छींटाकशी चरम पर, मुद्दे हुए गौण

Edited By Deepak Paul, Updated: 20 Mar, 2019 10:01 AM

scattering at the peak

10 संसदीय सीटों वाले प्रदेश में चुनावी शह-मात का खेल शुरू हो गया है। एक-दूसरे के खिलाफ...

सिरसा : 10 संसदीय सीटों वाले प्रदेश में चुनावी शह-मात का खेल शुरू हो गया है। एक-दूसरे के खिलाफ अमर्यादित एवं व्यक्तिगत टिप्पणियों का सिलसिला जारी है तो वहीं चुनावी शोर में राज्य के लिए महत्ता रखने वाले मुद्दे गायब हैं। बेशक चौकीदार चोर है, मैं हूं चौकीदार से लेकर एक-दूसरे पर छींटाकशी कसी जा रही है लेकिन प्रदेश में अहमियत रखने वाले अलग राजधानी, अलग हाईकोर्ट, सतुलज यमुना लिंक नहर, किसानी, रोजगार एवं औद्योगिक विकास को लेकर नेताओं की जुबां बंद है।

दअसल हरियाणा 53 साल का हो गया पर अभी तक अलग राजधानी नसीब नहीं हुई। अलग हाईकोर्ट भी नहीं मिला। बरसों से सतलुज यमुना ङ्क्षलक नहर प्यासी है। नेताओं के भाषणों में महंगाई, बिजली-पानी, बेकारी के वायदे सुनाई देते हैं।  अलग राजधानी व अलग हाईकोर्ट की कोई बात नहीं कर रहा। सतलुज यमुना ङ्क्षलक नहर के मसले पर भी खामोशी की चादर चढ़ी हुई है। पर्यावरण के लिहाज से स्थिति राज्य में  चिंताजनक है।

महज 6 फीसदी भूमि पर पेड़ हैं पर पर्यावरण जैसा गंभीर विषय राजनेताओं के लिए चुनावी मुद्दा नहीं है। दरअसल गहरी पैठ से देखें तो हरियाणा को अलग राजधानी की अनेक तरह से दरकार है। सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ इस समय पंजाब एवं हरियाणा दोनों की राजधानी है। अब चंडीगढ़ 2 प्रदेशों की राजधानी है, ऐसे में छोटे क्षेत्र में फैले प्रदेश के बहुतेरे जिलों से चंडीगढ़ की दूरी काफी है। एक अन्य विकल्प के मुताबिक हरियाणा के पंजाबी बाहुल्य इलाके को पंजाब को देकर हरियाणा ने चंडीगढ़ अपने लिए मांगा। कोई बात सिरे न चढ़ी। अब चुनाव का मौसम है और अब भी यह अहम मसला राजनेताओं की पसंद का मुद्दा नहीं है।

अलग हाईकोर्ट नहीं अहम मुद्दा
अलग राजधानी की तरह अलग हाईकोर्ट का मसला भी विधानसभा चुनाव में अहम मसला नहीं है। राजधानी की तरह चंडीगढ़ में अलग हाईकोर्ट है। पंजाब व हरियाणा चंडीगढ़ बार एसोसिएशन से हजारों अधिवक्ता जुड़े हैं। अलग हाईकोर्ट अगर स्थापित होता है तो निश्चित रूप से पैंङ्क्षडग पड़े केसों में राहत मिलेगी पर राजनेताओं को इन बातों से सरोकार नहीं है।

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