Edited By Isha, Updated: 08 May, 2024 03:19 PM
हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों में से 3 के सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद एक बार फिर से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विपक्ष के अलावा कुछ समय पहले तक सरकार की सहयोगी जेजेपी भी मुख्यमंत्री से इस्तीफे
चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी): हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों में से 3 के सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद एक बार फिर से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विपक्ष के अलावा कुछ समय पहले तक सरकार की सहयोगी जेजेपी भी मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग कर रही है। 90 विधायकों वाली हरियाणा विधानसभा में वर्तमान में 88 विधायक हैं, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं।
ऐसे में 88 विधायकों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 43 विधायकों का समर्थन रह गया है, जबकि बहुमत के लिए 45 चाहिए, लेकिन क्या 6 महीने के भीतर फिर से सरकार के खिलाफ विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है, या फिर अल्पमत में आने के बाद भी प्रदेश सरकार को कोई खतरा नहीं है। इन सब विषयों के बारे में हमने संविधान विशेषज्ञ और सेवानिवृत स्पेशल सचिव हरियाणा विधानसभा राम नारायण यादव से खास बातचीत की।
अगर मुद्दा दूसरा होगा तो लाया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव
राम नारायण यादव की माने तो अविश्वास प्रस्ताव केवल विधानसभा सत्र के दौरान ही लाया जा सकता है। सत्र के दौरान कई मुद्दों पर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है, लेकिन इसके लिए मुद्दे अलग-अलग होने चाहिए। यदि मुद्दे अलग-अलग हैं तो एक ही सत्र में 2 बार भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि 6 महीने बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। अगर मुद्दा अलग है तो 2 दिन बाद फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इस पर भी फैसला केवल राज्यपाल ही ले सकते हैं। यदि सरकार 6 महीने के दौरान पहले ही विश्वास मत हासिल कर चुकी है तो क्या अगले 6 महीने में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इस सवाल का जवाब देते हुए रामनारायण यादव ने कहा कि 6 महीने की कोई शर्त नहीं होती। शर्त सिर्फ इतनी है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है लेकिन मुद्दा दूसरा होना चाहिए। साथ ही विधानसभा का सत्र बुलाया जाए।
राज्यपाल पर करता है निर्भर
अविश्वास प्रस्ताव के अलावा सरकार के पास विश्वास प्रस्ताव लाने का भी विकल्प है। विश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है जब मुख्यमंत्री चाहते हैं कि वे अपनी सरकार के प्रति विश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं। रामनारायण यादव बताते हैं कि इसके अलावा एक और स्थिति बनती है, जबकि विपक्ष और सरकार दोनों अपने-अपने पास पर्याप्त बहुमत होने के दावा करते हैं। ऐसी स्थिति में विपक्ष को चाहिए की वह राज्यपाल के पास जाएं और उन्हें संतुष्ट करें कि उनके पास पर्याप्त संख्या बल है।
अगर राज्यपाल विपक्ष की दलील से संतुष्ट हो जाते हैं तो वे फिर आगे निर्देश देंगे। यदि वे संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे फिर उसको वहीं रोक देंगे। यदि राज्यपाल को विपक्ष की बात सही लगती है तो वह मुख्यमंत्री से सदन में विश्वास मत हासिल करने को कह सकते हैं, लेकिन इन सब में राज्यपाल पर ही निर्भर करता है कि वे सरकार को विश्वास मत हासिल करने के लिए कितने दिन का समय देते हैं।