अभियुक्त के खुलासे पर अपराध में शामिल वस्तु की बरामदगी का यह मतलब नहीं कि अपराध अभियुक्त ने ही किया : HC

Edited By Isha, Updated: 09 Jun, 2024 02:13 PM

recovery of the object involved in the crime

पंजाब एवं  हरियाणा  हाई कोर्ट  ने हत्या के दो दोषियों को बरी करते हुए कहा कि अपराध सिद्ध करने वाली सामग्री की बरामदगी से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि अपराध अभियुक्त ने ही किया।

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): पंजाब एवं  हरियाणा  हाई कोर्ट  ने हत्या के दो दोषियों को बरी करते हुए कहा कि अपराध सिद्ध करने वाली सामग्री की बरामदगी से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि अपराध अभियुक्त ने ही किया।

जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस एनएस शेखावत की खंडपीठ ने कहा इसमें कोई संदेह नहीं कि अभियुक्त के खुलासे पर  बरामदगी महत्वपूर्ण है लेकिन केवल इस तरह के खुलासे से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि अपराध अभियुक्त ने ही किया। वास्तव में  बरामदगी और अपराध करने में उनके उपयोग के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर है।
 जस्टिस एनएस शेखावत ने कहा कोर्ट  ने पाया कि जिस चाकू से कथित तौर पर हत्या की गई, जो कथित तौर पर आरोपित  से बरामद किया गया, उस पर खून के धब्बे नहीं थे। बरामदगी  केवल पुलिस की मौजूदगी में तैयार किए गए और पुलिस द्वारा कोई स्वतंत्र गवाह शामिल नहीं किया गया।

हाई कोर्ट  सोनीपत में 2001 के हत्या मामले में दो दोषियों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिन्हें  आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार अज्ञात साधु मंदिर के कमरे में मृत पाया गया, जिसे बाहर से बंद कर दिया गया।  संदेह के अनुसार  हत्या दो लोगों, रणबीर सिंह और जोगिंदर सिंह द्वारा की गई।

दलील सुनने के बाद कोर्ट  ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। वर्तमान मामले में कोर्ट  ने उल्लेख किया कि  टूटा हुआ ताला और चाबी, जो कथित रूप से रणबीर सिंह (अपीलकर्ता ) से बरामद की गई, उसको भी एफएसएल को भेजा गया। एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार, चाबी से ताला ठीक से संचालित हो सकता था। कोर्ट  ने अभियुक्त के खिलाफ प्राथमिक साक्ष्य खारिज करते हुए कहा कि जिस कमरे में शव मिला था, उसे खोलने के लिए कथित रूप से तोड़ा गया ताला चालू हालत में था। कोर्ट  ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्य में विभिन्न विरोधाभास पाए।  यह भी नोट किया कि अपीलकर्ता से बरामद चाकू पर खून का निशान नहीं पाया जा सका।  

कोर्ट  ने कहा इसके अलावा वर्तमान अपीलकर्ताओं द्वारा अपराध करने का कारण यह है कि उन्हें मृतक राम संजीवन द्वारा  मंदिर  में रहने की अनुमति नहीं दी गई। वास्तव में यह अत्यधिक अविश्वसनीय है कि अपीलकर्ताओं ने इतने मामूली मुद्दे पर राम संजीवन की हत्या कर दी। वास्तव में, अभियोजन पक्ष ने यह मामला बनाने की कोशिश की कि दोनों अपीलकर्ता लंबे समय से राम संजीवन के प्रति शत्रुतापूर्ण थे और वे मृतक से नाराज थे।

कोर्ट ने कहा कि  अभियोजन पक्ष का यह कर्तव्य था कि वह अपने मामले को सभी उचित संदेह से परे साबित करे कि यह अभियुक्त  ही था, जिसने अपराध किया था। कोर्ट  ने यह भी कहा कि हम जानते हैं कि गंभीर और जघन्य अपराध किया गया, लेकिन जब अपराध का कोई संतोषजनक सबूत नहीं मिला  तो  हमारे पास आरोपी को संदेह का लाभ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हम वर्तमान मामले में ऐसा करने के लिए बाध्य हैं। परिणामस्वरूप कोर्ट दोनो को बरी करने का आदेश देता है।

 

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