OP Chautala Death: अलविदा ओमप्रकाश चौटाला, जींद को बनाया राजनीतिक कर्मभूमि

Edited By Manisha rana, Updated: 21 Dec, 2024 09:57 AM

goodbye om prakash chautala

प्रदेश की राजनीति में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला का अपना नाम है। एक बार सबसे कम समय मुख्यमंत्री रहने वाले ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश की राजनीति में कार्यकर्त्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं। जींद उनकी राजनीतिक कर्म भूमि रहा है।

जींद : प्रदेश की राजनीति में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला का अपना नाम है। एक बार सबसे कम समय मुख्यमंत्री रहने वाले ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश की राजनीति में कार्यकर्त्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं। जींद उनकी राजनीतिक कर्म भूमि रहा है। हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ने के अलावा वह जींद जिले की नरवाना विधानसभा सीट से विधायक बनकर मुख्यमंत्री भी बने और उन्होंने जींद जिले की उचाना विधानसभा सीट से भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया। ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा की राजनीति में हलचल पैदा करने वाला नेता भी माना जाता है। 

वह अक्सर अपने बोल्ड फैसलों के लिए जाने जाते हैं। हरियाणा के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्हें जेल भी जाना पड़ा। उनके जेल जाने वाले मामले में खास बात यह भी है कि इसमें शिकायतकर्त्ता को भी उतनी ही सजा हुई, जितनी पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को हुई। चौटाला जब नरवाना विधानसभा से विधायक बनकर मुख्यमंत्री बने तो वह अपने खुले दरबार लगाते रहते थे। नरवाना से उनका गहरा लगाव देखने को मिलता था। उन्होंने नरवाना में बिना किसी दलगत राजनीति या बिना किसी जातिगत राजनीति की काम करने का प्रयास किया। मुझे याद आता है एक किस्सा। वह मुख्यमंत्री के रूप में नरवाना में अपना खुला दरबार लगाए हुए थे। एक व्यक्ति उनके पास पहुंचा और अपने तबादले की दर्ख्वास्त लगाते हुए कहा कि वह नरवाना का रहने वाला है और उसकी पोस्टिंग दूर है।

इस पर ओमप्रकाश चौटाला ने आश्वासन दिया कि उनका तबादला नजदीक कर दिया जाएगा। इसी बीच जियालाल ने कहा कि यह सुरजेवाला का भगत है। ओम प्रकाश चौटाला ने जियालाल को टोकते हुए कहा कि ‘रे जिया लाल कोई फोतरी’ (वोट) जुड़ने भी देगा या नहीं। सुरजेवाला का भगत था, अब अपना हो जाएगा। ओमप्रकाश चौटाला अपनी इच्छा शक्ति के दम पर आगे बढ़ रहे थे। वह राजनीति में दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन भी थे। वह दोस्ती निभाते हुए कभी यह नहीं देखते थे कि इसमें उन्हें नुकसान या फायदा होगा। जब आदमी की उम्र 80 प्लस हो जाती है तो वह अपने परिवार के बारे में अधिक चिंतित रहता है। ओम प्रकाश चौटाला ने इनैलो को जिंदा रखने के लिए अपने परिवार को एकजुट रखने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वह अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाए। ओमप्रकाश चौटाला को हार का सामना भी करना पड़ा और उन्हें जीत का स्वाद भी चखने को मिला। लेकिन चुनाव में हार और जीत से कभी उन पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक की जेल में जाने पर भी जहां अक्सर दूसरे नेता टूट जाते हैं वह जेल में जाने के बावजूद कभी मायूस नहीं हुए और उन्हें मंच पर कभी दुखी नहीं देखा गया। 

ओम प्रकाश चौटाला की विल पॉवर को सलाम

करीब 88 साल की उम्र में भी उनका जज्बा गजब था। लंबे समय से बीमार थे और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, लेकिन इसके बावजूद वे अपने वर्करों के दुख-सुख में शामिल होते थे। कुशल वक्ता और कुशल संगठक। उन्हें अपने वर्कर के नाम तक याद थे। थोड़े समय के लिए हरियाणा के सीएम रहे। इस दौरान चर्चित महम कांड हो गया, जिसके चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। फिर शिक्षक भर्ती घोटाले में उन्हें 10 साल की सजा भी हुई।

