कांग्रेस के लिए पुरानी 'बादशाहत' पाना और भाजपा के लिए खाता खोलना बड़ी चुनौती

Edited By Deepak Paul, Updated: 13 Jan, 2019 05:18 PM

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सियासी दलों की प्रतिष्ठा का सवाल बने जींद उपचुनाव में भाजपा के लिए खाता खोल पाना और कांग्रेस पार्टी के लिए ''बादशाहत'' पाना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। इसके साथ ये उपचुनाव इनेलो के लिए सीट पर अपनी मौजूदा पकड़ कायम रखने और इनेलो के कोख से पनपी...

जींद(ब्यूरो): सियासी दलों की प्रतिष्ठा का सवाल बने जींद उपचुनाव में भाजपा के लिए खाता खोल पाना और कांग्रेस पार्टी के लिए 'बादशाहत' पाना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। इसके साथ ये उपचुनाव इनेलो के लिए सीट पर अपनी मौजूदा पकड़ कायम रखने और इनेलो के कोख से पनपी जननायक जनता पार्टी (जजपा) के लिए अपना दम दिखाने की परीक्षा है।

बांगर की धरती जींद पर यदि सियासी इतिहास पर नजर डाले तो हरियाणा बनने के बाद से अब तक इस सीट पर 12 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और इन चुनावों में सीट पर अधिकतर बादशाहत कांग्रेस की ही रही है। जबकि चौधरी देवीलाल परिवार ने भी सीट पर अपनी पकड़ मजबूत रखी है। इस सीट पर जींद लोगों का मिजाज कुछ ऐसा है कि मतदाताओं ने यहां बंसी लाल की पार्टी हविपा, एनसीओ व आजाद प्रत्याशी को भी विधायकी का मौका दिया है। लेकिन सीट पर भाजपा ने आज तक अपना खाता नहीं खोला है।
 

सन 1966 में हरियाणा के गठन के बाद वर्ष 1967 में जींद में हुए विधानसभा चुनाव में पांच प्रत्याशियों में से कांग्रेस के दयाशंकर ने जीत दर्ज की। वर्ष 1968 में फिर से हुए चुनाव में कांग्रेस के दयाशंकर फिर से जींद के विधायक बने। इस बरस तीन प्रत्याशी मैदान में थे। वर्ष 1972 के चुनाव में नेशनल कांग्रेस आर्गेनाइजेशन के दल सिंह जीते। लेकिन वर्ष 1977 में जींद की जनता ने आजाद प्रत्याशी के रूप में मांगेराम को चुनाव जीताया। वर्ष 1982 में जनता पार्टी से अलग हुई चौधरी देवीलाल की लोकदल के प्रत्याशी बृजमोहन जींद के विधायक बने और भजनलाल सरकार में आबकारी एवं कराधान मंत्री भी बने।
 

वर्ष 1987 में लोकदल के परमानंद ने जींद से जीत दर्ज की और उन्हे वनमंत्री भी बनाया गया। अब करीब 23 साल से जीत को तरस रही कांग्रेस ने वर्ष 1991 मेंआजाद प्रत्याशी के रूप में जीत चुके मांगेराम गुप्ता को कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा और मांगेराम गुप्प्ता विजयी रही। मगर 1996 में पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की प्रदेश में अच्छी लहर थी और वे कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) बना चुके थे। इसी लहर में इस बार जींद से हविपा के बृजमोहन सिंगला विजयी रहे।

लेकिन सन 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मांगेराम गुप्प्ता ने फिर से बाजी मारी और वे तीसरी बार जींद के विधायक बने। 2005 में भी जींद के मतदाताओं ने कांग्रेसी प्रत्याश्या मांगेराम गुप्ता को ही विधायक बनाया। मगर 2009 के चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई और डा. हरिचंद मिड्डा को विधायक बनवाया। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में हरिचंद मिड्डा अपने बढ़िया रसूख के चलते फिर से जींद के विधायक बने।

अब वर्ष 2018 में उनके निधन के बाद 28 जनवरी 2019 को जींद में उपचुनाव होना है। इनेलो चाहती है कि जीत के इस सिलसिले को जारी रखे। लेकिन अपना खाता खोलने को बेताब सत्तासीन भाजपा ने ऐन वक्त पर दिवंगत विधायक हरिचंद मिड्डा के बेटे कृष्ण मिड्डा को भाजपा के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार दिया है। भाजपा के इसी दांव को देखते हुए कांग्रेस ने भी मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी केमीडिया प्रभारी एवं कैथल के विधायक रणदीप सुरजेवाला को जींद केरण में उतारा है। बहरहाल, अब देखना यह है कि कौन सा दल इस सीट पर मतदाताओं को प्रभावित कर पाता है।

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