प्रवासी मजदूरों पर टूटा कहर, मालिकों ने करवाए मकान खाली

Edited By Isha, Updated: 28 Mar, 2020 02:47 PM

migrant laborers wreak havoc owners get houses vacated

बावल की औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए कोरोना वायरस व लॉकडाऊन मुसीबत बन गया है। ये श्रमिक गांवों में किराए का मकान लेकर रह रहे हैं लेकिन...

बावल (रोहिल्ला) : बावल की औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए कोरोना वायरस व लॉकडाऊन मुसीबत बन गया है। ये श्रमिक गांवों में किराए का मकान लेकर रह रहे हैं लेकिन जब से कोरोना संक्रमण का भय बना है, तभी से मालिक इन्हें मकान खाली करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। सैंकड़ों श्रमिकों से मकान खाली भी करवा लिए गए हैं। ऐसे हालातों में जहां वे घर से बेघर हो गए हैं, वहीं लॉकडाऊन के कारण वे अपने घरों को भी नहीं जा पा रहे हैं।

ये श्रमिक विभिन्न राज्यों से आए हुए हैं। भूखे-प्यासे इन मजदूरों ने अपने घर जाने के लिए पैदल ही मार्च शुरू कर दिया है। ऐसे 80 श्रमिक परिवार सहित बावल रेल लाइन व दिल्ली-जयपुर हाईवे के सहारे-सहारे राजस्थान, बिहार, यू.पी. व अन्य राज्यों के लिए टोलियों में कूच कर रहे हैं। इनके पास न तो पैसे है और न ही खाने के लिए भोजन। इन श्रमिकों पर उस समय मुसीबत टूटी जब 3 दिन पूर्व बावल के नंगली परसापुर रोड पर किराए पर रह रहे बिहार के युवाओं को उल्टी-दस्त की शिकायत हो गई।

इसे कोरोना वायरस का मामला समझकर मकान मालिक ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। पुलिस ने भी देर किए बिना बिहार के गोपालगंज निवासी प्रदीप सोनी सहित युवाओं को बावल में बनाए गए वार्ड में भर्ती करवाया। जहां डाक्टरों ने उनमें कोरोना के लक्षण नहीं पाए जाने पर उन्हें बावल में ही रहने की सलाह दी। जब ये श्रमिक अपने घर पर पहुंचे तो मकान मालिक ने सभी श्रमिकों को यह कहकर मकान खाली करवा लिया कि कहीं भी जाओ लेकिन घर खाली कर दो।

4 बेटियों के पिता प्रदीप सोनी, बच्चा लाल वर्मा व उसके पुत्र हीरालाल, मनीष सोनी, सोनू कुमार, नीतीश सोनी को मजबूर होकर सड़कों पर आना पड़ा और हाईवे से दिल्ली के रास्ते बिहार जाने के लिए पैदल निकल पड़े। ऐसी ही घटना अन्य श्रमिकों के साथ भी हुई लेकिन इन श्रमिकों को नाकाबंदी के दौरान रोक लिया गया। जब उनके हालात के बारे में एस.डी.एम. रविंद्र कुमार को पता चला तो उन्होंने उन्हें शरण देने की जिम्मेदारी नगरपालिका सचिव इंद्रसिंह को सौंप दी।

इंद्रसिंह ने इन सभी की बावल की बाबा रतिराम धर्मशाला में रहने की व्यवस्था कर दी। यहां भी उनके दुख कम नहीं हुए। इन्हें धर्मशाला प्रबंधकों ने कुछ घंटों बाद ही यहां से निकाल दिया। तत्पश्चात बीमार नीतीश सोनी व अन्य श्रमिक एक बार फिर पैदल चलने के लिए मजबूर हो गए और रेल लाइन के साथ-साथ दिल्ली व बिहार जाने के लिए विवश हो गए। बावल के आसपास ऐसे श्रमिकों की अनेक टोलियां रेलवे स्टेशन व हाईवे के साथ जाती दिखाई दीं।

श्रमिक प्रदीप सोनी, मनीष कुमार ने बताया कि उन्हें छोटे-छोटे बच्चों व सामान के साथ 500-600 किलोमीटर का सफर तय करना है। उन्होंने कहा कि 15 दिनों से उन्हें काम नहीं मिला जिसके कारण उनके पास खाने-पीने का सामान खरीदने के लिये पैसे भी नहीं हैं। पता नहीं कि वे मंजिल पर कब और किन हालातों में पहुंचेंगे। इन लोगों को यहां के प्रशासन से पूरी तरह निराशा हाथ लगी। 

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