जब कार्यकर्ता नाराज होकर बोला, पढ़ै ना ठूंग मारदे....ओम प्रकाश चौटाला के कार्यकर्ता उनसे कितना लगाव करते थे और वह कार्यकर्ताओं को कितना मानते थे इसका एक उदाहरण यह भी है कि जब वह मुख्यमंत्री थे। पार्टी कार्यालय में बैठे हुए थे तो एक बुजुर्ग कार्यकर्ता एक दरखास्त लेकर पहुंचा। और उस पर हस्ताक्षर करने को कहा। चौटाला साहब चश्मा लगाकर पढ़ने लगे। बुजुर्ग कार्यकर्त्ता नाराज हो गया और कहने लगा ‘पढ़ क्या रहा है, ठूंग तो मारनी है मार दे,। हरियाणवी में ठूंग मारने का मतलब हस्ताक्षर करना होता है। चौटाला साहब ने बिना पढ़े हस्ताक्षर कर दिए।

जिले की राजनीति का जींद रहा है बड़ा गढ़

जिले की राजनीति का एक बड़ा वटवृक्ष आज ढह गया। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की राजनीति का जींद बड़ा गढ़ रहा है। आलम यह है कि यहां से ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी सभी सीटों पर चुनाव जीतकर विधानसभा में दस्तक देती रही है। खुद ओमप्रकाश चौटाला की बात करें तो जींद जिले में पहली बार उन्होंने वर्ष 1993 में नरवाना विधानसभा उपचुनाव में ताल ठोकी की और जीत दर्ज की थी। वर्ष 1996 के आम चुनाव में वह चुनाव हार गए, लेकिन 2000 के चुनाव में उन्होंने दोबारा से यहां से जीत दर्ज की और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, लेकिन वर्ष 2005 में उन्हें फिर यहां से हार का सामना करना पड़ा। इसी दौरान परिसीमन हो गया था और नरवाना सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई थी। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2009 में उचाना से ताल ठोकी और जीत दर्ज की। इसके बाद उन्हें जेबीटी टीचर भर्ती मामले में 10 साल की कैद की सजा सुना दी गई और उचाना से दुष्यंत चौटाला मैदान में आए। जींद जिला इनैलो की राजनीति की धूरी के रूप में रहा है। इस जाट लैंड पर उनका एकछत्र साम्राज्य रहा है। जिले की सभी 5 विधानसभा सीटों पर उन्होंने एक से अधिक बार जीत दर्ज की है। ओम प्रकाश चौटाला का जींद से खासा लगाव रहा है।

...तो खुद के चुनाव निशान पर उतारा था उम्मीदवार

भाजपा के साथ गठबंधन में जब जींद की सीट भाजपा को चली गई तो इनैलो ने जींद से अपने चुनाव निशान पर उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया। बाद में राजनीतिक दबाव में उन्होंने अपने उम्मीदवार को पार्टी से निष्कासित भी किया। लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई। अपनी पार्टी में परिवार के विघटन को रोकने का ओमप्रकाश चौटाला ने काफी प्रयास किया, लेकिन जब प्रयास सिरे नहीं चढ़ा तो उन्होंने खुद को परिवार के उस हिस्से से अलग कर लिया, जिसने पार्टी को तोड़ने का काम किया। ओम प्रकाश चौटाला सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही मौके पर जींद में अक्सर आते रहे हैं। 
कितने ही कार्यकर्ताओं को वह नाम से जानते थे और नाम से पुकारते भी थे। जब वह किसी कार्यकर्ता को नाम से पुकारते थे तो वह कार्यकर्ता उनका कायल हो जाता था। आज चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के निधन से जींद जिले का एक बड़ा राजनीतिक वटवृक्ष ढह गया है। उनके निधन से जींद जिले में खाली हुए स्थान को भर पाना इतना आसान नहीं है। वर्ष 2000 में जब उनकी सत्ता आई तो उसके बाद किसान आंदोलन भी हुआ और उसका गढ़ भी जींद ही बना, लेकिन इस आंदोलन के बावजूद वह अपने वोट बैंक को अपने पास बचाए रखने में काफी हद तक सफल रहे।

(पंजाब केसरी हरियाणा की खबरें अब क्लिक में Whatsapp एवं Telegram पर जुड़ने के लिए लाल रंग पर क्लिक करें)  

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!