किसानों का दिल्ली कूच का सिलसिला रहा जारी, बुराड़ी में कई दिनों तक डाल सकते हैं डेरा

Edited By Isha, Updated: 29 Nov, 2020 09:43 AM

farmers continue to run in delhi can stay in burari for several days

हरियाणा के सिरसा, फतेहाबाद, जींद, अम्बाला, कुरुक्षेत्र, करनाल सहित अनेक हिस्सों से हजारों किसान दिल्ली की ओर कूच कर गए हैं। इसके साथ ही किसानों की ओर से किए जा रहे उग्र एवं तेज आंदोलन के बाद अब केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली के बुराड़ी में किसानों को...

चंडीगढ़(संजय अरोड़ा): हरियाणा के सिरसा, फतेहाबाद, जींद, अम्बाला, कुरुक्षेत्र, करनाल सहित अनेक हिस्सों से हजारों किसान दिल्ली की ओर कूच कर गए हैं। इसके साथ ही किसानों की ओर से किए जा रहे उग्र एवं तेज आंदोलन के बाद अब केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली के बुराड़ी में किसानों को इक_ा होने की इजाजत दे दी गई है। शुक्रवार को हरियाणा के विभिन्न हाइवे मार्गों पर पुलिस व प्रशासन की ओर से कहीं पर बैरीकेड्स लगाकर, कहीं पर पाइपों व मिट्टी के जरिए मार्ग अवरुद्ध किए गए, लेकिन किसान तमाम तरह के गतिरोध को हटाते हुए आगे बढ़ गए। शुक्रवार देर रात तक व शनिवार सुबह तक हजारों की संख्या में हरियाणा से दिल्ली में किसानों के पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि किसान आने वाले कुछ दिनों के लिए दिल्ली के बुराड़ी में ही पड़ाव डाल सकते हैं। ऐसे में आने वाले कुछ समय में केंद्र सरकार और किसानों में टकराव की स्थिति से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। उधर किसानों के इस आंदोलन को लेकर विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है और पूरा विपक्ष सरकार को घेरने में जुट गया है। राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा इनैलो भी सरकार पर खुलकर हमला बोल रही है।

शुक्रवार को हजारों किसानों के अलग-अलग जत्थे विभिन्न इलाकों से रवाना हुए। सुबह 11 बजे नैशनल हाइवे 64 पर डबवाली के पास पंजाब बॉर्डर से हजारों किसान सिरसा से होते हुए दिल्ली की तरफ निकल गए। रास्ते में किसानों ने नैशनल हाइवे-9 पर प्रशासन की ओर से पाइपों व मिट्टी के जरिए बनाए गए गतिरोधों को तोड़ दिया। इसी तरह से जुलाना में राष्ट्रीय राजमार्ग को जींद प्रशासन की ओर से उखाड़ा गया तो किसानों का जत्था नरवाना उचाना मार्ग की ओर से दिल्ली की तरफ कूच करने लगा। पंजाब के किसानों का एक बड़ा जत्था जींद से खन्नौरी दाता ङ्क्षसह वाला बॉर्डर से हरियाणा में प्रवेश किया। किसानों के इस तेज आंदोलन को देखते हुए दोपहर बाद अम्बाला के पास भी बॉर्डर को खोल दिया गया और किसानों को जाने दिया गया। उधर, किसानों के इस आंदोलन को लेकर कांग्रेस विधायक दल के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा, कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप ङ्क्षसह सुर्जेवाला के अलावा इनैलो के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अभय ङ्क्षसह चौटाला के तेवर भी आक्रामक हो गए हैं और शुक्रवार को इन सभी नेताओं ने भाजपा-जजपा सरकार पर जमकर हमले बोले।

पंजाब में 19 लाख तो हरियाणा में हैं 17 लाख किसान
पंजाब व हरियाणा दोनों ही कृषि प्रधान प्रदेश हैं। हरियाणा में करीब 17 लाख, जबकि पंजाब में 19 लाख किसान हैं। इसी तरह से पंजाब में करीब 15 लाख खेतिहर मजदूर हैं, जबकि हरियाणा में 13 लाख कृषि मजदूर हैं। फिलहाल हरियाणा राज्य कृषि विपणन मंडल की ओर से आढ़तियों के माध्यम से फसल खरीद की जाती है।  हरियाणा बनने से पहले दि पंजाब कृषि उपज मंडी नियम लागू था और 1966 में हरियाणा के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद एक्ट पहले वाला रहा और इसे नाम दिया गया हरियाणा कृषि उपज विपणन अधिनियम-1961। इसके लिए फसलों पर मार्कीट फीस, हरियाणा ग्रामीण विकास निधि के अंतर्गत फसल पर टैक्स वसूला जाता है। आढ़तियों को फसल खरीद पर दामी मिलती है। पंजाब में भी इसी तरह की प्रणाली है और यहां पर इस व्यवस्था के अंतर्गत अभी तक किसानों को अपनी फसल बेचने को लेकर परेशानी नहीं आई है। देश में पंजाब और हरियाणा के किसानों को धान, गेहूं, सरसों, नरमे की फसल का न्यूनतम समर्थन मिलता आ रहा है। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में महज 6 प्रतिशत किसानों को फसल का एम.एस.पी. मिलता है, जबकि हरियाणा और पंजाब में 80 फीसदी से अधिक किसानों को। हरियाणा में करीब 113 अनाजमंडियां, 168 सबयार्ड एवं 196 खरीद केंद्र हैं। इसके अलावा हरियाणा में 16 लाख 17 हजार किसान, 25 हजार आढ़ती, 13 लाख कृषि मजदूर व अढ़ाई लाख मंडी मजदूर हैं। इसी प्रकार से पंजाब में 1813 खरीद केंद्र हैं, जबकि 19 लाख किसान एवं 15 लाख खेतिहर मजदूर हैं।

मंडी सिस्टम पर निर्भर हैं हरियाणा-पंजाब के किसान
देश के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो शेष राज्यों में पहले से ही किसान बाजार पर निर्भर हैं। बिहार, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के किसान मंडी सिस्टम की बजाय सीधे बाजार पर डिपैंड हैं और अभी तक वहां के किसानों को फसल का उचित या यूं कहें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलता है। यही कारण है कृषि उपज के ओपन होने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी खत्म होने से ही पंजाब व हरियाणा के किसान डरे हुए हैं। इन दोनों ही राज्यों में किसानों को गेहूं, सरसों, कॉटन व धान की फसल का न्यूनतम समर्थन मिलता है। देश में पंजाब व हरियाणा ही दो ऐसे राज्य हैं, जहां पर 80 फीसदी से अधिक फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकती है। पूरे देश में 6 फीसदी किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार बीते कुछ वर्षों में पंजाब और हरियाणा में हुए कुल धान उत्पादन का 80 फीसदी सरकार ने खरीदा, जबकि गेहूं के मामले में इन दोनों राज्यों से कुल उत्पादन का 85 फीसदी से अधिक सरकार ने खरीदा, लेकिन दूसरे राज्यों की स्थिति ऐसी नहीं है। दूसरे राज्यों में कुल उत्पादन का छोटा हिस्सा सरकार खरीदती रही है और किसान वहां पहले से ही बाजार पर निर्भर करते रहे हैं। हालांकि हरियाणा के मूुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस बात पर अडिग़ हैं कि किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम मूल्य मिलता रहेगा और इसमें किसी तरह कि अड़चन नहीं आएगी।

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