सेवानिवृत्त IAS रेनू मुश्किल में फंसीं,  हाईकोर्ट ने पेश होने का दिया आदेश... कानूनी दांव-पेंच में अटकी

Edited By Isha, Updated: 11 Dec, 2025 11:37 AM

retired ias officer renu is in trouble

याणा के महिला एवं बाल विकास विभाग की तत्कालीन निदेशक और 2003 बैच की रिटायर्ड आईएएस अधिकारी रेनू एस फुलिया एक बड़ी कानूनी मुश्किल में फंस गई हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी है।

चंडीगढ़ : हरियाणा के महिला एवं बाल विकास विभाग की तत्कालीन निदेशक और 2003 बैच की रिटायर्ड आईएएस अधिकारी रेनू एस फुलिया एक बड़ी कानूनी मुश्किल में फंस गई हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि रेनू एस फुलिया द्वारा जारी यह आदेश अवमानना अधिनियम 1971 की धाराओं 10 और 12 के तहत कार्रवाई के योग्य है, जिनमें छह महीने तक की सरल कैद या जुर्माने का प्रावधान है। अदालत ने कहा कि फुलिया का यह कदम प्राथमिक तौर पर कोर्ट में आश्वासन देकर उसका उल्लंघन दिखाता है, इसलिए उनके खिलाफ नोटिस जारी किया जा रहा है और उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश होकर जवाब देना होगा।

आरोप है कि उन्होंने कंप्यूटर योग्यता संबंधी अनिवार्य स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट इन कंप्यूटर एप्रीसिएशन एंड एप्लीकेशन (एसईटीसी) परीक्षा को लेकर सरकार की ओर से अदालत में दर्ज दी गई अंडरटेकिंग का पालन नहीं किया और बाद में अपने स्तर पर जारी आदेश से उसे उलट दिया। जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन ने सुनवाई के दौरान कहा कि उपलब्ध रिकॉर्ड से साफ प्रतीत होता है कि यह मामला अवमानना का बनता है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने फुलिया को अवमानना आरोपों का नोटिस जारी करते हुए 28 अप्रैल 2026 को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के आदेश दिए हैं।

फुलिया नवंबर 2024 में सेवा से सेवानिवृत्त हुई थीं। मामले का मूल विवाद हरियाणा सरकार के क्लर्कों के लिए अनिवार्य स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट इन कंप्यूटर एप्रीसिएशन एंड एप्लिकेशन से जुड़ा है। यह परीक्षा हारट्रोन द्वारा कराई जाती है और इसमें कंप्यूटर नालेज का ऑब्जेक्टिव टेस्ट तथा टाइपिंग टेस्ट शामिल है। मौजूदा कर्मचारियों के लिए यह परीक्षा इन्क्रीमेंट और प्रमोशन पाने की बाध्यता है।

याचिकाकर्ता समेत कई कर्मचारियों ने 17 नवंबर 2018 की उस अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसमें स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट इन कंप्यूटर एप्रीसिएशन एंड एप्लिकेशन को सभी कार्यरत क्लर्कों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। इसके बाद 21 फरवरी 2019 को संबंधित मामलों में बड़ी बेंच ने सरकार की ओर से किए गए एक लिखित अंडरटेकिंग को रिकार्ड किया था जिसके तहत अधिसूचना से पहले कार्यरत कर्मचारियों पर यह लागू न होने की बात की गई थी।

सरकार ने एक मई 2019 को विभागीय निर्देश जारी कर कर्मचारियों को इस लाभ की जानकारी भी दी थी। लेकिन याचिका के अनुसार, विभाग ने बाद में इस फैसले से यू-टर्न लेते हुए 18 सितंबर 2020 को एक नया आदेश जारी कर दिया, जिसके तहत पहले दिए गए लाभ को एकतरफा वापस ले लिया गया। कोर्ट ने पाया कि यह निर्णय सरकार द्वारा बड़ी बेंच के समक्ष दिए गए औपचारिक आश्वासन के बिल्कुल विपरीत है।

 

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