हरियाणा में बोझ बन गई 5.51 मिलियन टन धान की मिलिंग,

Edited By Isha, Updated: 27 Sep, 2024 05:46 PM

milling of 5 51 million tonnes of paddy has become a burden in haryana

अनुसंधान वैज्ञानिकों, राज्यों के कृषि विभागों, किसानों और मजदूरों के अथक परिश्रम का परिणाम है कि भारत खाद्यान्न सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भरता से निर्यातक की श्रेणी में आया। इन वर्गों की जीतोड़ मेहनत के बाद मंडियों

करनाल: अनुसंधान वैज्ञानिकों, राज्यों के कृषि विभागों, किसानों और मजदूरों के अथक परिश्रम का परिणाम है कि भारत खाद्यान्न सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भरता से निर्यातक की श्रेणी में आया। इन वर्गों की जीतोड़ मेहनत के बाद मंडियों में अनाज की जो मिट्टी पलीत हो रही है, उसे देख मन व्यथित हो जाता है।  कहीं गोदामों में कर्मचारी अनाज भंडारण पर पानी छिड़ककर उसे बर्बाद कर देते हैं तो कभी अनाज मंडियों से धान उठाने के समय राइस मिलर्स अपनी शर्तें अड़ाने लगते हैं।  सीजन शुरू होने से पहले कोई मांग नहीं उठती। कुछ राइस मिलों द्वारा सरकार का करोड़ों का धान डकारने, मिलों में धान को बदल देने और बैंकों के करोड़ों की अदायगी नहीं करने के मामले उजागर होते रहते हैं। 

हरियाणा में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग (जिला स्तर पर डी.एफ. एस.सी.) की निगरानी में धान की मिलिंग का काम होता है। खाद्यान्न के नाम पर राज्य के खजाने से तनख्वाह और सरकारी संसाधन लेने वाले इस विभाग के बही-खाते का तो कोई हिसाब लेने वाला ही नहीं। डी.एफ.एस.सी. अनिल कालड़ा किसी भी सवाल का जवाब देने में मौन मुद्रा में हैं।

 हर वर्ष धान की आवक के समय मंडियों में जो स्थितियां बनती हैं उनका एक न एक दिन तो कोई समाधान निकालना ही पड़ेगा। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इन समस्याओं का समाधान किसान स्वयं कर सकते हैं। किसान यदि मिलिंग का कार्य भी अपने हाथ में ले लेंगे तो बिचौलियों की प्रक्रिया एक झटके में इस चेन से हट जाएगी। 

केंद्र सरकार और नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) की मदद से किसान समूह स्वयं राइस मिल इंडस्ट्री खड़े करें। धान की बजाय सरकार की एजैंसियों को सीधे चावल की सप्लाई करें। 
यही नहीं चावल निर्यात भी कर सकते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। इससे किसान उद्यमी बनेंगे और उनकी आमदनी कई गुना बढ़ेगी। चावल निर्यात कई गुना बढ़ने की संभावनाएं बनेंगी।

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