जींद जिले को फिर किसान आंदोलन का केंद्र बनाने के प्रयास!

Edited By Naveen Dalal, Updated: 26 Jul, 2019 09:50 AM

efforts to make jind district a center of kisan movement

हरियाणा की राजनीति को दिशा देने वाले जींद जिले को विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर किसान आंदोलनों का केंद्र बनाने के प्रयास हो रहे हैं। इसके तहत किला जफरगढ़ गांव में 28 जुलाई को राज्य स्तरीय किसान महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। नरवाना में भी...

जींद (जसमेर): हरियाणा की राजनीति को दिशा देने वाले जींद जिले को विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर किसान आंदोलनों का केंद्र बनाने के प्रयास हो रहे हैं। इसके तहत किला जफरगढ़ गांव में 28 जुलाई को राज्य स्तरीय किसान महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। नरवाना में भी नहरी पानी को लेकर कई गांवों के किसानों के आंदोलन को विरोधी दलों ने अपना खुला समर्थन देकर किसान राजनीति को सुलगा दिया है। 

किला जफरगढ़ गांव में पिछले लगभग 2 महीने से भी ज्यादा समय से किसान अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं। किसानों ने रेलवे ट्रैक पर आकर जींद समेत पूरे प्रदेश में रेलवे ट्रैक रोकने का अल्टीमेटम जारी कर दिया था। इस्माइलाबाद से नारनौल तक निकाले जा रहे नैशनल हाईवे नंबर-152 डी के लिए जींद, दादरी, करनाल, कैथल समेत कई जिलों के किसानों की जमीनों का अधिग्रहण हुआ है। अधिगृहीत हुई जमीनों के बढ़े हुए मुआवजे की मांग को लेकर हरियाणा स्वाभिमान आंदोलन का केंद्र भी जींद को बनाया गया है। भले ही इस मुद्दे पर दादरी में भी किसानों का धरना जींद के किला जफरगढ़ की तरह चल रहा है।

28 जुलाई को किला जफरगढ़ में हरियाणा स्वाभिमान आंदोलन के तहत राज्य स्तरीय किसान महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। महापंचायत में किसानों को उनकी अधिगृहीत हुई जमीनों के बढ़े हुए मुआवजे के साथ-साथ एस.वाई.एल. नहर की खुदाई कर हरियाणा को उसके हिस्से का नहरी पानी दिलवाने, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुणा की वृद्धि करने, जुलाना को सब-डिवीजन बनाने, तमाम पूर्व जन प्रतिनिधियों को पैंशन दिए जाने जैसी मांगों को उठाया जाएगा। 

किसान आंदोलन भड़के तो जल सकते हैं सरकार के हाथ 
जींद जिले में जब-जब किसान आंदोलनों की आग अतीत में भड़की है, तब-तब प्रदेश में तत्कालीन सरकारों के हाथ किसान आंदोलन की आग में झुलसे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, भजनलाल से लेकर ओमप्रकाश चौटाला तक के हाथ सी.एम. रहते जींद जिले के किसान आंदोलनों की आग से नहीं बच पाए। अब भी जींद जिले में चल रहे इन किसान आंदोलनों की आग पर समय रहते सरकार ने पानी नहीं डाला तो फिर विधानसभा चुनाव से पहले सरकार के हाथ किसान आंदोलन की आग में जल सकते हैं। यही वजह है कि प्रदेश सरकार और उसके अधिकारी जींद जिले में किसान आंदोलनों की ङ्क्षचगारी को ज्वाला बनने से रोकने की दिशा में अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। 

नरवाना में भी नहरी पानी को लेकर सुलग रहा आंदोलन 
जींद जिले के नरवाना उप-मंडल के धरौदी गांव में भी नहरी पानी को लेकर आंदोलन सुलग रहा है। उझाना, बेलरखां, धनौरी, फरैण कलां, फरैण खुर्द समेत नरवाना के एक दर्जन गांवों के किसान पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं। उनकी मांग इन गांवों को 1982 से 1997 के दौरान भाखड़ा ब्रांच नहर से धरौदी माइनर को मिलते रहे नहरी पानी को फिर से दिए जाने की है।

1997 में तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने भाखड़ा ब्रांच नहर से धरौदी माइनर के लिए लगे मोगे को बंद करवा दिया था। किसान इस बात पर अड़े हैं कि उन्हें भाखड़ा नहर से पानी फिर दिया जाए जबकि जींद प्रशासन से लेकर सिंचाई विभाग के अधिकारी यह कह रहे हैं कि 1982 से 1997 के दौरान भाखड़ा ब्रांच नहर से धरौदी माइनर को नहरी पानी आधिकारिक रूप से नहीं दिया गया था। इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध ही नहीं है। नरवाना के इस किसान आंदोलन को अब जे.जे.पी., इनैलो तथा कांग्रेस तीनों प्रमुख विपक्षी दलों ने अपना प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन देकर सरकार के लिए विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक मुश्किल खड़ी कर दी है।

सरकार इसे लेकर कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि  सी.एम. मनोहर लाल के नजदीकी राज्य मंत्री कृष्ण कुमार बेदी ने 2 दिन नरवाना में डेरा डालकर इस किसान आंदोलन की तेज होती आग पर काबू पाने के प्रयास किए हैं। इसमें बेदी किसानों का अनशन समाप्त करवाने में तो कामयाब रहे हैं लेकिन किसानों ने धरना समाप्त करने से मना कर दिया है। किसानों का साफ कहना है कि जब तक भाखड़ा ब्रांच नहर से धरौदी माइनर में पहले की तरह पानी नहीं छोड़ा जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। 

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