दीपावली के त्योहार के लिए मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने वाले कुम्हार झेल रहे हैं आधुनिकता की मार

Edited By Isha, Updated: 23 Oct, 2019 05:05 PM

potter making pottery and lamps festival of deepawali modernity

आधुनिकता की दौड़ में इंसान इस कद्र खो गया है कि वह अपने पुराने रीति रिवाजों व पुरानी चीजों को भूलता जा रहा है। मिट्टी के बर्तन व दीपावली के लिए दीए बनाने वाले कुम्हार आजकल खूब मंदी की मार झेल रहे .......

कैंथल(जोगिंद्र कुड़ु) : आधुनिकता की दौड़ में इंसान इस कद्र खो गया है कि वह अपने पुराने रीति रिवाजों व पुरानी चीजों को भूलता जा रहा है। मिट्टी के बर्तन व दीपावली के लिए दीए बनाने वाले कुम्हार आजकल खूब मंदी की मार झेल रहे हैं। कारण यह है कि आधुनिकता की चकाचोंद में इंसान इन मिट्टी के बर्तनों और दियों को भूलकर बाजार से चाइनीस लड़ी, बिजली के दिए व अन्य सामान खरीद रहा है। पहले लोग दीपावली के दिन घरों  में मिट्टी के दीए जलाते थे और दिवाली मनाते थे परंतु अब इंसान आधुनिकता की चकाचौंध में खो गया है और वह इन सब पुरानी चीजों को भूलता जा रहा है।

जिसको लेकर गरीब कुम्हार खूब मंदी की मार झेल रहे हैं और दो वक्त की रोटी के लिए मिट्टी के साथ मिट्टी हो रहे हैं। मिट्टी के बर्तन व  दिए बनाने वाले कुम्हार परिवार ने बताया  है कि यह  उनका पुश्तैनी धंधा है इसी के सहारे वे अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं परंतु आजकल लोग हमारे बनाए हुए मिट्टी के दिए व बर्तनों को नही खरीदते है और बहुत कम ग्राहक हमारे पास आते हैं जिसके चलते हमें दो वक्त की रोटी के लिए भी शाम तक खूब पसीना बहाना पड़ता है।

इस पुश्तैनी काम में हमारा पूरा परिवार लगा रहता है फिर भी हमे हमारी मेहनत का कोई उचित मूल्य नही मिल पाता है। सरकार एक तरफ तो नारा देती है कि स्वदेशी अपनाओं, विदेशी भगाओ और दूसरी तरफ सरकार इन गरीब परिवारों की और नही देखती जो बेचारे 2 वक्त की रोटी के लिए पूरा दिन परिवार के साथ पसीना बहाते है और  मिलता कुछ नही है।  

 

 

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