Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 29 Nov, 2024 06:45 PM
कोलीयर्स इंटरनेशनल द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 वर्षों में देश में भवन निर्माण के लागत में तेजी से वृद्धि हुई है। निर्माण के लिए आवश्यक सामग्रियों के साथ-साथ श्रमिकों का पारिश्रमिक भी इसमें शामिल है
गुड़गांव, (ब्यूरो): कोलीयर्स इंटरनेशनल द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 वर्षों में देश में भवन निर्माण के लागत में तेजी से वृद्धि हुई है। निर्माण के लिए आवश्यक सामग्रियों के साथ-साथ श्रमिकों का पारिश्रमिक भी इसमें शामिल है लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाले श्रमिकों की लागत का हिस्सा इसमें ज्यादा है जबकि आवश्यक सामग्रियों का हिस्सा सीमित है। इस कारण निर्माण की औसत लागत वर्ष 2020 में रुपये 2,000 प्रति वर्ग फीट से बढ़कर वर्ष 2024 में लगभग रुपये 2,800 प्रति वर्ग फीट हो गई है जो लगभग 40 फीसद की वृद्धि दर्शाता है।
संस्थान की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि इसी अंतराल में वर्ष 2021 में निर्माण लागत रुपये 2,200 प्रति वर्ग फीट, वर्ष 2022 में रुपये 2,300 प्रति वर्ग फीट, वर्ष 2023 में रुपये 2,500 प्रति वर्ग फीट थी जो इस वर्ष लगभग रुपये 2,800 प्रति वर्ग फीट तक आ गई है जो एक वर्ष में अभी तक का सबसे ज्यादा, लगभग 11-12 फीसद की, वृद्धि है जो पहले के वर्षों में केवल 5-8 फीसद की रही है।
निर्माण लागत को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले कारक में अच्छी गुणवत्ता वाले श्रमिकों की श्रेणी है जिसके कारण निर्माण लागत लगभग 25 फीसद तक प्रभावित हुआ है। डेवलपर्स द्वारा अपनी परियोजनाओं के कम समय में बढ़िया क्वालिटी, मजबूती एवं फिनिशिंग देने के लिए निर्माण में अब माईवन/ एल्युमिनियम शटरिंग, इको-फ़्रेंडली और निर्माण के नवीनतम तकनीक का अधिकतम इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रणाली पर कार्य करने वाले कुशल श्रमिकों की मांग बढ़ी है जिसका प्रभाव श्रमिकों के शुल्क/ भुगतान पर भी पड़ा है जो पहले से ज्यादा हो गया है।
निर्माण लागत प्रभावित करने वाले दूसरे कारकों में स्टील, सीमेंट, कापर एवं एल्युमिनियम शमिल है। आश्चर्यजनक रूप से भवन निर्माण में भारी मात्रा में इस्तेमाल होने वाले सीमेंट की कीमतों में पिछले एक वर्ष में 15 फीसद की कमी दर्ज की गई है। सीमेंट के बाद निर्माण कार्यों में स्टील का उपयोग भी बड़ी मात्रा में किया जाता है और रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक वर्ष में स्टील की कीमत में भी 1फीसद की कमी आई है। जबकि कापर और एल्युमिनियम की कीमत में क्रमशः 19 फीसद और 5 फीसद की वृद्धि दर्ज हुई है। अगर इनका औसत लागत भी लगाया जाए तो निर्माण की लागत में, मामूली ही सही, लेकिन वृद्धि स्पष्ट रूप से दिखती है। रिपोर्ट में रियल एस्टेट संस्थानों द्वारा नई तकनीक के आधार पर कार्य करने लायक प्रशिक्षित श्रमिक तैयार करने और उनकी सुरक्षा के उपायों पर भी खर्च किया जा रहा है जिसका प्रभाव निर्माण लागत पर पड़ने की बात कही गई है।
इस विषय पर दिनेश गुप्ता, सचिव, क्रेडाई पश्चिमी यूपी के सचिव का कहना है कि प्रति वर्ष निर्माण कार्य कम से कम 2 या 3 महीने प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इसकी भरपाई करने और समय से प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए डेवलपर्स द्वारा नई और उत्तम तकनीक अपनाई जा रही है जिससे निर्माण पहले से कम समय में किया जा सके। इसके अलावा निर्माण की गुणवत्ता को ऐसे स्तर तक लाया गया है कि तैयार बिल्डिंग की क्षमता वर्षों तक उत्तरी भारत के जबरदस्त बदलते मौसम का प्रभाव झेलने वाला हो।
सुरेश गर्ग, निराला वर्ल्ड के सीएमडी के अनुसार, एल्यूमीनियम फोम शटरिंग स्वयं बहुत महंगा है और एएफएस के साथ निर्माण के लिए अधिक कंक्रीट और स्टील की भी आवश्यकता होती है क्योंकि सभी दीवारें केवल कंक्रीट और स्टील से बनाई जाती हैं। लगभग 95 फीसद भवन निर्माण अब एल्युमिनियम शटरिंग पर किए जा रहे है जिस पर काम करना परंपरागत तकनीक की तुलना में पूर्णतः अलग होता है। टावर को बेहतर क्वालिटी और फिनिशिंग देने के लिए अनुभवी श्रमिकों को आवश्यकता पड़ती है जिनकी उपलब्धता एक चुनौती है। इसके लिए हम अनुभवी लोगों को चुनते है जो नई प्रणाली के अनुसार काम करने के साथ-साथ पुराने श्रमिकों को भी प्रशिक्षण दे सकें जिससे इस मॉडल पर काम करने लायक अधिक श्रमिक तैयार किए जा सके। इससे समय और लागत दोनों प्रभावित हो रही है।
ईरोस ग्रुप के निदेशक अवनीश सूद के अनुसार रियल एस्टेट में भवन निर्माण में नई तकनीक और वातावरण के अनुकूल ढांचा का निर्माण का मिश्रण करना समय की मांग है जिससे अप्रत्याशित रूप से बदलते मौसम और कम ज्यादा होते तापमान में घर खरीदारों को अच्छे से अच्छे क्वालिटी का घर दिया जा सके। हमारे द्वारा अपने पूर्व अनुभवों को अपनी आवासीय परियोजना के लिए भी इस्तेमाल किया गया है जिसमें हमने शुरू से ही निर्माण हेतु नवीनतम और इको-फ़्रेंडली तकनीक का इस्तेमाल कर रहे है। इसके लिए उस स्तर के ट्रेंड टीम और उच्च मटेरियल का इस्तेमाल करना भी आवश्यक है और इस कारण लागत का बढ़ना स्वाभाविक है।