाचित हुए हैं। इनमें दिनेश कौशिक 2 बार पुंडरी से आजाद विधायक बने हैं। वर्तमान में भी पुंडरी से रणधीर सिंह आजाद विधायक हैं।

गौरतलब है कि साल 1968 में पुंडरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार ईश्वर सिंह ने 14211 वोट लेते हुए कांग्रेस प्रत्याशी तारा सिंह को कड़े मुकाबले में 438 वोटों के अंतर से पराजित किया था। इसके बाद लंबे अंतराल तक इस सीट से आजाद उम्मीदवार चुनाव तो लड़ते रहे, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। 1996 से लेकर 2019 तक लगातार 6 चुनावों में 23 वर्षों तक लगातार निर्दलीय उम्मीदवारों ने ही पुंडरी विधानसभा सीट से जीत का परचम लहराया। 1996 में आजाद उम्मीदवार नरेंद्र शर्मा ने 21 हजार 542 वोट लेते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार ईश्वर सिंह को 1231 वोटों के अंतर से हरा दिया। साल 2000 में निर्दलीय प्रत्याशी तेजवीर सिंह ने 21 हजार 559 वोट लेते हुए आजाद उम्मीवार नरेंद्र शर्मा को करीब 1800 वोटों के अंतर से पराजित कर दिया। इसी तरह से साल 2005 में निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश कौशिक ने 33 हजार 24 वोट लेते हुए इनैलो के उम्मीदवार नरेंद्र शर्मा को 8 हजार 26 वोटों के अंतर से हराया।

इसी प्रकार साल 2009 में आजाद प्रत्याशी सुल्तान सिंह ने 38 हजार 929 वोट लेते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार दिनेश कौशिक को 4 हजार 51 मतों के अंतर से हराया। 2014 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश कौशिक ने 38 हजार 312 वोट प्राप्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रणधीर सिंह को 4 हजार 832 चोटों के अंतर से पराजित किया। 2019 में पुंडरी से रणधीर सिंह बतौर आजाद उम्मीदवार विधायक चुने गए। रणधीर सिंह ने 12 हजार 824 बोटों के अंतर से जीत हासिल की। 

अब तक 2 आजाद महिलाएं बनीं विधायक

विशेष पहलू ये भी है कि हरियाणा में 1967 से लेकर 2019 तक 13 चुनाव हुए हैं और प्रत्येक चुनाव में आजाद उम्मीदवारों का प्रदर्शन ठीक रहा है। 1967 में 16, 1968 में 6, 1972 में 11, 1977 में 7 आजाद विधायक चुने गए हैं। इन चुनावों में कभी कोई महिला आजाद विधायक नहीं चुनी गई। 1982 में पहली बार बल्लबगढ़ सीट से शारदा रानी आजाद विधायक चुनी गई। शारदा रानी ने ब्लॉक समिति की सदस्य से अपने सियासी करियर का आगाज किया। 1968, 1972 और 1977 में वे कांग्रेस से विधायक चुनी गई। 1982 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दी जिस पर शारदा रानी ने आजाद उम्मीदवार के रूप में ताल टोक दी और जीत हासिल की।

शारदा रानी के बाद हरियाणा के अब तक के राजनीतिक इतिहास में मेधावी कीर्ति ही दूसरी ऐसी महिला हैं जिन्होंने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता है। मेधावी कीर्ति प्रसिद्ध राजनेता बाबू जगजीवन राम की पौत्री हैं। 1987 के चुनाव में लोकदल और भाजपा की जबरदस्त लहर थी। दिल्ली से हिंदी मेंएम.ए करने के बाद मेवाती राजनीति में आ गई। 1985 से 1986 तक वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की महासचिव रहीं। इसके बाद कांग्रेस से किनारा कर लिया और इंडिया कांग्रेस । मेधावी) नाम से खुद का सियासी दल बना लिया। 1987 के चुनाव में झज्जर सीट से चुनावी ताल ठोक दी। लोकदल की लहर के बीच ही उन्होंने लोकदल के उम्मीदवार ममंगेराम को 13 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया।

निर्दलीय विधायकों के सहारे बनती रही हैं सरकारें

खास बात ये है कि प्रदेश में हुए विभिन्न सामान्य चुनावों में अलग अलग विधानसभा सीटों से जहां आजाद उम्मीदवारों को जीत मिली तो वहीं इन निर्दलीय उम्मीदवारों के आसरे अनेक बार सरकारें भी बनाई गई। 2009 में भी कांग्रेस सरकार 7 निर्दलीय विधायकों के सहारे ही बनी थी। इससे पहले साल 1982 में भजनलाल ने भी आजाद उम्मीदवारों के बूले सरकार बनाई थी और बाद में 5 आजाद विधायकों को अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया था। इसी तरह से 2019 के विधानसभा चुनाव में भी 7 आजाद विधायक निर्वाचित हुए और इनमें से 6 ने भाजपा को समर्थन दिया। उस समय भाजपा ने अपनी सरकार में रानियां से आजाद विधायक चुने गए चौ. रणजीत सिंह को बिजली एवं जेल मंत्री बनाया था। अतीत की बात करें ते हरियाण गठन के बाद 1967 में हुए पहले चुनाव में 269 नेताओं ने बतौर आजाद उम्मीदवार के रूप में भाग्य आजमाया और 16 को जीत मिली। आज भी प्रदेश की राजनीति में यह रिकॉर्ड कायम है।

साल 1968 में 161 आजाद प्रत्याशी चुनावी मैदान में वे जिनमे से 6 को जीत मिल पाई। 1972 में हुए चुनाव में आजाद उम्मीदवारों ने एक बार फिर से जीत के लिहाज से दहाई का आकडा पार किया। 1972 के चुनाव में 207 आजाद प्राथाशियों ने चुनाव लड़ा और 11 को जीत मिल गई। 1977 के चुनाव में 439 में से 7, 1982 में 835 में से 16, 1987 में 1045 में से 7, 1991 में 1412 में से 5 को जीत मिली। 1996 में तीसरी बार ऐसा मौका आया जब आजाद विधायक की संख्या दहाई के अक तक पहुंची। 1996 के चुनाव में 2022 आजाद प्रत्याशी मैदान में थे और 10 को जीत मिल गई। इसी प्रकार से साल 2000 में 519 में से 11, 2005 में 442 में रो 10, 2009 में 513 में से 7, 2014 में 603 में 5, 2019 में 377 में से 7 निर्दलीय विधायक निर्वाचित हुए।

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