Edited By Rakhi Yadav, Updated: 27 Jul, 2018 12:39 PM
जिले में साल-दर-साल गिरता जा रहा भूमिगत जलस्तर आने वाले समय में गम्भीर संकट की दस्तक है। यदि भूमिगत जलस्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले कुछ सालों में सिंचाई के लिए तो धरती....
जींद(प्रदीप): जिले में साल-दर-साल गिरता जा रहा भूमिगत जलस्तर आने वाले समय में गम्भीर संकट की दस्तक है। यदि भूमिगत जलस्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले कुछ सालों में सिंचाई के लिए तो धरती की कोख सूखी रहेगी ही, लोगों का कंठ भी पेयजल के लिए तरसेगा। जिले में धान और गन्ने जैसी फसलों की सिंचाई के लिए भूमिगत जल का लगातार और बेदर्दी से दोहन होने से वह दिन दूर नहीं, जब पूरा जिला डार्क जोन घोषित होगा। जिले के अलेवा और उचाना में स्थिति और भी भयावह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने मन की बात कार्यक्रम में गिरते भू-जल संकट से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों पर जोर दिया है।
इस समय पूरे जिले में 70 प्रतिशत सिंचाई भूमिगत जल से की जा रही है। एक तरफ नहरी पानी की कमी और दूसरी तरफ गिरते भू-जलस्तर का संकट जींद जिला ही नहीं, इस समय पूरा हरियाणा झेल रहा है। जिले में किसान धान और गेहूं के फसल चक्र में मजबूरी में बारिश कम होने के कारण भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। किसानों की मानें तो किसानों को ट्यूबवैलों में 10 से 20 फुट पाइप हर साल डालना पड़ता है।
जन स्वास्थ्य विभाग को गिरते जलस्तर के कारण हर साल नए ट्यूबवैल लगाने पड़ते हैं। जल की बर्बादी, रजबाहों में पानी नहीं आना, वर्षा के जल का संरक्षण नहीं करना, धान और गन्ने की अधिक खेती आदि भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। एक समय था, जब जिले में 600 से ज्यादा तालाब और बावड़ी थी। इनमें पानी हर समय रहता था। भूमिगत जलस्तर को रिचार्ज करने का यह भी एक बड़ा स्त्रोत माना जाता था। समय के साथ आबादी बढ़ती गई, तालाब घटते गए। इसका भी भूमिगत जलस्तर पर कु-प्रभाव पड़ा है।