Edited By Isha, Updated: 09 Aug, 2025 04:23 PM

भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) द्वारा हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने के मामले में पंजाब सरकार की याचिका पर शुक्रवार को दूसरे दिन भी सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ के सामने
चंडीगढ़: भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) द्वारा हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने के मामले में पंजाब सरकार की याचिका पर शुक्रवार को दूसरे दिन भी सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ के सामने जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई हरियाणा सरकार ने आपत्ति जताते हुए कहा कि वह ‘पीड़ित पक्ष’ है, फिर भी उसे इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया।
चीफ जस्टिस ने इस पर सवाल किया तो पंजाब सरकार ने हरियाणा को पक्षकार बनाने के लिए समय मांगा। इस पर कोर्ट ने पंजाब सरकार को 21 अगस्त का समय देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। इससे पहले वीरवार को हुई सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार ने आरोप लगाया था कि बीबीएमबी ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर हरियाणा को 8,500 क्यूसेक अतिरिक्त पानी देने का फैसला किया जबकि इसका न तो उसके पास कोई कानूनी अधिकार था और न ही पंजाब की सहमति।
यह जल बंटवारे के स्थापित मानदंडों और पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रविधानों का उल्लंघन है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पंजाब के एडवोकेट जनरल (एजी) ने 23 अप्रैल को हुई तकनीकी समिति की बैठक और 30 अप्रैल व 3 मई को हुई बोर्ड बैठकों के मिनट्स को रद करने की मांग की। साथ ही, सभी साझेदार राज्यों की भागीदारी से निष्पक्ष प्रक्रिया के जरिए एक स्वतंत्र चेयरमैन की नियुक्ति की मांग की। पंजाब का कहना है कि अतिरिक्त पानी देने के लिए सक्षम प्राधिकारी (पटियाला के कार्यकारी अभियंता) से कोई इंडेंट नहीं आया, जिससे संचालन नियमों का उल्लंघन हुआ।
साथ ही, बोर्ड की बैठक बीबीएमबी विनियमों के विपरीत बुलाई गईं। बैठक के लिए सात दिन की न्यूनतम नोटिस अवधि और 12 दिन पहले एजेंडा प्रसारित करने के प्रविधान का पालन नहीं हुआ।
यही नहीं, 2 मई को केंद्रीय गृह सचिव ने बीबीएमबी की एकतरफा रिपोर्ट पर आधारित होकर हरियाणा को पानी छोड़ने का आदेश दिया, जो उचित न्यायिक प्रक्रिया के बिना लिया गया निर्णय था।