Edited By Saurabh Pal, Updated: 27 Aug, 2024 04:58 PM
भाजपा नेत्री किरण चौधरी आखिरकार 20 साल बाद संसद पहुंच गईं। दीपेंद्र हुड्डा के इस्तीफे के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर भाजपा ने किरण चौधऱी को उम्मीदवार बनाया था। संख्याबल न होने के कारण कांग्रेस द्वारा उम्मीदवार नहीं उतारा गया था।
चंडीगढ़ः भाजपा नेत्री किरण चौधरी संसद पहुंच गईं हैं। दीपेंद्र हुड्डा के इस्तीफे के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर भाजपा ने किरण चौधऱी को उम्मीदवार बनाया था। संख्याबल न होने के कारण कांग्रेस द्वारा उम्मीदवार नहीं उतारा गया था। जिसके कारण किरण चौधरी निर्विरोध राज्यसभा सांसद चुन ली गई हैं। चंडीगढ़ में रिटर्निंग ऑफिसर साकेत कुमार ने उन्हें राज्यसभा का निर्वाचन सर्टिफिकेट देकर इसकी आधिकारिक पुष्टि कर दी।
गौरतलब है कि भाजपा में शामिल होने के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि किरण चौधरी को भाजपा राज्यसभा में अडजस्ट कर सकती है। कयास सच साबित हुए। 20 अगस्त को कुलदीप बिश्नोई को दरकिनार कर भाजपा ने हरियाणा से किरण चौधरी को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया। इसके बाद 21 अगस्त को उन्होंने CM नायब सैनी की उपस्थिति में अपना नामांकन दाखिल किया।
कांग्रेस छोड़ BJP में आने के 2 महीने बाद टिकट
किरण को मंगलवार को BJP ने उम्मीदवार घोषित किया। इससे पहले किरण ने भिवानी के तोशाम से कांग्रेस विधायक के पद से इस्तीफा दिया। जिसे हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने स्वीकार कर लिया। किरण चौधरी ने बेटी श्रुति चौधरी की भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से टिकट कटने के बाद कांग्रेस छोड़ दी थी। BJP में शामिल होने के 2 महीने बाद उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है।
दलबदल कानून का किरण पर खतरा बरकरार
हालांकि संविधान विशेषज्ञों के अनुसार किरण चौधरी की राज्यसभा की सदस्यता पर संकट बरकरार है। राम नरायण यादव कहते हैं कि किरण चौधरी ने इस्तीफे से पहले भाजपा ज्वाइन कर ली थी। इसलिए यदि मामला कोर्ट तक गया तो किरण चौधरी की सदस्यता संकट में आ सकती है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का अधिकार है कि जिस दिन उन्होंने दल बदला उसी दिन से एंटी डिफेक्शन लॉ लागू हो जाता है। संविधान के अनुसार दल बदलने के बाद डिस्क्वालीफिकेशन बनता है।
उदाहरण देते हुए बताया कि 2005 में विधायक कृष्णलाल पंवार के खिलाफ एंटी डिफेक्शन का मामला चल रहा था, लेकिन उन्होंने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद स्पीकर ने केस डिसमिस कर दिया था। वहीं दूसरा उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि 2019 का है जिसमें नैना चौटाला और अनूप धानक ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद भी स्पीकर ने दोनों लोगों को डिस्क्वालीफाई कर दिया था। हालांकि उन्होंने बताया कि कानून स्पीकर के पास है। वह दोनों में कोई प्रक्रिया अपना सकते हैं, लेकिन कानून से बड़ा संविधान है। यदि मामला कोर्ट तक खिंचा तो किरण चौधरी फंस सकती है।