वाह रे खुदगर्ज इंसान... मेरे पुरखों ने तेरा अस्तित्व बनाया और तूने मुझे लावारिस कर दिया, देसी गाय की ताकत को पहचानें

Edited By Manisha rana, Updated: 19 Dec, 2024 08:18 AM

recognize the power of desi cow

भारतीय देसी गाय जिसने हमारे पूर्वजों की थाली में पोषण दिया और उसके बछड़े जवान होकर किसानों के कमाऊ पूत बनते थे। वह मशीनीकरण युग में दर-दर की ठोकरें खा रही है। देसी गाय ने हमारे पुरखों को वह सबकुछ दिया जो तत्कालीन समय में अपेक्षित था।

करनाल : भारतीय देसी गाय जिसने हमारे पूर्वजों की थाली में पोषण दिया और उसके बछड़े जवान होकर किसानों के कमाऊ पूत बनते थे। वह मशीनीकरण युग में दर-दर की ठोकरें खा रही है। देसी गाय ने हमारे पुरखों को वह सबकुछ दिया जो तत्कालीन समय में अपेक्षित था। जो गायें आज शहरों और सड़कों पर दुत्कारियां झेल रही हैं इनके पूर्वजों (देसी बैलों) ने हम इन्सानों के खेतों को अपने पसीने से सींचा था। विडंबना है कि आज वही गायें अपने संरक्षण की दुहाई देती प्रतीत हो रही हैं। सरकार ने गौहत्या निषेध कानून बनाकर इनकी कत्लखानों में क्रूरतम हत्याओं पर तो पाबंदी लगाई लेकिन इनकी लावारिस स्थिति को देखकर लगता है कि इनके प्रति क्रूरता जारी है। जिन खेतों में गौवंश ने पसीना बहाया था, उनमें आज किसान गौवंश को घुसने नहीं देता। लठ लेकर पीछे दौड़ता है और सड़कों व शहरों की ओर खदेड़ देता है। 

देसी गाय की ताकत को पहचानें
अनुसंधान वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय देसी गाय प्राकृतिक खेती का मूल आधार है। देसी गाय के 1 ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ तक सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो जमीन को ताकतवर बनाने के लिए उपयोगी होते हैं जबकि विदेशी नस्ल की गाय के 1 ग्राम गोबर में 78 लाख सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। देसी गाय के गौमय व मूत्र की महक से केंचुए भूमि की सतह पर आते हैं। इनके गौमय व मूत्र में वह सब मुख्य पोषक तत्व पूरे करने की ताकत है जिन्हें पौधा भूमि से लेकर अपना निर्माण करता है। हरित क्रांति की शुरूआत तक भी देसी गायों के गोबर से बनी देसी खाद का इस्तेमाल खेतों की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता था। गोबर की खाद से मिट्टी भुरभुरी बनती है और जमीन में वायु संचार बढ़ाती है। जल संचयन की प्रक्रिया तेज होती है। पौधे को प्राकृतिक तौर पर वह सभी पोषक तत्व मिलते हैं जो उसे अपने विकास के लिए चाहिए। 

गाय के बिना संभव नहीं स्वास्थ्य की गारंटी देने वाली खेती 
आज के युग में इन्सान के पास भले ही जितनी धन-दौलत हो लेकिन उसे अच्छा जहर मुक्त भोजन व खाने-पीने के कृषि उत्पाद मिलना मुश्किल है। हर कोई चाहता है कि उसका स्वास्थ्य बेहतर हो, बीमारियों पर खर्च कम हो और प्राणों की रक्षा हो। इसके लिए एक ही विकल्प बचा है और वह है प्राकृतिक खेती। प्राकृतिक खेती भारत में कोई नई बात तो नहीं लेकिन 1960 के बाद जैसे ही हरित क्रांति आई खेती की यह पद्धति त्याग दी गई। विश्व में 2 तरह की कृषि पद्धतियां हैं एक रासायनिक खेती और दूसरी जैविक। भारत में प्राकृतिक खेती न केवल मृदा व मानव के स्वास्थ्य की गारंटी से आश्वस्त करती है बल्कि इस पर लागत खर्च भी कम होता है। हमारे देश में सदियों तक किसान प्राकृतिक खेती पर निर्भर रहे हैं। हरित क्रांति की ओट में जो हमारी पारंपरिक प्राकृतिक खेती विलुप्त हुई है वह ही भविष्य की खेती होगी।

किसानों को प्रेरित कर रहे वैज्ञानिक 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर.) के भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आई. आई. डब्ल्यू.-बी.आर.) करनाल में निदेशक डॉ. रतन तिवारी के निर्देशन में अक्तूबर 2024 में प्राकृतिक खेती पर कृषक-वैज्ञानिक कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें अनुसंधान वैज्ञानिकों ने किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वैज्ञानिकों ने विभिन्न राज्यों से आए किसानों को बताया था कि देसी गाय का गोबर व मूत्र प्राकृतिक खेती का आधार है। आई.सी.ए.आर. के पूर्व सहायक महानिदेशक डॉ. रणधीर सिंह ने कहा कि सरकार और समाज दोनों को भी इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसी पॉलिसी चाहिए कि लावारिस गायों को संरक्षण मिले। यदि हमारे पास एक अतिरिक्त पशु हैं तो उनका पालन कर सकते हैं, इस तरह समाज की समस्या का समाधान हो सकता है। यदि प्राकृतिक व जैविक खेती करनी है तो निश्चित रूप से देसी गाय की आवश्यकता है।

(पंजाब केसरी हरियाणा की खबरें अब क्लिक में Whatsapp एवं Telegram पर जुड़ने के लिए लाल रंग पर क्लिक करें) 

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Lucknow Super Giants

    Royal Challengers Bengaluru

    Teams will be announced at the toss

    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!